550वें प्रकाश पर्व का लिखित संदेश

गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाश पर्व की एक देन वह बहुमूल्य पुस्तकें हैं, जो गुरु साहिब की जीवन दृष्टि को निखार कर पेश करती हैं। पंजाब सरकार के पर्यटन और सांस्कृतिक मामलों वाले विभाग ने ‘सुएने का बिरख’ नामक सचित्र और बड़े आकार वाली पुस्तक में गुरु नानक साहिब की जीवनी और वाणी का उद्देश्य दर्शा कर उनकी समूची जीवन दृष्टि पर रोशनी डाली गई है। पुस्तक के पांच भाग (1) पावन प्रकाश (2) भागांवाली धरती (3) पत परवाला (4) नाद अनेक असंखा और (5) प्रगट भई सगले जुग अंतरि।  में उनके जीवन, जन्म, साखियों, वाणी की चुनिंदा तुकों का सार देने के अलावा प्रसिद्ध विद्वानों, इतिहासकारों और कवियों द्वारा लिखे गये भावों और विचारों को अच्छे ढंग से पेश किया गया है। विशेषता यह है कि गुरु साहिब के फलसफे को पंजाबी भाषा से अंजान नानक प्रेमियों तक पहुंच करने के लिए समूची सामग्री का बढ़िया और उपयुक्त अंग्रेज़ी भाषा में अनुवाद भी प्रस्तुत है। इन विद्वानों में परल एस. बक, ओरनेल्ड टोयेनबी, रवीन्द्र नाथ टैगोर, मुल्कराज आनंद, मोहम्मद इकबाल, डा. राधाकृष्णन, भाई वीर सिंह, धनी राम चार्तिक, भाई जोध सिंह, ओशो, खुशवंत सिंह, संत सिंह सेखों, प्रो. पूरन सिंह, नजीर अकबरावादी जैसे चिन्तक और दार्शनिक शामिल हैं। इस अद्वितीय रचना के सम्पादक प्रसिद्ध और लोकप्रिय कवि सुरजीत पातर हैं। इसी तरह सरबत दा भला चैरीटेबल ट्रस्ट पटियाला ने ‘गुरु नानक :परम्परा और दर्शन’ नामक पुस्तक प्रकाशित की है, जिसमें भाई गुरदास, बाबा सरूप चंद, भाई बहलो जी, श्रद्धा राम फिल्लौरी, अशराफियन, हरजीत सिंह गिल, जे.पी. सिंह ओबराय, हारून ़खालिद, रूडल्फ बावेल, एन. मुथू मोहन, पशौरा सिंह आदि के मौलिक पंजाबी और अंग्रेज़ी में लिखे लेख शामिल हैं। इस रचना की विशेषता इसके चित्र हैं। यह पांच दर्जन से अधिक चित्र चित्रण करने वालों की सोच और अनुमान का दम भरते हैं। सभी कलाकारों ने गुरु साहिब का रूप और स्वरूप इतना अलौकिक चित्रित किया है कि देखने वाला स्वयं को अ़गमी दुनिया में विचरता अनुभव करता है। यह रचना सम्भालने योग्य है। तीसरी पुस्तक डा. नरेश कुमार ने तैयार की है। गुरु नानक वाणी और पंजाबी चिन्तन। इस रचना के चिन्तक मौला बख्श कुश्ता, प्रिं. तेजा सिंह, नज़्म हुसैन सैय्यद, भाई जोध सिंह, अमरजीत सिंह ग्रेवाल, अवतार सिंह, डा. मिनी सलवान, डा. हीरा सिंह और गुरभजन गिल जैसे लेखक हैं। 
लोकतंत्र की नृत्य कला
वैसे तो लोकतंत्र हर पक्ष से लोक नृत्य ही होता है, परन्तु इन पंक्तियों के लिखे जाने तक महाराष्ट्र की राजधानी मुम्बई में जो कुछ हो रहा है, इसने समूचे विश्व में बसते भारतीयों का ध्यान खींचा हुआ है। किसी एक पार्टी को बहुमत न मिलने के कारण राज्य सरकार के गठन में आई रुकावट के कारण यहां राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है। इस फैसले ने देश भर के राजनीतिक नेताओं को ही नहीं, मीडिया को भी हैरान कर दिया है। जब 288 में से क्रमवार 105 और 56 सीटें जीतने वाली भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना का मतभेद किसी परिणाम पर न पहुंचा, तो भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया गया, जिसमें वह सक्षम नहीं हो सकी। फिर शिव सेना, कांग्रेस और नैशनल कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाने के लिए इतना कम समय दिया गया कि शरद पवार तक पहुंच करने वाले कांग्रेस प्रतिनिधि वैनूगोपाल, अहमद पटेल और मल्लिकार्जुन खड़गे के पंख कतर कर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पूरी तरह होशियारी दिखाते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश केन्द्र की सरकार को भेज दी। उधर नरेन्द्र मोदी सरकार ने जल्दबाज़ी में कैबिनेट बैठक बुला कर इसे स्वीकार करने में समय नहीं लगाया। निश्चय ही कई पार्टियों का गठबंधन करने के लिए साझा कार्यक्रम बनाने और मिल-बैठने की स्थिति कायम करने के लिए समय चाहिए था, जिसकी तरफ राज्यपाल तो क्या केन्द्र की सरकार ने भी बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। निश्चय ही केन्द्र के फैसले ने किन्तु-परन्तु को जन्म देना था। अब राजनीतिक माहिर संविधान की धारा 356 में त्रुटियां निकाल रहे हैं। वह भूल गये हैं कि यह फैसला उस सरकार ने ही किया है, जिसने चुनी हुई सरकार की अनुपस्थिति में जम्मू-कश्मीर में धारा 370 का खेल खेला था। शिव सेना ने सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाया है। स्थिति इतनी हास्यस्पद बन गई है कि मीडिया पूरी तरह सतर्क हो चुका है। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्यपाल ने समाचार पत्रों की टिप्पणी नहीं पढ़ी, सिर्फ प्रधानमंत्री के विदेश दौरे को मुख्य रखते हुए अपनी सिफारिश भेजने की होशियारी दिखाई है। लोकतंत्र मांग करता है कि जनता के वोट की तरफ ध्यान दिया जाए और राज्य सरकारों के लिए ऐसी स्थिति न पैदा की जाए कि विधानसभा भंग करनी पड़े। यदि हमने अपनी आत्मा की आवाज़ नहीं सुननी तो मीडिया की ही सुनें।

अंतिका...
(मोहम्मद इकबाल का नानक)
कौम ने प़ैगाम-ए-गौतम की ज़रा परवाह न की
कदर पहचानी न अपने गौहर-ए-यकदाना की।
बुत्तकदा फिर बाद में मुद्दत के मगर रोशन हुआ
नूर-ए-इब्राहिम से आज़र का घर रोशन हुआ।
फिर उठी तौहीद की सदा इस पंजाब से
हिन्द को एक मर्द-ए-कामल ने जगाया ख्वाब से।