प्रतिभावान नृत्यांगना एवं अदाकारा ज़ोहरा सहगल

रंगमंच, टैलीविज़न और फिल्म जगत की महान हस्ती ज़ोहरा सहगल का जन्म 27 अप्रैल, 1912 को उत्तर प्रदेश के शहर रामपुर में हुआ था और उनका पूरा नाम ज़ोहरा मुमताज़ुल्लाह खान ब़ेगम था। बचपन से ही बेहद नटखट स्वभाव की मालकिन ज़ोहरा की पढ़ाई-लिखाई एवं पालन-पोषण देहरादून के पास चकराता नामक कस्बे में हुआ था।ज़ोहरा ने अभी बचपन की दहलीज़ पार ही की थी कि उनकी मां का देहांत हो गया। मां की इच्छानुसार ज़ोहरा को लाहौर के सेंट मैरी कालेज में पढ़ने के लिए भेज दिया। वहां पर ज़ोहरा को प्रसिद्ध नृत्य कला उस्ताद पंडित उदय शंकर की नृत्य-नाटिका ‘शिव-पार्वती’ को देखने का अवसर मिला। वह इस नाटिका को देखकर इस कद्र प्रभावित हुईं कि उन्होंने पंडित जी से मुलाकात करके उनके समूह में काम करने की इच्छा व्यक्त कर दी।वर्ष 1940 में पंडित उदय शंकर ने उन्हें भारत में बुलाया और उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा में चल रहे अपने एक सांस्कृतिक केन्द्र में बतौर अध्यापिका नियुक्त कर दिया। यहीं पर ज़ोहरा की मुलाकात चित्रकार व अदाकार श्री कामेश्वर सहगल से हुई। ज़ोहरा को श्री सगहल से मुहब्बत हो गई और फिर वे दोनों परिणय सूत्र में बंध गए।सन् 1945 में रंगमंच की दीवानी ज़ोहरा सहगल ने प्रसिद्ध अदाकार पृथ्वी राज कपूर के पृथ्वी थिएटर (रंगशाला) की सदस्यता ले ली और अगले 15 वर्ष तक भारत के विभिन्न शहरों में नाटकों का मंचन कर लोकप्रियता हासिल की। इसके साथ ही उन्होंने प्रसिद्ध नाट्य संस्था ‘इप्टा’ का हिस्सा बनने श्रेय भी हासिल कर लिया था। इप्टा की ओर से प्रसिद्ध लेखक-निर्देशक ख्वाज़ा अहमद अब्बास के निर्देशन में बनाई गई फिल्म ‘धरती के लाल’ में ज़ोहरा ने अपनी नृत्य एवं अदाकारी के ज़ौहर दिखाए और फिर इप्टा की ही दूसरी पेशकश ‘नीचा नगर’ में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। सुप्रसिद्ध फिल्मकार चेतन आनंद के निर्देशन में बनी इस फिल्म को अन्तर्राष्ट्रीय कान्ज़ फिल्म फैस्टीवल में भरपूर प्रशंसा प्राप्त हुई थी।इसके बाद ज़ोहरा ने फिल्म अदाकार व निर्देशक गुरुदत्त की फिल्म ‘बाज़ी’ में बतौर नृत्य निर्देशिका का काम किया और साथ ही उन्हें राज कपूर की फिल्म ‘आवारा’ के स्वपन दृश्य की सृजना करने का अवसर भी मिला। लंदन में कई टी.वी. धारवाहिकों में प्रमुख भूमिकाएं अदा करने वाली ज़ोहरा ने जिन बड़ी हिन्दी फिल्मों में काम किया उनमें ‘़फरेब’, ‘राहगीर’, ‘हीर’, ‘पैसा’, ‘दिल से’, ‘हम दिल दे चुके सनम’, ‘दिल्लगी’, ‘साया’, ‘चलो इश्क लड़ाएं’, ‘कल हो न हो’, ‘चीनी कम’, ‘वीर-ज़ारा’ और ‘सांवरिया’ इत्यादि के नाम प्रमुख हैं।रंगमंच एवं फिल्म जगत की इस महान ़फनकारा को विभिन्न पुरस्कारों व सम्मानों से नवाज़ा गया था जिनमें ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1963), पदमश्री (1998), कालीदास सम्मान (2001), पदम भूषण (2002), संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप (2004) और पदम विभूषण (2010) भी शामिल थे। बेहद हंसमुख स्वभाव की इस सुल्झी हुई फनकारा का 10 जुलाई 2014 को निधन हो गया था।’

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प्रो. परमजीत सिंह