किसान आन्दोलन के कारण अकाली दल एवं राष्ट्रीय लोक दल की समस्या बढ़ी

जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिह को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान किया उस दिन ऐसा लग रहा था कि अब भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन का ऐलान होने ही वाला है। रालोद नेता जयंत चौधरी ने कह भी दिया था कि अब वह किस मुंह से भाजपा के प्रस्ताव को इन्कार करेंगे, लेकिन करीब दो हफ्ते बाद भी गठबंधन की आधिकारिक रूप से घोषणा नहीं हुई है। जयंत चौधरी ने सामने आकर नहीं कहा है कि वह भाजपा के साथ जा रहे हैं। भाजपा भी इस मामले में खामोश है। इसी तरह पंजाब में अकाली दल के साथ भी भाजपा का गठबंधन लगभग तय हो गया था, लेकिन गठबंधन की औपचारिक घोषणा नहीं हो रही है। दरअसल सब कुछ तय होने के बाद भी रालोद और अकाली दल से गठबंधन का ऐलान नहीं हो रहा है, तो इसका कारण किसान आंदोलन है। जब चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया तभी किसानों का आंदोलन शुरू हुआ। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी गारंटी देने के मसले पर किसानों ने प्रदर्शन शुरू किया। अब अकाली दल और रालोद दोनों को भाजपा से गठबंधन तो करना है, लेकिन किसान आंदोलन की मजबूरी में दोनों इसकी घोषणा टाल रहे हैं। वे चाहते हैं कि जल्दी से जल्दी आंदोलन खत्म हो, कोई रास्ता निकले तो वे भाजपा के साथ जाने का ऐलान करें।

विदेशों से मिल रहे निमंत्रण मोदी को नहीं 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में कमाल की बात कही। उन्होंने कहा कि सारी दुनिया ने मान लिया है कि मोदी की ही सरकार बनने वाली है, इसलिए उन्हें जुलाई-अगस्त के महीने में विदेश दौरे के निमंत्रण मिल रहे हैं। मोदी का यह कहना आधा सच और आधा झूठ है। अपने तीसरे कार्यकाल का नैरेटिव सेट करने के लिए इस तरह के अर्धसत्य प्रधानमंत्री लगातार बोल रहे हैं। बहरहाल यह सही है कि भारत को दुनिया भर के देशों से निमंत्रण मिल रहे हैं, क्योंकि वैश्विक कार्यक्रम महीनों पहले तय होते हैं और विभिन्न देशों के प्रधानमंत्रियों व राष्ट्रपतियों को उसका न्योता जाता है। इसलिए भारत को जो न्योते मिल रहे हैं, वे मोदी को नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री को मिल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहें या कोई और, जो पद पर होगा, वह उस न्योते पर जाएगा। मिसाल के तौर पर हर साल सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में दो सौ देशों के राष्ट्राध्यक्ष या शासनाध्यक्ष हिस्सा लेते हैं। इसका न्योता महीनों पहले हर देश को जाता है। इसी तरह इस साल 18-19 नवम्बर को ब्राज़ील में जी-20 की बैठक होनी है। ऐसे ही ब्रिक्स और आसियान सम्मेलन अक्तूबर में क्रमश: रूस और ऑस्ट्रेलिया में होंगे। सम्मेलन के समय जो प्रधानमंत्री होता है, वह उस देश का प्रतिनिधित्व करता है। वैश्विक सम्मेलनों का न्योता किसी नेता या पार्टी को नहीं, बल्कि देश को, सरकार को, प्रधानमंत्री को मिलता है।

चंडीगढ़ के बाद कर्नाटक में दूसरी जीत

विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव में पहली जीत मिली। हालांकि वह जीत बड़ी मशक्कत के बाद और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मिली। यह जीत इसलिए भी अहम है क्योंकि स्पष्ट रूप से धांधली करके जीतने के बाद भाजपा नेताओं ने विपक्षी गठबंधन पर हमला किया था और कहा था कि गठबंधन एक होकर भी भाजपा को नहीं हरा सकता है क्योंकि उनकी न तो गणित अच्छी है और न केमेस्ट्री। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विपक्षी गठबंधन की गणित और केमेस्ट्री दोनों दिखी हैं। चंडीगढ़ के बाद दूसरी चुनावी जीत कर्नाटक में मिली है, जहां कांग्रेस ने भाजपा और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के साझा उम्मीदवार को शिक्षक क्षेत्र के एमएलसी चुनाव में हरा दिया। वह चुनाव भी बहुत प्रतिष्ठा का चुनाव था। तीन बार जेडीएस से और एक बार भाजपा से एमएलसी रहे पी. पुतन्ना से शिक्षकों के लिए आरक्षित एमएलसी की सीट से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उप-चुनाव हुआ तो कांग्रेस ने पी. पुतन्ना को ही उम्मीदवार बनाया जबकि भाजपा ने यह सीट गठबंधन की सहयोगी जेडीएस के लिए छोड़ दी। ये दोनों पार्टियों के लिए परीक्षा की तरह का चुनाव था क्योंकि साथ आने के बाद दोनों पहली बार चुनाव लड़ रहे थे। जेडीएस ने ए.पी. रंगनाथ को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन दोनों पार्टियों के तमाम प्रयास के बावजूद कांग्रेस के पी. पुतन्ना चुनाव जीत गए। लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा और जेडीएस के लिए यह बड़ा झटका है। 

