बड़ी किस्मत से मिलती है बेटी

आज बेटी दिवस पर विशेष

* मां का हाथ बटाती
पापा को समझाती
परिवार की हर उलझन को सुलझाती
* छन छन करती नन्ही परी
जब दौड़ी दौड़ी आती
खिल जाता है परिवार
जब यह मुस्कुराती

ये पंक्तियां घर की, मां-बाप की ज़िंदगी के अनमोल अंग एक बेटी के लिए हैं।
बेटी चाहे बड़ी हो जाए, उसका विवाह हो जाए, उसके अपने बच्चे हो जाएं लेकिन मां-बाप के लिए उनकी बेटी हमेशा प्यार से पली, बचपन की हंसी ठिठोली करती और खेल खेलने वाली बेटी ही रहती है।
बेटी ज़िंदगी की वह पूंजी है, जो जीवित रहते अपने मां-बाप, घर-परिवार के लिए वह सब कुछ करती है और सारे कर्त्तव्य ऐसे निभाने की कोशिश करती है जो दुनिया में कोई और रिश्ता नहीं निभा सकता। बेटी में वह स्नेह, वह नरमी होती है, जिसका आनंद मां-बाप पूरी ज़िन्दगी लेते हैं। जिनके घर में बेटी होती है, उस मां-बाप को बुढ़ापे की कोई चिंता नहीं होती, क्योंकि बेटी जीवित रहते अपने मां-बाप को वृद्ध आश्रमों का रास्ता नहीं देखने देती। जितने भी उसके पास साधन होंगे, उनके साथ अपने मां-बाप की हर प्रकार से देखभाल करेगी।
हमारे देश में 24 सितम्बर को राष्ट्रीय बेटी दिवस सभी बेटियों को सम्मान और हौसला देने के लिए ही मनाया जाता है। अपने परिवार, माता-पिता, घर के बुजुर्गों की जो सेवा तन-मन से बेटी पूरी ज़िंदगी करती है, वह कोई और नहीं कर सकता यह और कोई नहीं जान सकता कि मां-बाप के लिए बेटी का क्या महत्व होता है लेकिन वे मां-बाप ही जानते हैं जिनके घर में बेटी जन्म लेती है।
जब एक बेटी दुनिया में जन्म लेती है, पहली बार उसको कोई दर्द होता है तो एक बाप के मुंह निकलता है, ‘बेटी, अब तू इस दुनिया में आ गई है, दर्द तो सहने पड़ेंगे’। ज़िंदगी के हर मोड़ पर, आयु के हर पड़ाव पर मां-बाप अपने जिगर के टुकड़े बेटी को गर्म हवा नहीं लगने देते। वेबेटी को समझाते हैं कि दुनिया के बहुत दबाव होंगे, हर जगह, हर क्षेत्र में, लेकिन हमेशा अपने आपको कायम रखना। कभी गलत बात के लिए समझौता नहीं करना, अपने आप को कभी भी कमजोर नहीं समझना, क्योंकि परिवार की, अच्छे दोस्तों की मदद, प्यार, ध्यान पूरी ज़िंदगी की चुनौतियों को पार करवाने में तेरी हमेशा मदद करेंगे।
समाज के कुछ वर्गों की सोच अभी भी बेटी-बेटे में अंतर करती है। इस सोच से इस वर्ग को कुछ अच्छा हासिल नहीं होता और इस बात का पता इस वर्ग के लोगों को भी है कि बेटी बहुत नाम कमाती है, परन्तु फिर भी वे इस रूढ़िवादी पारम्परिक सोच को अलविदा नहीं कह पाते। आजकल का सचेत वर्ग अपनी बेटियों को बहुत ऊंचाइयों पर मेहनत करते देखना चाहता है, उनको हर वह सुविधा प्रदान करना चाहता है, जिससे वे तरक्की करें, नाम कमाएं। एक बेटी को सिर्फ ज़रूरत है उसमें आत्म-विश्वास भरने की, उसका उत्साह-वर्धन करने की, उसको समझने की, उससे दिल की बातें साझी करने की, ताकि वह जैसे-जैसे बड़ी हो, कैसे परिस्थितियों का मुकाबला करना है, कैसे समाज में विचरण करना है, यह सब मां-बाप के अनुभव से सीखती, मुश्किलों का सामना करती, आगे बढ़ती जाए।
आजकल के सोशल मीडिया, डिज़िटल मीडिया के युग में जब नई पीढ़ी को दिशा-निर्देश देने बहुत मुश्किल हो गए हैं, तो बेटी की तरफ खास तौर पर किशोर अवस्था के समय ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत होती है कि बच्चे ठीक रास्ते पर ही चलें, सोशल मीडिया के गलत प्रभाव में न आ जाएं। इसके साथ आजकल के मुकाबलेबाज़ी के ज़माने में बेटियों को निरर्थक मुकाबलों से दूर रख कर ज़िंदगी की असलियत के साथ जोड़ कर रखना समय की मुख्य ज़रूरत है।
बेटी के जन्म लेने से बड़े होने तक बहुत से मां-बाप ऐसे होते हैं, जिनका स्वभाव, आदतें बदल जाती हैं सकारात्मक हो जाती हैं। उनका नज़रिया समाज में लड़की के प्रति बदल जाता है। जब एक बेटी पढ़-लिख जाती है, तो वह हर क्षेत्र में अच्छा कार्य करती है, हर समय अपने परिवार, माता-पिता का नाम रोशन करने के बारे में सोचती है।
आओ, अपनी बेटी को पढ़ाएं-लिखाएं, इस काबिल बनाएं कि वह इस समाज, देश, दुनिया में जहां भी जाए, अपने प्रकाश से हर किसी को प्रकाश प्रदान करे और हमेशा मां-बाप गर्व के साथ अपनी बेटी को याद करें।

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