640 ईस्वी पुरानी है चांदी

चांदी का उपयोग आमतौर पर आभूषणों, बर्तनों एवं सजावट के सामानों के रूप में होता आया है। चांदी की खोज करीब 640 ईसवी पूर्व एशिया माइनर की राजधानी लाडिया में हुई थी। चांदी को खानों से निकालने में बहुत कठिनाई और खर्च होता है जिसके लिए आधुनिक यन्त्रों की सहायता से जमीन को काफी गहराई तक खोदना पड़ता है जिससे एक बार में एक टन कच्चा माल निकलता है। इसमें शुद्ध चांदी लगभग दो ट्रांय औंस मिलती है। चांदी की तोल में काम आने वाले बाट को ट्रांय औस कहा जाता है।करीब 32.15 ट्रांय औंस से एक किलो चांदी मिलती है जिसका उपयोग फोटोग्राफी, सौर ऊर्जा, जल परिष्करण, चिकित्सा, अंतरिक्ष अभियान तथा अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में होता है। फोटो प्लेट में चांदी का प्रयोग होता है जिसमें सिल्वर-लाइड लगता है जो प्रकाश के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है।चिकित्सा के क्षेत्र में भी काफी उपयेग होता है। चांदी के लेप से जले अंगों की चिकित्सा होती है। घावों की सिलाई चांदी के धागों से होती है। खोपड़ी के नष्ट अव्यवाें पर चांदी की पत्ती लगाई जाती है। अंतरिक्ष यात्री चांदी से बनी अति शक्तिशाली बैटरियों की बदौलत ही चांद पर उतर कर जीवित रह सकते हैं। इन बैटरियों ने उन यन्त्रों को ऊर्जा दी जिसकी बदौलत अंतरिक्ष यात्रियों को बाकायदा आक्सीजन मिलती रही, उन्हें ठंडक मिलती रहे और दूर से संकेत भेजकर उनकी हृदय गति का नियमन हो सका। साथ ही उन्हीं बैटरियों के कारण ही चांद पर वे वाहन भी चल सके जिनके चित्र एवं आवाज दूरदर्शन द्वारा धरती पर पहुंच सके। चांदी का उपयोग जीवाणुओं से बचाव के लिए भी किया जाता है। चांदी का एक गुण जंगरोधक होना भी है जिसके चलते इसका उपयोग विद्युत प्रणाली में किया जाता है इसीलिए कम्प्यूटर, टेलीफोन, टेलीविजन तथा अन्य संचार उपकरणों में बहुत सुधार किया गया है। इसका उपयोग सोलर कुकर में भी किया जाता है। राकेट, जेट इंजनों, आणविक संयंत्रों, विस्फोटन-भट्टियों में भी चांदी प्रयोग में लायी जाती है जिन्हें आग नहीं जला सकती। 

—के.जी. बालकृष्ण पिल्लै