बेअंत सिंह की राजनीति का ताना-बाना

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्याकांड से संबंधित भाई बलवंत सिंह राजोआणा की सज़ा कम करने के समाचारों ने मेरे मन में बसी हुई उस समय की राजनीति रिड़कने लगा दी है। हत्याकांड से कुछ दिन पूर्व मेरे ज़िम्मे वामपंथी सोच को समर्पित नये समाचार पत्र ‘देश सेवक’ का कार्य सौंपा गया था। मैं निकाले जाने वाले अखबार की योजनाबंदी में व्यस्त था कि यह कांड हो गया। बेअंत सिंह के राजनीतिक सचिव गुरमीत सिंह का गांव भड़ी था, जहां मैं पहली कच्ची और पक्की में पढ़ता था। उस गांव के अध्यापक बलवीर सिंह मेरे मामा के हमउम्र थे। गुरमीत सिंह उनके पुत्र थे। गुरमीत और उनसे छोटे दलजीत नन्ने-मुन्ने बालक ही थे कि उनकी माता का निधन हो गया। परन्तु पिता बलवीर सिंह और उनकी दूसरी पत्नी ने दोनों भाईयों को ऐसी शिक्षा और आत्म-विश्वास दिया कि गुरमीत सिंह अपने समय के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के धड़ल्लेदार राजनीतिक सचिव बने और दलजीत सिंह पंजाब प्रोविंशियल सर्विस में चुने गये। वह अब सेवानिवृत्ति के बाद पंजाब की कैबिनेट मंत्री रज़िया सुल्ताना के राजनीतिक सलाहकार हैं। मुझे बेअंत सिंह की राजनीतिक सोच और कार्य विधि की जानकारी इन भाईयों से मिली, चाहे बेअंत सिंह के पब्लिक रिलेशन अधिकारी उजागर सिंह भी मेरे बहुत निकट रहे हैं। असली बात तो यह है कि बलवीर के पूर्वजों में दो नाम सिख इतिहास के प्रसिद्ध पात्र बने। पहला बाबा मेहताब सिंह मीरांकोटिया जिन्होंने भाई सुक्खा सिंह माड़ी कम्बोके को साथ लेकर मस्से रंघड़ की हत्या की थी। मस्सा हरिमंदिर साहिब अमृतसर में वैश्या का नृत्य करवाने का दोषी था, जोकि इन सिख योद्धाओं को खटकता था। वह दोनों इस अमल के बाद शहीद कर दिये गये। परन्तु उनमें से सिर्फ मेहताब सिंह की संतान बची, जो मीरांकोट छोड़ कर खन्ना-संघोल मार्ग पर पड़ते भड़ी तथा अन्य गांवों में बस गई। मेहताब सिंह के पड़पौत्र रत्न सिंह भंगू ने श्री गुरु पंथ प्रकाश की रचना करके सिख बुद्धिजीवियों में झंडा गाड़ा। इस रचना में गुरु साहिबान की धारणा पर चलने वाले बाबा बंदा सिंह वैरागी के काल से पहले और बाद तक के विवरण दर्ज हैं, जिनसे इतिहास के खोजकार आज भी लाभ लेते हैं। यह रचना कविता में है और अब इसको कुलवंत सिंह ने अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद करते हुए भी काव्य विधि अपनाई है। यह अनुवाद इंस्टीच्यूट ऑफ सिख स्टडीज़ चंडीगढ़ ने बहुत गर्व से प्रकाशित किया है। 
इस समय कॉलम का विषय मेहताब सिंह और पौत्रों-पड़पौत्रों की सोच और कार्य विधि है। अब गुरमीत सिंह को यह दुनिया छोड़े 12-13 वर्ष हो चुके हैं। उनकी याद में स्पोर्ट्स क्लब भड़ी द्वारा हर वर्ष खेल मेला और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। गुरमीत सिंह पूरे 30 वर्ष इस क्लब के अध्यक्ष रहे। गांव वासियों ने उनकी याद में खन्ना-संघोल सड़क पर पड़ते अपने गांव में गुरमीत सिंह का यादगार गेट भी बनाया है। पाठकों की जानकारी के लिए यह बताना भी उचित है कि मेरे मित्र उजागर सिंह ने गुरमीत सिंह के जीवन और उपलब्धियों के बारे में ‘राजनीति का मसीहा’ नामक पुस्तक लिखी है। 
रांगले सज्जन गोबिंद ठुकराल का निधन
मेरे लिए यह दिन रांगले सज्जनों की याद ताज़ा करने वाले हैं। अपने पत्रकार मित्र गोबिंद ठुकराल का चले जाना। उनमें से प्रमुख है। वह मुझे पंजाबी ट्रिब्यून की कमान सम्भालने के  समय स्वागत करने वालों में ही नहीं, इससे पहले कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना के संचार केन्द्र के प्रमुख बनने के समय भी वही थे, जो मुझे अन्यों से पहले बधाई देने आए थे। अपनी पत्रकारिता के चार दशक के काल में उन्होंने वामपंथी सोच पर संतुलित और दृढ़ता से पहरा दिया। वह हर समय मेरे साथ छोटे भाईयों की तरह विचरे।इन तिथियों में इस दुनिया से ऱुखस्त हुए रांगले सज्जनों में महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री ही नहीं, अमर शहीद भगत सिंह भी याद आये हैं। सभी अपने देश की स्वतंत्रता और विकास में अग्रिणी नाम हैं। हर किसी की उपलब्धि शिखर को जाती सीढ़ी का एक पग है। निचले पग का महत्त्व भी उसी तरह का होता है, जैसा ऊपर वाले और शिखर वाले का।

अंतिका...
(सुरेन्द्र पंडित सोज़)
जिस लाश को मैंने चन्दन से सजा रखा है,
उसका कत्ल मेरे ही इशारों पे हुआ है।