घाटे की पूर्ति

पिछले महीनों से कोरोना महामारी के चलते हुये जिस प्रकार केन्द्र एवं प्रदेश सरकारें बड़े संकटों में घिरी रहीं, उसका  वृत्तांत सभी को पता है। इस समय के दौरान प्रदेश की मुख्य फसल गेहूं के मंडीकरण का कार्य जिस प्रकार सम्पन्न हुआ, उसके लिए संबंधित विभाग एवं प्रबन्धन मशीनरी के कार्य के प्रति अवश्य संतोष व्यक्त किया जा सकता है। इसके साथ ही प्रदेश के लिए एक और भी संतोषजनक बात यह है कि यहां इस बीमारी का उतना बड़ा असर नहीं हुआ जितना देश के कुछ अन्य प्रांतों में हुआ दिखाई दे रहा है। इसके लिए जिला स्तर पर प्रबन्धन मशीनरी शाबाश की हकदार है। प्रदेश भर से मिल रहे समाचारों के अनुसार प्रत्येक जिले में सम्बद्ध अफसरों एवं पुलिस की ओर से लगन तथा मेहनत के साथ कार्य किया गया जिसका जन-मानस पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ा है। दूसरी ओर अब चिरकाल के बाद मुख्यमंत्री की ओर से अपने सरकारी कार्यालय में आकर मंत्रिमंडल की बैठक की गई है जिसमें प्रदेश के मुख्य सचिव के साथ कुछ मंत्रियों की आबकारी नीति को लेकर हुई झड़प के संबंध में सुलह-सफाई करवाई गई। इसी मीटिंग में महामारी के कारण हुये नुकसान की भरपाई के लिए केन्द्र सरकार से कुछ मदों के अन्तर्गत बड़ी राशि की मांग भी की गई। महामारी को आधार बना कर जितनी मदों के संबंध में केन्द्र से आर्थिक पैकेज लेने के लिए मांगें उठाई गईं, उससे एक बार तो यह प्रभाव जग-जाहिर हो जाता है कि अब प्रदेश सरकार मांगें करके ही गुज़ारा करने को प्राथमिकता दे रही है। प्रदेश के अपने आर्थिक साधनों पर आश्रय रखने की बात वह अब भूलती जा रही है।  अपनी आर्थिकता को दृढ़ करने के लिए प्रदेश के पास जो अपने साधन मौजूद हैं, उनका बेहतर इस्तेमाल कैसे हो सकता है, इस संबंध में खुल कर विचार-विमर्श नहीं किया गया। उदाहरण के तौर पर आबकारी नीति में ही सरकार को किन कारणों के दृष्टिगत कितना घाटा पड़ने की सम्भावना बन गई है, इसके प्रति अधिक चिन्ता प्रकट नहीं की गई। आज यह छोटा-सा प्रांत भारी ऋण बोझ के तले दबा हुआ दिखाई देता है जिसका ब्याज देते हुए ही इसकी कमर दोहरी हो जाती है। विचारणीय बात यह है कि पिछली सरकारें एवं वर्तमान सरकार ने ऋण के इस बोझ को निरन्तर इतना भारी क्यों होने दिया जिसके दृष्टिगत प्रदेश के विकास के अधिकतर कार्यों को सूखा पड़ गया दिखाई देता है।लोगों के वोट बटोरने के लिए तथा वाहवाही हासिल करने के लिए जिस प्रकार मुफ्त में सरकारी खज़ाना लुटाया जाता रहा है, उसने भी प्रदेश के खज़ाने को काफी हद तक खाली किया है। दूसरी ओर रेत-बजरी माफिया, शराब माफिया एवं अन्य क्षेत्रों में पाये जाते भिन्न-भिन्न प्रकार के माफियाओं को नियंत्रित करके खज़ाने की आय बढ़ाने के लिए बड़े पग उठाने का साहस भी इस सरकार के पास दिखाई नहीं दे रहा। इसी कारण सरकार से जुड़े सभी प्रकार के अदारे भी ऋण के बोझ तले दबे हुए हैं। शिक्षा एवं स्वास्थ्य की आधारभूत सुविधाओं की कमी भी बुरी तरह से खटकने लगी है। प्रदेश की हो गई ऐसी व्यवस्था का घड़ा केन्द्र सरकार के सिर पर ही नहीं फोड़ा जा सकता। इसके लिए प्रदेश सरकार को प्रत्येक क्षेत्र में ज़ाब्ता बनाकर सार्थक परिणाम हासिल करने होंगे ताकि प्रदेश को दशकों से हो रहे घाटे की कुछ सीमा तक पूर्ति हो सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द