विदेशी शब्दों के पीछे नहीं छिप सकती सच्चई

दशहरे के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आर.एस.एस.) के प्रमुख मोहन भागवत ने जहां यह कहा कि भारत एक हिन्दू राष्ट्र है और उसमें रहने वाले सभी लोग हिन्दू हैं, वहीं उन्होंने यह भी कहा कि लिंचिंग (भीड़ हिंसा) पश्चिमी देशों से लिया गया शब्द है। इसका प्रयोग भारत को बदनाम करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह शब्द भारतीय मूल का नहीं, इसको भारतीयों पर थोपा नहीं जाना चाहिए। यहां गौरतलब है कि संघ प्रमुख कोई आम आदमी नहीं हैं। उनकी कही बात संवैधानिक तौर पर न सही, परन्तु व्यवहारिक तौर पर आज के हालात में सत्तारूढ़ भाजपा और शायद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कही बात से भी अधिक महत्त्व रखती है, क्योंकि सच्चाई यही है कि भाजपा आर.एस.एस. का एक विंग ही है। भाजपा की हर नीति और रणनीति बनाने में भी संघ की बड़ी नहीं अपितु सबसे बड़ी भूमिका होती है। संघ प्रमुख द्वारा दशहरे के अवसर पर भाजपा सरकार के कार्यों पर की गई टिप्पणियों से भी यह अनुमान लगाये जाते हैं कि संघ सरकार के कार्यों से संतुष्ट है अथवा नहीं? इसलिए संघ प्रमुख के कहे हर शब्द के अर्थ बहुत महत्त्व रखते हैं। बेशक संघ प्रमुख मोहन भागवत की यह बात सही है कि अंग्रेज़ी शब्द लिंचिंग भारतीय का मूल नहीं है, परन्तु भीड़ द्वारा कानून हाथ में लेकर किसी द्वारा किये न किये अपराध के लिए उसको मार देना कदापि सभ्य नहीं माना जा सकता। ऐसे कृत्य के लिए किस शब्द का प्रयोग किया जाता है, इसके स्थान पर ज्यादा ज़रूरत ऐसे कृत्य रुकवाने की है। परन्तु हैरानी की बात है कि भाजपा समर्थक और प्रवक्ता यह स्टैंड ले रहे हैं कि सबसे बड़ी लिंचिंग (भीड़ हिंसा) की घटना तो 1984 का सिख कत्लेआम थी और अब ऐसी एक-दो घटनाओं के विरोध में प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वाले ‘बुद्धीजीवि’ उस समय कहां थे?
1984 के सिख कत्लेआम का दर्द हर सिख के सीने में है, परन्तु यह दलील किसी तरह भी सही नहीं कि यदि 1984 के कत्लेआम का विरोध नहीं किया गया तो अब भीड़ हिंसा का विरोध करने वाले ‘देश विरोधी’ हो गये। वैसे चाहे सिखों को न्याय नहीं मिला, परन्तु उस समय भी ‘हा का नारा’ देने वाले कई पत्रकार, बुद्धजीवि और मानवाधिकारों के कार्यकर्ता सामने आये थे। दो संस्थाओं ने तो ‘दोषी कौन’ नामक पुस्तक भी प्रकाशित की थी, जो एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ बन चुकी है। 
हिन्दू, हिन्दोस्तान और इंडिया भी विदेशी शब्द
यदि शब्दों के मूल पर जाएं तो भारत देश के तीन नामों में से दो हिन्दोस्तान और इंडिया भी भारतीय भाषाओं के शब्द नहीं है। भारत के किसी पुरातन ग्रंथ जिनमें चारों वेद भी शामिल है, में कहीं भी हिन्दू या हिन्दोस्तान शब्द नहीं मिलता। यह संस्कृत की किसी पुरातन पुस्तक में भी नहीं मिलता। इंडिया शब्द भी पश्चिमी देशों की देन है। वास्तव में सभी जानते हैं कि यह दोनों शब्द इस धरती पर रहने वाले लोगों को विदेशियों द्वारा दिये गये थे। हिन्दू शब्द तो सिंधू शब्द से बना है, क्योंकि परशीयन लोग ‘स’ को ठीक तरह से नहीं बोल सकते थे। वह स की आवाज़ ह  में निकालते थे। पहली बार आज से लगभग 2536 वर्ष पूर्व अर्थात 517 बी.सी. में जब परशीया के राजा डारियस प्रथम ने अपने राज्य की सीमाएं भारतीय महाद्वीप तक बढ़ा ली थी तो उस समय यहां के लोगों को सिंधू कहा गया, जो उनके स को ह की आवाज़ में बोलने के कारण हिन्दू हो गया था। हमारी जानकारी के अनुसार पहली बार हिन्दू शब्द एक फारसी डिक्शनरी ‘आरंग आमरा’ में लिखित रूप में आया था। 
पंजाबी में शब्द हिन्दोस्तान श्री गुरु नानक देव जी ने शायद पहली बार प्रयोग किया था। उन्होंने लिखा : 
खुरासान खसमाना कीया हिन्दुस्तान डराया।।
आपै दोष ना देई करता जम कर मुगल चढ़ाया।
ऐती मार पई करलाणै तैं की दर्द न आया।