चंडीगढ़ मेयर की जीत कितने समय की?

चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी के कुलदीप कुमार मेयर बन गए। सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी को हुए चुनाव के मतपत्र ही दोबारा गिने और उस समय अवैध कर दिए गए आठ वोट जोड़ कर आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के साझा उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया। भाजपा के मेयर को पद से हटना पड़ा, लेकिन सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को हासिल हुई यह जीत कब तक टिकेगी? यह सवाल इसलिए कि 30 जनवरी को हुए चुनाव के बाद भाजपा को जो समय मिला उसमें उसने आम आदमी पार्टी के तीन पार्षदों को तोड़ कर भाजपा में शामिल कर लिया है, जिससे उसके 17 पार्षद हो गए हैं। उधर आम आदमी पार्टी के पार्षदों के संख्या 10 रह गई है। उसमें कांग्रेस के सात जोड़ेंगे तो संख्या 17 हो जाएगी। इस तरह दोनों का संख्या बल बराबर हो गया है। भाजपा को फायदा यह है कि अकाली दल का एक पार्षद उसके साथ है और ऊपर से चंडीगढ़ के सांसद को भी वोट का अधिकार होता है। सो, भाजपा की सांसद किरण खेर का एक वोट है यानी अब भाजपा के पास 19 वोट है। इसलिए कहा जा रहा है कि भाजपा किसी भी दिन अविश्वास प्रस्ताव लाकर मेयर को हटा सकती है, लेकिन यह आसान नहीं है क्योंकि कानून के मुताबिक अविश्वास प्रस्ताव तभी पेश हो सकता है, जब उस पर कुल पार्षदों में से दो-तिहाई पार्षदों के हस्ताक्षर हों। इतना समर्थन जुटाना फिलहाल भाजपा के मुश्किल है, लेकिन मोदी है तो सब कुछ मुमकिन है। 

फिर किस काम का है आधार

केन्द्र सरकार एक नई अधिसूचना जारी करने जा रही है कि आधार का इस्तेमाल जन्मतिथि के सत्यापन के लिए नहीं हो सकता है। इसी तरह सरकार पहले ही बता चुकी है कि आधार नागरिकता प्रमाणित करने का दस्तावेज नहीं है। पिछले एक दशक में आधार को लेकर जैसा अभियान चला और आधार को जैसे हर व्यक्ति के जीवन का एकमात्र आधार बताया गया, उसके बाद अब उसकी उपयोगिता को लेकर ऐसी बातें हैरान करने वाली हैं। इसीलिए सवाल है कि आधार आखिर किस काम का है? कुछ समय पहले तक हर जगह आधार की ज़रुरत होती थी। यहां तक कि मोबाइल की सिम लेने के लिए भी आधार की अनिवार्यता थी। अब उसे खत्म कर दिया गया है। मनरेगा में मजदूरी के लिए या किसी तरह का सरकारी लाभ लेने के लिए ज़रूर अब भी आधार को अनिवार्य माना जा रहा है, लेकिन मज़दूरों और गरीबों के लिए काम करने वाली संस्थाएं इसे नुकसानदेह मान रही हैं और यह अनिवार्यता खत्म करने की मांग कर रही हैं। अगर उस उपयोग को मान भी लें तो शेष लोगों के लिए आधार की क्या ज़रूरत थी, जो बड़े पैमाने पर अभियान चला कर हर व्यक्ति को आधार बनवाने के लिए बाध्य किया गया। अगर वह सिर्फ आवासीय पते के सत्यापन के लिए है तो उसके लिए मतदाता पहचान पत्र, डाइविंग लाइसेंस और यहां तक कि बैंक की पासबुक भी पर्याप्त है। फिर अलग से इतना अभियान चलाने और पूरे देश को कतार में खड़ा करने की कोई ज़रूरत नहीं थी।