भारत में बाल मज़दूरी की बढ़ती समस्या

दुनिया में आज 15 करोड़ से ज्यादा बच्चे बाल मजदूरी करने को मजबूर हैं।  अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की इस रिपोर्ट में एक चौंकाने बाली बात यह भी है कि इन 15 करोड़ में से एक करोड़ से ज्यादा बाल मजदूर भारत में हैं। यह आंकड़ा 2011 की जनगणना का है। 2011 से लेकर आज तक हालात बिगड़ रहे हैं, यानी बाल मजदूरों की संख्या घटने के बजाय इसमें साल दर साल लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। हम 21वीं सदी में जी रहे हैं। दुनिया तरक्की के पथ पर अग्रसर है, लेकिन देश और दुनिया से बाल मजदूरी का अंत पता नहीं कब होगा। हर साल 12 जून को दुनियाभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस’ मनाया जाता है। इस दिवस की शुरुआत साल 2002 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ओर से बाल मज़दूरी के खिलाफ जागरूकता फैलाने और 14 साल से कम उम्र के बच्चों को बाल मजदूरी से निकालकर उन्हें शिक्षा दिलाने के उद्देश्य से की गई थी । हर साल देश में हज़ारों मासूम बच्चों को उनके परिवारों से अलग कर बाल मजदूर बना दिया जाता है।  बांग्लादेश, नेपाल सहित सीमा से सटे देशों से नाबालिग बच्चों को गैरकानूनी रूप से भारत लाया जाता है। इन मासूमों को या तो मजदूर बना दिया जाता है या फिर नाबालिग लड़कियों को वेश्यावृत्ति के रास्ते पर चलने को मजबूर किया जाता है। कम से कम दामों में बच्चों की खरीद-फरोख्त की जाती है। कई बार इन मासूमों की कीमत पालतू जानवरों से भी कम होती है। इन बच्चों को बदतर स्थिति में रखा जाता है। हालांकि देश में बाल मजदूरी के खिलाफ कानून सख्त है।  विकास योजनाओं के लक्ष्यों में बाल मजदूरी को 2025 तक समाप्त कर करने का लक्ष्य रखा गया है। बालश्रम के विरुद्ध फैक्टरी कानून 1948 में,बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986 में बनाया गया तथा साल 2016 में बदलाव करके इसे और सख्त बनाया गया।  जिला बाल कल्याण समिति यां उपेक्षित बच्चों, बाल श्रमिकों का पुनर्वास करवाती हैं। समिति अध्यक्ष को मैजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त होती हैं, जिसके तहत वे कहीं भी कार्रवाई कर बाल श्रमिकों को मुक्त करवाकर उनका पुनर्वास कर सकते हैं। नोबल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा संचालित ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में लगभग 7 से 8 करोड़ बच्चे अनिवार्य शिक्षा से वंचित हैं। इसके अनुसार, अधिकतर बच्चे संगठित अपराध रैकेट का शिकार होकर बाल मजदूरी के लिए मजबूर किए जाते हैं जबकि बाकी बच्चे गरीबी के कारण स्कूल नहीं जा पाते। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 5 से 14 साल के 26 करोड़ बच्चों में से एक करोड़ बाल श्रम के शिकार हैं। बाल श्रम कानून तो बस किताबों में ही दब के रह गया है।  छोटे-छोटे बच्चे हर छोटे मोटे होटलों व ढाबों पर कप-प्लेट उठाते मिल जायंगे। जिन नन्हे हाथों में किताबें होनी चाहिए थीं, वो चाय के कप धोते नजर आते हैं। इसका एक कारण इन बच्चों की मजबूरियां हैं। बालश्रम आज एक चुनौतीपूर्ण सामाजिक समस्या बन चुकी है जो चेतना की कमी, गरीबी और निरक्षरता से जुड़ी हुई है। इस समस्या के समाधान के लिए समाज के सभी वर्गों द्वारा सामूहिक प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। बालश्रम कराना अपराध है। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से साफ कह देना चाहिए कि यदि वे बच्चों का शोषण बन्द नहीं करते  तो उनसे कुछ भी नहीं खरीदेंगे। बाल-श्रम से मुक्त हुए बच्चों के पुनर्वास और शिक्षा के लिए सहायता करने में मदद की जानी चाहिए। जिन घरों/प्रतिष्ठानों में बाल श्रमिक हैं,  उनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए। 

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