भारत में ई-बाजार के खिलाफ बढ़ता गुस्सा !


भारत में ई- बाजार तेजी से बढ़ रहा है जिसकी वजह से कुटीर और ट्रेडिशनल बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है। अर्थव्यवस्था में बाजार एक अहम कड़ी हैं लेकिन इसका विकेंद्रीकरण हो चला है। यूं कहें तो ग्लोबल दुनिया में पूरा बाजार मुट्ठी में हो गया है। अब भोजन से लेकर जीवन की आडर्न और माडर्न सुविधाएं आपके बेडरूम में फैली हैं। 
आपके पास पैसा है तो जोमैटो और स्वीगी जैसी सुविधाएं कुछ मिनटों में आपकी डायनिंग टेबल पर होंगी। शहर तो शहर, गांव की झोंपड़ी तक अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील जैसी कम्पनियां चाहत, पसंद और सुविधा के अनुसार डिलीवरी कर रहीं हैं।  आनलाइन बाजार ग्राहक को खुला विकल्प दे रहा है। चाइस की आजादी है और बाजार से कम कीमत पर सामान और सुविधाएं उपलब्ध हैं। यह दीगर बात है कि उसमें टिकाऊपन कितना है। भारतीय परंपरागत बाजार में छायी मंदी का यह भी एक बड़ा कारण है लेकिन ग्लोबल होती दुनिया में ई- बाजार की पैठ तेजी से बढ़ रहीं हैं जबकि ट्रेडिशनल बाजर डूब रहा है। हालात ये हैं कि चाइना हमारे बाजार पर पूरी पकड़ बना चुका है। चीन से भारत का व्यापार घाटा बढ़ता जा रहा है।  भारत में आनलाइन बाजार काफी जडं़े जमा चुका है। इसका सबसे बड़ा खामियाजा छोटे व्यापारियों को उठाना पड़ रहा है। कुटीर उद्योग दम तोड़ रहे हैं जिसकी वजह से इस क्षेत्र में लगे लोगों के पास रोजी- रोटी का संकट खड़ा हो गया है। भारत में ट्रेडिशनल व्यापार की असीम सम्भावना है लेकिन सरकारें उस पर ध्यान नहीं दे रही हैं। ऐसे में उद्योग और उद्यमियों को आगे लाने के लिए सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है। कुछ योजनाएं हैं भी तो वे दमतोड़ रही हैं। स्किल इंडिया स्कीम का थोड़ा असर दिखता है लेकिन बेरोजगारी दर लगातार बढ़ रही है। भारत में निम्नतम स्तर पर यह आंकड़ा पहुँच गया है।  मुद्रा योजना अच्छी है पर बैंकों से सीधे कर्ज लेना आसान नहीं है। बिचौलियों की वजह से कर्ज की काफी राशि कमीशन में चली जाती है। अधिक से अधिक लोग सरकारी नौकरी पसंद करते हैं। उनकी शिक्षा काम में बाधा बनती है। कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकारों के पास कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है। वालेट संस्कृति ई- बाजार के लिए वरदान साबित हुई है। होम डिलीवरी और पसंद की आजादी ई- बाजार को बढ़ा रही है। एक सामान जब तक न पसंद आए, उसकी घर में डिलीवरी पाई जा सकती है। दूसरी वजह आज की युवा पीढ़ी के पास समय का बेहद अभाव है। वह जिंदगी में इतना उलझी है कि वह अपने परिवार के लिए समय नहीं निकाल पाती। वह भौतिकवाद की सारी वस्तुओं के साथ भोजन तक की होम डिलीवरी करा रही है।
भारत के साथ दुनिया में ई- बाजार की सीमाएं निर्धारित होनी चाहिए क्योंकि खुले बाजारवाद में हमें देसी और कुटीर उद्योगों को उस स्पर्धा में खड़ा करना होगा। सरकार को मझोले व्यापारियों की नाराजगी का हल निकालना चाहिए। देश में  कुटीर उद्योग और उद्यमियों को बचाया जा सके इसके लिए आनलाइन बाजार पर नियंत्रण जरूरी है।