कोविड के बाद बढ़ गई हैं हृदय संबंधी समस्याएं

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत सहित दुनियाभर में तेज़ी से फैल रहे कोरोना वायरस के जेएन-1 को अलग ‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ घोषित किया है, जबकि इससे पहले उसे एक अन्य ‘वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ बीए-2.86 के ही सब-वैरिएंट के तौर पर ही वर्गीकृत किया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अकेले दिसम्बर 2023 में कोविड-19 से विश्व स्तर पर 10,000 मौतें हुई हैं। हालांकि भारत में जेएन-1 से मरने वालों की संख्या दर्जन से अधिक नहीं है, लेकिन इससे संक्रमित होने वालों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है। 11 जनवरी, 2024 तक भारत के 12 राज्यों से जेएन-1 संक्रमण के कुल 827 केस रिपोर्ट किये गये, जिनमें से 250 केस महाराष्ट्र से हैं, 199  कर्नाटक से, 155 केरल से, 49 गोवा से, 36 गुजरात से, 30 आंध्र प्रदेश से, 30 राजस्थान से, 26-26 तमिलनाडु व तेलंगाना से, 22 दिल्ली से, 3 ओडिशा से और एक हरियाणा से है। केंद्र ने राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों से कड़ी निगरानी रखने विस्तृत दिशा-निर्देशों का सख्ती से पालन करने का आग्रह किया है, जिन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने अपनी संशोधित कोविड-19 निगरानी योजना के तहत जारी किया है, लेकिन इससे भी अधिक ज़रूरी है कि केंद्र जल्द से जल्द कोविड के बाद हृदय स्वास्थ्य संबंधी दिशा-निर्देश जारी करे क्योंकि जो नवीनतम अध्ययन प्रकाश में आये हैं, उनमें कोविड-19 संक्रमण और हृदय समस्याओं के बीच स्पष्ट संबंध मिले हैं।
पिछले लगभग एक वर्ष से ऐसी बेशुमार खबरें व वीडियोज निरन्तर सामने आये हैं जिनसे मालूम हुआ कि व्यक्ति चलते चलते या खेलते हुए अचानक गिरा और मर गया। इनमें युवाओं की संख्या अधिक थी। इन अचानक मौतों के लिए कोविड वैक्सीन पर शक किया जा रहा था, जिसकी अधिकारिक तौर पर कभी पुष्टि नहीं हुई, न राष्ट्रीय स्तर पर और न ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, लेकिन अब जो अध्ययन सामने आ रहे हैं, उनमें कोविड-19 संक्रमण और हृदय समस्याओं के बीच संबंध के संकेत अवश्य मिल रहे हैं। इसलिए इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। तकरीबन एक साल की शांति के बाद विश्व स्तर पर कोविड-19 संक्रमणों में निरन्तर इजाफा होता जा रहा है, जिसकी वजह जेएन-1 वैरिएंट बतायी गई है। यह वैरिएंट कम घातक तो है, लेकिन अधिक संक्रामक है। कोविड-19 केसों में तेज़ी जग ज़ाहिर है, विशेषकर इसलिए भी कि क्रिसमस व नव वर्ष की छुट्टियों में रिकॉर्ड संख्या में लोगों ने यात्रा की है। 
ऐसे में अपनी सेहत सुरक्षा को वरीयता देना अनिवार्य है, क्योंकि बार बार कोविड-19 संक्रमण होने से वैस्कुलर रोगों का खतरा बढ़ जाता है, खासकर कार्डियोवैस्कुलर समस्या का, जिसका संबंध दिल से है। कोविड-19 के कारण जो त्वरित और दीर्घकालीन खतरे उत्पन्न होते हैं, उनकी समझ व जानकारी अब पहले से कहीं अधिक हो गई है। बहुत बड़ी संख्या में लोग इस वायरस से संक्रमित हुए हैं। इस सिलसिले में जो अध्ययन किये गये हैं, उनसे मालूम होता है कि गंभीर कोविड-19 संक्रमण और हृदय समस्याओं के बीच लिंक है, जिनमें सबक्लिनिकल चिंताओं से लेकर अधिक गंभीर स्थितियां तक शामिल हैं। महामारी के पहले दो वर्षों के दौरान (मार्च 2020 से मार्च 2022) दुनियाभर में कार्डियोवैस्कुलर संबंधी मौतों में ज़बरदस्त वृद्धि हुई थी। एक अध्ययन में विशेषरूप से यह बात सामने आयी कि हार्ट अटैक मौतें 25 से 44 वर्ष आयु वर्ग के व्यक्तियों में अधिक बढ़ी हैं। भारत में भी हार्ट अटैक्स में इजाफा हुआ है, विशेषकर उनमें जो कोविड-19 से रिकवर हुए हैं। इससे कोरोना वायरस संक्रमण और हृदय मुद्दों के बीच संबंध स्थापित होता है। दरअसल, वायरस आर्टरी की दीवारों और मैक्रोफेजिस को प्रभावित करता है, जिससे हार्ट अटैक व स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि प्लेक फार्मेशन में सूजन आ जाती है। इसके अतिरिक्त कोविड-19 से कार्डियोमायोपथी हो जाती है जो दिल के पम्प करने के कार्य को प्रभावित करती है।
इस सिलसिले में एक उल्लेखनीय अध्ययन स्विट्ज़रलैंड की बासेल यूनिवर्सिटी का है, जो यूरोपियन जर्नल ऑफ हार्ट फेलियर के 2023 अक्तूबर अंक में प्रकाशित हुआ था। यह इस समझ में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। इस अध्ययन में उन व्यक्तियों पर फोकस किया गया जिन्होंने पहली बूस्टर वैक्सीन (एमआरएनए) ली थी। इन व्यक्तियों में से 2.8 प्रतिशत को दिल में सूजन हुई या दिल की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा। हालांकि इस अध्ययन में केस हल्के या अस्थायी थे, लेकिन उनका दीर्घकालीन प्रभाव अनिश्चित है। यह वृद्धि चिंताजनक है और इस पर ध्यान देने की ज़रूरत है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस अध्ययन में उन व्यक्तियों की भी जांच की गई जिनमें कोई लक्षण नहीं थे। जिन्हें हृदय समस्याओं का अनुभव हुआ, उन्होंने अपने हार्ट मॉनीटर्स (ईकेजी) पर असामान्य लक्षण प्रदर्शित नहीं किया, लेकिन उनके रक्त में कार्डियक ट्रोपोनिन पदार्थ की बढ़ी हुई मात्रा पायी गई, जो इस बात का संकेत है कि उनके दिल को नुकसान पहुंचा है, विशेषकर पेरीकारडाइटिस और मायोकारडाइटिस।
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