अनुशासन से ही बनेगा कोरोना मुक्त स्वस्थ भारत 

अनुशासन स्वस्थ समाज का आधार है। अनुशासन से ही मनुष्य, परिवार, संस्था, समाज व राष्ट्र का कल्याण हो सकता है। अनुशासन अर्थात बिना किसी डर या दबाव के सारे क्रिया-कलापों में नियमों व तर्कसंगत परम्पराओं पर आधारित जीवन शैली अपनाना। यह चरित्र की आदर्श (उत्तम) की अवस्था है परन्तु सामान्यतया मनुष्य स्वभावत: स्वार्थी होता है, और नियमों के बंधन से आजादी चाहता है। यह मानव स्वभाव की वास्तविक अवस्था है। जब महत्वाकांक्षा की पूर्ति व स्वार्थ सिद्धि हेतु मनुष्य अनुशासन का उल्लंघन करता है, तो यही भ्रष्ट आचारण या भ्रष्टाचार कहा जाता है। यह चारित्रिक पतन की अवस्था है।  विज्ञान में ऊष्मागति के नियमानुसार ऊष्मा उच्च तापक्रम से निम्न तापक्रम की ओर स्वत: संचरित होती है, परन्तु निम्न तापक्रम से उच्च तापक्रम की ओर संचारण के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह प्रकृति का नियम है। इसी प्रकार महत्वाकांक्षा की पूर्ति व स्वार्थ सिद्धि हेतु मानव का चारित्रिक पतन प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसके विपरीत, पतित चरित्र से उत्तम चरित्र की स्थिति प्राप्त करने के लिए अनुशासन का पालन करने, व आत्म निरीक्षण द्वारा निरन्तर सुधार का प्रयास करना पड़ता है। नहीं तो प्रशासन व न्यायपालिका दण्डित कर अनुशासन पालन हेतु बाध्य करते हैं।  पिछले कुछ महीनों से सम्पूर्ण विश्व कोरोना विषाणु जनित महामारी से त्रस्त है। भारत में 25 मार्च से देशव्यापी लाकडाउन (बंदी) लागू है। अधिकांश देशवासी लाकडाउन का पूरी निष्ठा से पालन कर रहे हैं। अस्पताल प्रशासन, चिकित्सक, पैरा मैडिकल स्टाफ, पुलिस, मीडियाकर्मी, सफाई कर्मी, दूध, फल, सब्जी व किराना व्यापारी आदि सभी कोरोना योद्धा महामारी से देश को बचाने में योगदान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री के आह्वान पर समय.समय पर समाज एकजुटता के साथ कोरोना-योद्धाओं के प्रति सम्मान भी प्रकट करते हैं। इन छोटे-छोटे प्रयासों से संकट की घड़ी में आत्मविश्वास बढ़ता है, व सरकारी तंत्र में समाज के प्रति उत्तरदायित्व बोध दृढ़ होता है। इस प्रकार सामूहिक प्रयास से भारत में महामारी नियंत्रण में दिखाई पड़ रही है।  भारत लगभग 135 करोड़ की विशाल जनसंख्या व सीमित संसाधनों वाला देश है। इस महामारी से जल्द से जल्द छुटकारा मिलना चाहिए, वरन् यहां बार-बार हाथ धोने के लिए पानी भी नहीं मिल पायेगा। देशबंदी का दुष्प्रभाव भारी संख्या में दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा है। इनमें अधिकांश इस समय सरकारी या गैर सरकारी शिविरों में रहते हुए फ्री सुविधा से काम चला रहे हैं परन्तु यह व्यवस्था लम्बे समय तक चल पाना कठिन है क्योंकि इसके लिए धन तो चाहिए ही, सेवा कार्य में लगे लोगों का स्वस्थ व उत्साहित रहना भी आवश्यक है। रोगियों का इलाज करते समय चिकित्सक व पैरामेडिकल स्टाफ  भी संक्रमित हो रहे हैं। इससे महामारी की रोकथाम व रोगियों का इलाज और कठिन होता जा रहा है। यह चिन्ता का विषय है। हाल के दिनों में अपराध की अप्रत्याशित घटनायें देखने में आयी हैं। सामाजिक दूरी बनाये रखने व भीड़ न लगाने के सरकारी दिशा-निर्देशों के बावजूद मार्च में दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित तबलीगी जमात के सेंटर (मरकज)में हजारों की संख्या में लोगों की मौजूदगी आपराधिक घटना है। जमातियों को मरकज के मौलाना द्वारा (महामारी की रोकथाम के) सरकारी प्रयासों के विरुद्ध उकसाना गम्भीर अपराध है। भीड़ में कोरोना संक्रमित लोगों का शामिल होना, व जमातियों का देशभर में घूमकर जान-बूझकर संक्रमण फैलाने का प्रयास करना, प्रशासन को चुनौती देना है। इन जमातियों की पहचान कर आइसोलेट करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती था, और आज भी है। इतना ही नहीं, इनका प्रशासन को सहयोग न करना, मैडिकल स्टाफ व पुलिस के काम में बाधा पहुंचाना, अभद्र व्यवहार करना, व उन पर हमले करना आदि राष्ट्र-द्रोह से कम नहीं कहा जा सकता।  रक्त में एक भी पैरामीटर रेंज (मर्यादा) के बाहर होते ही शरीर अस्वस्थ हो जाता है, और सन्तोषजनक स्वास्थ्य के लिए इसे चिकित्सा द्वारा रेंज में पुन: स्थापित करना पड़ता है। यद्यपि आपराधिक तत्वों की संख्या बहुत कम है, तथापि कोरोनामुक्त स्वस्थ भारत बनाने के लिए इन्हें कानूनी कार्रवाई द्वारा अनुशासन के दायरे में लाना ही होगा। अप्रत्याशित आपराधिक घटनाओं पर नियंत्रण हेतु कानूनी व्यवस्था को अपडेट करना होगा, व सोशल मीडिया का नियमन भी करना होगा।  
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