इसरो : नया साल, नया मिशन

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज़ादी के बाद भारतीयों को गर्व के इतने क्षण दिये हैं, जिसकी तुलना सिर्फ  भारतीय सेना द्वारा भारतीयों को आजादी के बाद चार-चार युद्ध जीतकर और देश के अंदर हर मुसीबत पर सफलतापूर्वक मोर्चा संभालकर दी गई सुरक्षा व गर्व से ही की जा सकती है। लेकिन यही इसरो पिछले साल उस समय एक तरह की हीनताबोध का शिकार हो गया जब उसका बेहद महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 आखिरी चरण में अपनी मंजिल के महज 2 किलोमीटर पहले असफल हो गया। 7 सितंबर 2019 की रात 1 बजकर 30 मिनट से लेकर 2 बजकर 30 मिनट के बीच इसरो के अब तक के सबसे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव में उतरना था। सब कुछ योजना के अनुरूप चल रहा था। भारत दुनिया का पहला ऐसा देश बनने जा रहा था, जो चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपने लैंडर को उतारने की कोशिश कर रहा था, जिसके अंदर प्रज्ञान नाम का रोवर भी था। इस बेहद महत्वपूर्ण क्षण का गवाह बनने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसरो के मुख्यालय में वैज्ञानिकों के बीच मौजूद थे।  लैंडर विक्रम कदम दर कदम इतिहास लिखने की तरफ  बढ़े चला जा रहा था। अब वह चांद की सतह महज 2.1 किलोमीटर दूर था यानी अगले दो से ढाई मिनट के भीतर भारत अंतरिक्ष मिशन के एक सबसे जटिल अभियान को सफलतापूर्वक पूरा करने की कगार पर था। लेकिन अंतिम क्षणों में वह हुआ जिसकी सौ में महज एक प्रतिशत आशंका थी। जब लग रहा था बस सफलता पलक झपकने की दूरी पर खड़ी है, उसी समय इसरो के कंट्रोल रूम में बैठे वैज्ञानिकों का संपर्क विक्त्रम से टूट गया। आशंका भले बहुत कमजोर रही हो, मगर सच हो गई। कुछ मिनटों तक तो किसी को कुछ समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ और जो हुआ उसके लिए प्रतिक्रिया कैसे व्यक्त की जाए? बेहद तनावपूर्ण स्थिति थी। वैज्ञानिकों के चेहरे लटक गये थे। जाहिर है वहां बैठा हर शख्स यह जान गया कि क्या हुआ है? लेकिन किसी को समझ में नहीं आ रहा था या कहें हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करे? तभी इसरो के मौजूदा मुखिया के. सिवन उठे।  वे हिले तो लेकिन स्पष्ट शब्द नहीं फूट रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें गले लगा लिया। के. कस्तूरीरंगन और के. राधाकृष्णन भी वहीं मौजूद थे। उन्होंने भी प्यार से सिवन के कंधों में हाथ रखा। अब आधिकारिक तौरपर घोषणा करना मुश्किल नहीं था कि 95 फीसदी सफल रहे चंद्रयान-2 के मिशन के अंतिम 5 प्रतिशत हिस्से के साथ क्या हुआ?इसरो का यह मिशन बहुत मामूली तौर पर भले फेल हो गया हो। लेकिन देश में किसी एक व्यक्ति की भी प्रतिक्रिया ऐसी नहीं रही, जिससे लगा हो कि उसने इसरो पर व्यंग्य किया हो या इसरो की सफलता को कम करके आंका हो। आम आदमी से लेकर तमाम बड़े बड़े उद्योगपतियों, राजनेताओं, मंत्रियों, प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति तक ने इसरो की दिल से प्रशंसा की। उसके असाधारण प्रयास को सलाम किया। दुनिया के सबसे ज्यादा और बड़े अंतरिक्ष मिशनों को अंजाम देने वाले संगठन ‘नासा’ ने भी इसरो के इस प्रयास को सलाम किया, उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। मगर पड़ोसी देश पाकिस्तान के आम लोग नहीं बल्कि वहां के तथाकथित विज्ञान मामलों के मंत्री फवाद चौधरी ने इसकी खिल्ली उड़ायी। हालांकि इसका जवाब भारत को नहीं देना पड़ा, आम पाकिस्तानियों ने ही फवाद चौधरी को जमकर लताड़ा। बहरहाल इस लंबी भूमिका के जरिये कहना सिर्फ  यह था कि चंद्रयान-2 की आंशिक असफलता के बाद लग रहा था इसरो कुछ दिनों के लिए बैकफुट पर चला गया है, लेकिन इस साल की शुरुआत के पहले ही दिन इसरो ने न सिर्फ  अपनी नये और चमकदार मिशनों की घोषणा करके अपने आत्मविश्वास का परिचय दिया है बल्कि अपनी इन घोषणाओं से उसने आम हिंदुस्तानियों में गर्व और महत्वकांक्षा की भावना भर दी है। साल 2020 के पहले दिन ही इसरो के प्रमुख के.सिवन ने प्रेस कांफ्रैंस करके जानकारी दी कि इसरो को चंद्रयान-3 प्रोजेक्ट की मंजूरी मिल गई है और वह इसे इसी साल के अंत में या 2021 में लांच करेगा। हालांकि केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि चंद्रयान-3 2020 में ही लांच किया जायेगा, लेकिन इसरो शायद अपने प्रोजेक्ट में किसी तरह की कोई खामी नहीं छोड़ना चाहता, इसलिए उसने थोड़ा और समय भी ले लिया है। साल की अपनी पहली कॉन्फ्रैंस में इसरो के मुखिया के.सिवन ने देश को खुशी देने वाले और भी कई प्रोजेक्टों के संबंध में देश को बताया। के.सिवन के मुताबिक साल 2022 में प्रस्तावित गगनयान प्रोजेक्ट बेहद सुचारू रूप से अपने समय पर चल रहा है। साथ ही उन्होंने यह भी देश को बताया कि इसरो तूतीकोरेन में एक और लांच पैड शुरु करने जा रहा है। पत्रकारों के पूछे जाने पर के.सिवन ने मुस्कुराते हुए खुलासा किया इस साल उनके पास 25 परियोजनाएं हैं और सभी अपने समय पर पूरी होंगी। गगनयान शायद देश का ही नहीं, दुनिया के लिए भी एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। के.सिवन के मुताबिक यह बिल्कुल उम्मीदों के मुताबिक चल रहा है। अंतरिक्ष भेजे जाने वाले पहले यात्रियों के लिए वायु सेना के चार पायलटों का चयन हो चुका है, जो गगनयान में जाएंगे। शानदार बात यह है कि गगनयान जैसा महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट महज 600 करोड़ रुपये में पूरा होने जा रहा है। जबकि इतनी रकम दुनिया के दूसरे देश इतने महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स की रूपरेखा बनाने में ही खर्च कर देते हैं।कुल मिलाकर इसरो ने अपने शानदार इतिहास के अनुरूप ही साल के पहले दिन ही साबित कर दिया है कि अपनी आंशिक असफलता से वह न तो टूटा है और न ही उसका हौसला कम हुआ है- न दैन्यम, न पलायनम। इसरो के इस महत्वाकांक्षी अभियान की घोषणा ने भारतीयों को एक बार फिर गर्व और सम्मान से भर दिया है। क्योंकि सबको पता है इसरो आजतक अपने किसी प्रोजेक्ट में दूसरी बार असफल नहीं हुआ। इसलिए चंद्रयान-3 को हर हालत में सफल होना ही है।