हाकी मैदान में युग-पुरुष थे बलबीर सिंह

हाकी का युग पुरुष बलबीर ंिसंह 97वें वर्ष की आयु में जाते समय फतेह बुला गए। उन्होंने पहली सांस 31 दिसम्बर, 1923 की रात को अपने ननिहाल गांव हरिपुर खालसा की फिज़ा में ली थी और अंतिम सांस 25 मई, 2020 की सुबह मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में ली। उनकी बेटी सुशबीर कौर और नाती कबीर सिंह ने बताया कि रात को जब वे अस्पताल से आए तो वह ठीक-ठाक थे परंतु तड़कसार दिल का चौथा दौरा पड़ने से जीवन का खेल खत्म हो गया। बलबीर सिंह की पत्नी सुशील कौर का 1982 में निधन हो गया था। उनके तीन बेटे हैं और एक बेटी। तीनों बेटे इस समय कनाडा में हैं। बेटी के पति विंग कमांडर मलविन्दर सिंह भोमिया का 2012 में निधन हो गया था। गत कुछ वर्षों से बलबीर सिंह अपनी बेटी तथा नाती के पास चंडीगढ़ में रह रहे थे, जो उनकी सेवा संभाल कर रहे थे। उनका इलाज करवाने और सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बलबीर सिंह शारीरिक तौर पर बेशक नहीं रहे परंतु उनका नाम सदा अमर रहेगा। 
हाकी के ‘गोल किंग’ बलबीर सिंह का जन्म उनके ननिहाल गांव हरिपुर खालसा में हुआ था। उनका दादका गांव पवादड़ा है। दोनों गांव तहसील फिल्लौर में हैं। 
बलबीर सिंह के साथ मेरी मुलाकात व बातचीत होती रहती थी। उस बातचीत में से ही पुस्तक ‘गोल्डन गोल’ निकली थी, जो संगम पब्लिकेशन पटियाला ने प्रकाशित की। वह कहते थे, ‘मैं पीछे नज़र डालता हूं तों मुझे मेरा ननिहाल गांव हरिपुर याद आता है। वहां मैंने गांव के बच्चे खिद्दो-खुंडी खेलते देखे। पांच वर्ष का था जब मोगा गया। वहां मेरे पिता जी अध्यापक थे। मैं लड़कों को स्कूल के मैदान में हाकी खेलते देखता। हाकी मुझे मैसमराइज़ कर देती। मुझे होश न रहती कि धूप में बैठा हूं या छाया में? फिर मेरा जन्म दिन आया। पिता जी ने पूछा, कौन सा खिलौना लोगे? मैंने हाकी की मांग की, जो मुझे जन्म दिन के तोहफे के रूप में मिली। वह दिन और यह दिन, हाकी मेरा इश्क है....। मुझ पर परमात्मा की रहमत है जिसने मुझे मेहनत करना तथा बड़ों का आदर करना सिखाया। मैं जो कुछ हूं अपने माता-पिता, अध्यापकों, कोच साहिबान, टीम के साथियों, दोस्तों-मित्रों तथा परिवार के सहयोग की बदौलत  हूं। मेरी बड़ी जीतें सुशील के साथ विवाह करवाने के बाद की हैं। मैं अक्सर कहता मेरी एक पत्नी सुशील थी और दूसरी हाकी। परंतु सुशील ने हाकी को सौतन समझने की बजाय बहन समझा।’
बलबीर सिंह को ओलम्पिक खेलों में तीन स्वर्ण पदक जीतने के कारण ‘गोल्डन हैट्रिक’ वाला बलबीर कहा जाता है। हैलिंस्की-1952 के ओलम्पिक खेलों में सैमीफाइनल तथा फाइनल मैच में भारतीय टीम के 9 गोलों में से 8 गोल उनकी स्टिक से हुए थे। वहीं हालैंड के खिलाफ फाइनल मैच में भारतीय टीम के 6 गोलों में से 5 गोल थे, जो ओलम्पिक खेलों का 68 वर्ष पुराना रिकार्ड है। उससे पहले फाइनल मैच में सब से अधिक गोल करने का रिकार्ड इंग्लैंड के रैगी प्रिडमोट का थी। उसने लंदन-1908 के ओलम्पिक खेलों के फाइनल मैच में 8 में से 4 गोल किये थे। बर्लिन-1936 के ओलम्पिक खेलों के फाइनल में ध्यानचंद के 8 गोल थे। 
लंदन ओलम्पिकस-2012 की ओलम्पिक प्रदर्शनी के लिए ओलम्पिक खेलों के सफर में से जो 16 ‘आईकॉनिक ओलम्पियन’ चुने गये, उनमें बलबीर सिंह भी थे। पूरी दुनिया में वह हाकी के एकाएक खिलाड़ी थे, जिसे यह सम्मान मिला। अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी ने तो उनको ओलम्पिक रत्न बना ही दिया था, भारत सरकार ने पता नहीं क्यों उनको ‘भारत रत्न’ नहीं बनाया? उनके जीवन की कुछ यादगारी घटनाओं में से प्रमुख घटनाएं ये भी हैं। 
* लास एंजल्स-1984 के ओलम्पिक खेलों में भारत का हाकी मैच होने लगा तो कुछ दर्शकों ने तिरंगे उठाए हुए थे। अश्विनी कुमार ऊपर बैठे थे और बलबीर सिंह एक कतार में नीचे बैठे थे। भारत के विरुद्ध नारे लगाते हुए एक नौजवान ने किसी से तिरंगा छीना और पांवों तले रौंदने लगा। बलबीर सिंह ने भाग कर झंडा उसके पांवों के नीचे से खींच लिया। वह तिरंगे की बेअदबी न सह सके जो वह ओलम्पिक खेलों में झुलाते रहे थे। नौजवान ने कश्मकश में तिरंगा फाड़ना चाहा। तब तक पुलिस आ गई, जिस ने स्थिति संभाल ली। 
* लास एंजल्स से पाकिस्तान की हाकी टीम ने स्वर्ण पदक जीत लिया था। पाकिस्तान के कराची में ओलम्पिक विजेता टीम का रैस्ट ऑफ द वर्ल्ड टीम से साथ मैच करवाना था। बलबीर सिंह को कराची बुलाया गया और रैस्ट ऑफ द वर्ल्ड टीम का मैनेजर बनाया गया, जिसमें पांच देशों के खिलाड़ी शामिल किये गये। पाकिस्तान का सदर जनरल ज़िया उल हक स्टेडियम में मौजूद थे। उन्होंने बलबीर सिंह को अपने पास बुलाते हुए कहा, ‘बलबीर सिंह मेरे पास आओ, हम दो एक ही क्षेत्र के हैं। आप भी जिला जालन्धर को हो और मैं भी जालन्धर की बस्ती का हूं।’