यम की आराधना का दिन है नर्क चतुर्दशी

भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से ही भगवान सूर्य तथा प्रकाश की पूजा-अर्चना करने की परम्परा रही है। आश्विन और कार्तिक माह में सूर्य जिस स्थिति पर होता है, उस स्थिति को शरदसम्पात् कहा जाता है।  शरद् ऋ तु के आगमन की खुशी में दीपावली पर्व मनाया जाता है लेकिन दीपावली पर्व मनाने से पूर्व मृत्यु के देवता ‘यम’ की पूजा कर उनके नाम का दीप प्रज्वलन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति की प्रार्थना तथा जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करने की परम्परा है। इस परम्परा का निर्वाह करते हुए ही देश में ‘नरक चौदस’ या ‘यम चतुर्दशी’ के रूप में भी मनाई जाती है। अंधकार को यूं भी मृत्यु का प्रतीक माना गया है। हमारी देव परम्परा व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ‘यम’ को मृत्यु का देवता माना गया है। ऐसी धारणा है कि मनुष्य के कल्याण की दिशा से बलि होने वाले सृष्टि के सर्वप्रथम महर्षि और परमज्ञान के स्वामी ‘यमदेव’ ही थे। जीवन के गूढ़ रहस्य को केवल यम ही जानते थे। इन्हें यमुना देवी का भाई भी माना जाता है, जो ‘यम द्वितीया’ के दिन अपने भाई यम को तिलक लगाकर भ्रातृ स्नेह का परिचय देती है व उससे सुरक्षा की कामना करती है। मृत्यु के देवता यम की आराधना का दिन ‘नरक चतुर्दशी’ दीपावली से एक दिन पूर्व मनाया जाता है। इस दिन समस्त परिजन शाम ढलते ही मंगल कामना और दीर्घ जीवन की स्तुति करते हुए ‘यमदीप’ जलाते हैं। महिलाएं घर की देहरी से बाहर एक बड़ा-सा दीपक जलाकर मंगल गीत गाती हैं। सच तो यह है कि यम एक वैदिक ऋषि का नाम था जिन्होंने देवताओं के लिए मृत्यु को स्वीकारा था लेकिन उन्होंने मनुष्यों के लिए अमरत्व ग्रहण नहीं किया था। साथ ही उन्होंने सृष्टिचक्र  को गतिशील बनाने के लिए स्वयं की बलि दी थी। तदुपरान्त वह ही सूर्य के पुत्र ‘आदित्य’ कहलाये और उन्हें दक्षिणांचल का स्वामी बनाया गया।  कालान्तर में वह देवलोक व यमलोक के स्वामी हुए और उन्हें मृत्युदेव के रूप में ‘यमदेवता’ की उपाधि देकर सुशोभित किया गया। यम देवता द्युलोक, भूलोक, जल, डर्क, सूनूव और उद्भिज छ: स्थानों के भी स्वामी कहलाये। बाद में इन्हीं देवता के साथ यम माण्डवा, यम-यमी, यम-सावित्री, यम-नचिकेता, यम-यमुना जैसी पौराणिक कथाएं जुड़ गयीं। दीपोत्सव कब प्रारंभ हुआ, इसके पीछे यूं तो अनेक कथाएं जुड़ी हुई हैं, लेकिन एक पौराणिक कथा जो सबसे पहले जुड़ी, वह है जब ऋ षि वाज्रस्रवा ने यज्ञ में आहुतियां देने के बाद यजमानों को दी जाने वाली दक्षिणा के प्रति अपने भाव बदलते हुए घोषणा के अनुरूप दान नहीं दिया तो उनकी इस भावना से उनके पुत्र नचिकेता ने उन्हें टोकना शुरू कर दिया व कहा कि, पिताजी, जब आपने सभी के बीच यह कहा था कि मैं अपनी प्रिय से प्रिय वस्तु भी दान दे दूंगा, तब यह बूढ़ी गायें क्योंकर दान कर रहे हैं।  यह सुनकर वाज्रस्रवा क्र ोधित हो उठे। तब नचिकेता ने कहा-मुझे ही दान में दे दीजिये। तब ऋ षि ने गुस्से में आकर उसे श्राप दे दिया-जा, तुझे यमराज को देता हूं।  पिता की आज्ञा पालन कर नचिकेता यमराज के पास जा पहुंचे। नचिकेता ने संसार की किसी भी वस्तु से मोह न रखते हुए यमराज से यमलोक व ब्रह्मलोक का ज्ञान पूछना चाहा तो यमराज ने इस गूढ़ रहस्य को उजागर नहीं किया और नचिकेता से कहा, ज्ञानी मनुष्य अपनी बुद्धि और मन के द्वारा इन्द्रियों को वश में रखता है। वही व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है, तो पुत्र नचिकेता उठो, जागो और श्रेष्ठ व्यक्तियों के पास जाकर उनसे ज्ञान प्राप्त करो। नचिकेता यमराज के उपदेश मानकर व बताया गया आचरण कर जब पृथ्वीलोक पर ऋ षि बनकर लौटा तो उसके आगमन की खुशी में कार्तिक चतुर्दशी को मृत्युलोक में सर्वत्र दीप जलाये गये, तब से ही प्रकाशोत्सव का शुभारम्भ हुआ। लेकिन यह कैसी विडम्बना है कि मृत्युलोक के इस महान देवता ‘यम’ को एक भयावह आकृति वाला बेडौल, दानवी शरीर वाला, भैंसे पर सवार और जीव के प्राण हरने वाला मृत्यु का देवता ‘काल’ के रूप में माना गया है। दीपावली के पुनीत पर्व से एक दिन पूर्व कार्तिक चतुर्दशी पर ‘यम’ के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने की परम्परा से ‘दानप्रथा’ भी चली आ रही है। इसमें सभी प्रकार के अनाजों को मिलाकर दान दिया जाता है व घर की स्त्रियां दीपक जलाने के बाद सिर धोती हैं व नये-नये वस्त्रों के साथ आभूषणों से सुसज्जित होकर रूप लक्ष्मी के रूप सौन्दर्य की कामना करती है। 

—चेतन चौहान