चार खर्चे

बहुत पुरानी बात है। चंदनपुर में एक चतुर किसान नंदू रहता था। वह मेहनती पर संतोषी किसान था। एक बार सुबह-सुबह जब वह अपने खेत को जोत रहा था तो वहीं से प्रात: की सैर पर उस राज्य का राजा चंद्र कुमार गुज़रा। राजा रुका और उसने नंदू को अपने पास बुलाकर पूछा, ‘खेती से औसत दैनिक आय कितनी होती है?’ ‘चार रुपये रोज़’, नंदू ने सहजता से कहा।
राजा ने दूसरा प्रश्न किया, ‘चार रुपये का क्या करते हो?’ नंदू ने बताया, ‘एक रुपया मैं कज़र् चुकाता हूं, एक रुपया कज़र् में देता हूं, एक से अपना गुज़ारा करता हूं और एक रुपया फेंक देता हूं।’
‘मेरे माता-पिता ने मुझे पालने में जो श्रम व धन व्यय किया था वह उनका मुझ पर पुराना कज़र् है। अब मैं एक रुपया उनकी सेवा सुश्रूषा में व्यय कर कज़र् चुका रहा हूं। एक रुपया अपने बच्चों के पालन पोषण में खर्च कर मैं उन्हें कज़र् दे रहा हूं। इस आशा से कि मेरे बुढ़ापे में वे मेरी देखभाल करेंगे। एक रुपया हम पति पत्नी के खर्चे में आता है। एक रुपया मैं दान कर देता हूं, इससे चूंकि मैं किसी लाभ की अपेक्षा नहीं करता, इसलिए मैं इसे फेंक देना मानता हूं।’
राजा ने दस सोने के सिक्के नंदू के हाथ पर रखते हुए कहा, ‘ये बातें तब तक किसी और को मत बताना जब तक तुम मेरी सूरत एक सौ बार न देख लो।’ नंदू ने सहमति से सिर हिलाया। इसके बाद राजा चला गया और नंदू अपने काम में लग गया।
राजा ने अपने भरे दरबार में यह घोषणा की, ‘एक किसान चार रुपये रोज़ कमाता है। एक रुपया कज़र् चुकाता है, एक रुपया कज़र् में देता है, एक से अपना खर्च चलाता है, एक रुपया फेंक देता है। जो इस खर्च का पूरा विवरण बताएगा, उसे हम एक बड़ी जागीर इनाम में देंगे।’ सब दरबारी अपनी-अपनी समझ के अनुसार बताने लगे परन्तु किसी की बात सही नहीं थी। एक दरबारी को यह मालूम था कि राजा एक किसान से मिले थे। दरबारी नंदू से जा मिला। दरबारी ने किसान से कहा, ‘तुमने राजा को कुछ बातें बतायी थीं, वह तुम मुझे भी बता दो।—नंदू बोला, ‘मैं नहीं बताऊंगा। राजा ने कहा कि जब तक मेरी सूरत सौ बार न देख लो, तब तक किसी को न बताना।’
दरबारी ने सौ चांदी के सिक्के नंदू के हाथ पर रख दिये। सिक्कों पर राजा की तस्वीर खुदी थी। एक-एक कर नंदू ने सारे सिक्के गिने और जेब में डाल लिये, फिर दरबारी को सारी बातें बता दी। दरबारी तुरंत दरबार में पहुंच गया। तब तक वही बातें चल रही थीं। राजा को चारों खर्चों का विवरण बताकर दरबारी ने पुरस्कार प्राप्त कर लिया। राजा को लगा कि दरबारी को ये बातें नंदू ने बतायी हैं। राजा ने नंदू को बुला लिया और अकेले में पूछा, ‘दरबारी को तुमने खर्चों का विवरण दिया था?’ ‘हां’ नंदू बोला और वादे के मुताबिक बताने से पहले आपकी शक्ल सौ बार देख ली थी। राजा आश्चर्य से बोला, ‘परंतु मैं तो एक बार भी तुम्हारे सामने नहीं गया।’ नंदू ने ये बातें पूरी होने से पूर्व ही दरबारी द्वारा दिये गये सिक्के राजा को दिखा दिये। राजा नंदू की अक्लमंदी से बड़ा प्रसन्न हुआ और उसे इनाम दिया। (उर्वशी)