वास्तव में यूनानी (ग्रीक) बोलने वाले भी सिंध दरिया को इंडस बोलते थे और जब सिकंदर ने भारत पर हमला किया, तो  उन्होंने सिंध दरिया के पार की धरती को इंडिया कहा। बाद में यूनानी लेखकों ने भी अपनी रचनाओं में इंडिया ही लिखना शुरू कर दिया। हां, तीसरा नाम भारत ही एक मात्र ऐसा है, जो इस देश की धरती पर रहने वाले लोगों द्वारा बोला जाता था। हमारे सामने उदाहरण है राजा भरत या श्री राम चन्द्र जी के भ्राता भरत और महाभारत के आदि।  इसलिए हम संघ के प्रमुख मोहन भागवत और आर.एस.एस. जो इस समय देश की सत्ता के असली मालिक माने जाते हैं और जिनका सबसे पहला फज़र् इस देश की एकता और अखंडता की रक्षा करना है, को कहना चाहेंगे कि जिस तरह स्वयं श्री भागवत ने भी यह कहा है कि लिंचिंग जैसे विदेशी शब्द को न अपनाया जाए, बिल्कुल उसी तरह ही वह हिन्दोस्तान को इंडिया जैसे विदेशी मूल के शब्दों को छोड़ कर इस महान भारत वर्ष को एक मात्र नाम भारत देने की बात सोचें और सभी वासियों को हिन्दू कहने की बजाये भारतीय कहें, तो यह इस देश की एकता, अखंडता और सम्प्रदायिक भाईचारे के लिए एक अच्छा कदम साबित होगा। 
दो समारोह
साहिब श्री गुरु नानक देव जी के 550 वर्षीय प्रकाश उत्सव के लिए सिखों में बहुत जोश है परन्तु सारा जोश राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय नगर कीर्तनों पर जा फिर शिरोमणि कमेटी (अकाली दल बादल) और कांग्रेस की पंजाब सरकार की ओर से इस अवसर पर होने वाले समारोहों से राजनीतिक लाभ लेने और कब्ज़ा करने पर ही लगा हुआ है। इस समय अब तक एक संयुक्त समारोह होने के आसार तो नहीं लगते। वैसे भी संगतों का जितना बड़ा समूह होने की उम्मीद है, उसके अनुसार शिरोमणि कमेटी और सरकार दोनों के अलग-अलग समारोह होने पर भी संगतों के बैठने के लिए स्थान कम ही होने की उम्मीद है। इसलिए निवेदन है कि अब इतना ही फैसला कर लें कि दोनों समारोहों में जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब, मुख्यमंत्री पंजाब, शिरोमणि कमेटी प्रधान और केन्द्र सरकार की ओर से आये प्रमुख नेता शामिल हों और सम्बोधित करें। इस तरह सब कुछ साझा ही नज़र आएगा, परन्तु दोनों हाथ जोड़ कर एक और प्रार्थना है कि दोनों गुट इन मंचों पर एक-दूसरे पर कीचड़ फैंकने की बजाये सिर्फ गुरु से संबंधित बातें  ही करें। 
अतिरिक्त रुकावटें
 अब जबकि यह फैसला हो चुका है कि करतारपुर साहिब गलियारे द्वारा गुरु साहिब के दर्शनों के लिए जाने के लिए श्रद्धालुओं के पास पासपोर्ट होना ज़रूरी है तो यह सचमुच हैरानीजनक और अनुचित शर्त प्रतीत होती है कि करतारपुर साहिब जाने वाले श्रद्धालु को पहले भारत के गृह मंत्रालय को निवेदन करना पड़ेगा।  फिर उसकी पुलिस वैरीफिकेशन होगी, फिर अनुमति मिलेगी। इस पर कम से कम 20 दिन लगेंगे। बाद में तीन-चार दिन पाकिस्तान भी इसकी जांच करेगा। हम समझते हैं कि यह प्रक्रिया पूरी तरह अनुचित है, क्योंकि पासपोर्ट तो बनता ही पुलिस वैरीफिकेशन के बाद है। किसी भी व्यक्ति को पाकिस्तान सहित किसी भी देश जाने के लिए वीज़ा लेने के लिए भी अलग पुलिस जांच की ज़रूरत नहीं होगी। फिर बिना वीज़ा जाने वाले श्रद्धालुओं पर यह शर्त क्यों? क्या भारत सरकार अपने ही पासपोर्ट धारकों पर और पुलिस पर विश्वास नहीं करती?  हमारी शिरोमणि कमेटी, पंजाब सरकार, अकाली दल जो केन्द्र सरकार में भागीदार हैं, के अलावा सभी सिख और न्याय प्रिय गैर-सिख संगठनों को भी प्रार्थना है कि वह इस बिना वीज़ा यात्रा को एक महीने का प्रोजैक्ट बना कर श्रद्धालुओं की गुरु भूमि को छूने और नमस्कार करने की तमन्ना के रास्ते में रुकावट डालने वाली इस अनावश्यक प्रक्रिया को खत्म करने के लिए भारत सरकार तक पहुंच करें।

-मो. 92168-60000