" आज विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष " पर्यावरण के प्रति अगर हम आज भी नहीं संभले तो देर हो जाएगी

संगरूर : इत्तेफाक की बात है कि जब मैं यह पंक्तियां लिख रहा था तो आज उस महान पर्यावरण चिंतक भगत पूर्ण सिंह जी का जन्मदिवस है। संयुक्त राष्ट्र की महासभा के दौरान 1972 में पर्यावरण को बचाने के लिए बहुत लम्बी चर्चा हुई। चर्चा के दौरान फैसला किया गया कि लोगों को सुचेत करने के लिए वर्ष में एक विशेष दिन पर्यावरण को समर्पित किया जाए। 5 जून, 1974 को यह दिन मनाना शुरू किया गया और 143 देशों में यह दिन मनाकर मानवता के लिए बज रही खतरे की घंटी के प्रति लोगों को जागरूक करने का प्रयास शुरू किया गया।
स्थिति यह है कि हर वर्ष दुनिया में पर्यावरण प्रदूषण के कारण 70 लाख से ज्यादा लोगों की जान का नुक्सान होता है और बच्चों की सही ज़िंदगी पर सवालिया निशान लग जाता है। दुनिया के अलग-अलग देशों में दिव्यांग व मंदबुद्धि बच्चे पैदा होने की रफ्तार तेज़ी से बढ़ रही है। धरती, पानी, आकाश, हवा, आवाज़ सब प्रदूषित हो रहे हैं। परिणामस्वरूप दिल, मेदा, कान, आंख और चमड़ी के रोगों में चिंताजनक बढ़ौतरी हो रही है। धरती का बढ़ रहा तापमान हम झेलने लग पड़े हैं, परंतु एक बात का ध्यान रखना है कि आने वाली हमारी दूसरी पीढ़ी से यह सबकुछ बर्दाश्त नहीं होगा। हवा के प्रदूषण कारण ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ रहा है। परिणाम देखें तो लगातार बाढ़, भूकम्प व सुनामी जैसी घटनाएं होने लगी हैं। इस एक माह दौरान मुम्बई में दो बार तूफान आना इसी खतरे की घंटी की निशानी है।दुनिया के पर्यावरण पक्ष से सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में केवल भारत में ही 14 शहर हैं, जहां की हवा, पानी और ध्वनि गंभीर प्रदूषित हो चुके हैं। इस पक्ष से हमारे गांव भी पीछे नहीं रहे हैं। धान की बिजाई के लिए अंधाधुंध इस्तेमाल किया जा रहा पानी धरती को खुश्क कर रहा है। धान के खेतों में लगातार खड़े पानी के कारण मीथेन गैसों का फैलाव हो रहा है व रहती कसर पराली को आग लगाकर पूरी कर दी जाती है। साइंटिफिक अवेयरनैस एंड सोशल वैल्फेयर फोरम के प्रधान डा. ए.एस. मान का कहना है कि अगर हम आज भी न सम्भले तो आने वाले 10 वर्षों तक हर घर में दमे के मरीज़ मिलेंगे।मैं फिर कृषि की तरफ आता हूं। ज़हरीली खादों और कीटनाशक दवाईयों का अंधाधुंध प्रयोग न केवल धरती को बंजर कर रही है, बल्कि इन फसलों का प्रयोग मनुष्य और पशुओं के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। सरकारों को चाहिए  कि जैविक खेती या प्राकृतिक को उत्साहित किया जाए, परंतु कैमिकल खादों और कीड़ेमार दवाईयां की बड़ी कम्पनियों को नकेल डालना शायद आज के समय में हमारे बस से बाहर है, क्योंकि इनकी पहुंच बहुत ऊंची होती है। इसका मतलब यह नहीं कि है कि हमें हाथ पर हाथ रख कर चुप हो जाना चाहिए। भगत पूर्ण सिंह जैसे हमें भी एक आंदोलन छेड़ने की ज़रूरत है, ताकि पर्यावरण चिंतकों का संदेश लोगों तक पहुंचा सकें। यदि हम अभी भी नहीं संभले तो हम पर्यावरण को बचाने के लिए, मानवता के हितों के लिए बहुत देर कर चुके होंगे।

प्रेषक : सुखविन्दर सिंह फुल्ल, 
इंचार्ज
अजीत उप-कार्यालय, संगरूर। मोबाइल नंबर : 98142-82543