मानवता को चेतावनी

विश्व-व्यापी उपभोक्तावाद ने पर्यावरण को इतना प्रदूषण से आहत कर दिया है कि धरती जल, हवा में कुछ भी नहीं बच पा रहा। शोषण की प्रवृत्ति ने हताशाजनक हालात तक पहुंचा दिया है। वैज्ञानिक विश्व जनसंख्या में भारी बढ़ोतरी पर भी चिंतित है। 1992 के बाद से ही दो करोड़ से अधिक हो गई है और 35 प्रतिशत वृद्धि दिखा रही है। इसका कुदरती माहौल, कुदरत द्वारा दी गई वस्तुओं पर ज्यादा दबाव पड़ रहा है। उपभोग के दृष्टिकोण से असंयम का व्यवहार काफी चिंताजनक है। यह भी बताया जा रहा है कि वैश्विक मध्यवर्ग का विकास तेजी से हो रहा है जोकि इस समय तीन अरब से अधिक है, जिसकी 2050 तक संख्या पांच अरब हो जाने का अनुमान है। यही वर्ग प्रकृति पर सबसे ज्यादा कार्बन पैदा कर रहा है, क्योंकि यही वर्ग अत्याधुनिक उपकरण इस्तेमाल करता है। मानव संख्या इतनी चिंताजनक नहीं है जितनी उसकी उपभोक्ता प्रवृत्ति। ऐसी विनाशशील स्थितियों में सोलह वर्षीय पर्यावरण कार्यता के रूप में उभरी ग्रेटी थुनबर्ग का बयान झकझोर देने वाला है। तमाम समाचार पत्रों में उसी की चर्चा है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र के संयुक्त राष्ट्र में भाषण से पूर्व इस लड़की ने अपने भाषण से लोगों को विशेष रूप से प्रभावित किया। ग्रेटा थुनबर्ग ने अपने भाषण में कहा- ‘आपने हमारे सपने, हमारा बचपन अपने खोखले शब्दों से छीन लिया। हालांकि मैं अभी भी भाग्यशाली हूं लेकिन लोग झेल रहे हैं, मर रहे हैं, पूरा ईको सिस्टम बर्बाद हो रहा है।’ अपने सम्बोधन में ग्रेटा ने भावुक होते हुए कहा, ‘आपने हमें असफल कर दिया। युवा समझते हैं, आपने हमें छला है। हम युवाओं की आंखें आप लोगों पर हैं और अगर आपने फिर हमें असफल किया तो हम आपको कभी माफ नहीं करेंगे। पर्यावरण कार्यकर्ता बड़ी स्पष्टता से रही थीं, हम सामूहिक विलुप्ति के कगार पर हैं।’ आज मुहावरा बनता जा रहा है कि जितना बड़ा देश उतना ही ज्यादा तापमान को रोकने के प्रति लापरवाह और नाकामयाब। इसके चलते मासूम लोगों में गुस्सा बढ़ रहा है। यह सब देखने को मिला दुनिया के 139 देशों में, यहां 50 लाख से ज्यादा युवा अपने भविष्य को बचाने के लिए सड़कों पर बैनर, पोस्टर और तख्तियां लेकर निकल आये। उनकी दुनिया भर के नेताओं से जलवायु परिवर्तन को तुरंत रोकने की मांग थी। हैरानी का विषय है कि दुनिया भर से 4836 बड़ी रैलियां हुईं। जिनका कार्य क्षेत्र अमरीका के न्यूयार्क से लेकर आस्ट्रेलिया के मेलबर्न तक, जापान के टोक्यो से लेकर नई दिल्ली तक, सभी जगह बच्चे कक्षा छोड़ कर ग्लोबल क्लाइमेट स्ट्राइक में शामिल हुए। एक अखबार के अनुसार केवल न्यूयार्क में ही 11 लाख बच्चों ने क्लास छोड़ दी। मेलबर्न में एक लाख छात्र शामिल हुए। इतना ही नहीं फेसबुक, अमेज़न, गूगल माइक्रोसाफ्ट, टिवट्र आदि कम्पनियों के हज़ारों कर्मचारी भी इन बच्चों को समर्थन देने के लिए सड़कों पर उतर आये। गौरतलब है कि स्ट्राइक की लीडर 16 वर्षीय ग्रेटा ही है। वह स्वीडन से है। उसने न्यूयार्क में प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में शामिल होने के लिए विमान का सहारा नहीं लिया। वह स्वीडन से एक ज़ीरो कार्बन उर्त्सन नाव से न्यूयार्क पहुंची। ऐसा करके दिखाया कि वह केवल बयान में ही सिद्धांत नहीं बघारती। व्यवहारिक स्तर पर गहराई से सोचती है।  भारत में भी कभी चिपको आन्दोलन और कभी नर्मदा बचाओ आन्दोलन द्वारा पर्यावरण के खजाने की मुहिम चलती रही है। ऐसे आन्दोलनों में महिलाओं ने सदा बढ़-चढ़ कर भाग लिया है। मेघा पारकर के नाम से हम सभी परिचत हैं। ग्रेटा थुनबर्ग द्वारा दी गई चेतावनी काफी महत्त्वपूर्ण है, जिसे गम्भीरता से लेना होगा।