सांझी जद्दोजहद

देश में कोरोना के मामलों के निरन्तर बढ़ते जाने से भारी चिन्ता उत्पन्न हो गई है। छूत की इस बीमारी के संबंध में प्रारम्भ से ही कई प्रकार के अनुमान लगाये जाते रहे हैं। यह भी कहा जाता रहा है कि भारत में यह कुछ महीने तक ही रहेगी परन्तु अब उत्पन्न हुये नये हालात को देख कर इसके शीघ्र खत्म होने की सम्भावनाएं नहीं प्रतीत होतीं। चीन के बाद अन्य कई देशों में कोरोना के प्रसार से कई बड़े देशों का  जान-माल का बहुत नुकसान हो रहा है। बहुत-से देशों ने इस संबंध में कोई प्रभावशाली औषधि ढूंढने अथवा टीके का आविष्कार किये जाने के परीक्षण शुरू कर रखे हैं तथा समय-समय पर ये घोषणाएं भी की गई हैं कि शीघ्र इस ही बीमारी का डाक्टरी उपचार ढूंढ लिया जाएगा, परन्तु अभी भी ये परीक्षण जारी हैं तथा अभी तक भी निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि इसका इलाज ढूंढने की निश्चित समय अवधि क्या होगी।
छूत की बीमारी होने के कारण शारीरिक दूरी बनाये रखने एवं भिन्न-भिन्न समय में दुनिया भर में भिन्न-भिन्न देशों की ओर से तालाबन्दी किये जाने के जो अभ्यास हुये हैं, उनके बाद यह परिणाम भी निकाला जा सका है कि लोगों को घरों के भीतर बंद करना, गलियों-बाज़ारों को सुनसान बनाये रखना इस बीमारी का स्थायी समाधान नहीं है। इन परीक्षणों का परिणाम यह भी निकाला गया कि किसी न किसी प्रकार से अब इस बीमारी के साथ ही जीना पड़ेगा। इसलिए विश्व भर के विकसित देशों के साथ-साथ विकासशील देशों ने भी आधारभूत डाक्टरी सुविधाओं को मजबूत एवं समर्थ बनाने के यत्न किये हैं। परन्तु जिस सीमा तक इस वायरस का प्रसार हो रहा है, उसके दृष्टिगत विकसित देशों के भी प्रबन्ध अधूरे पड़ते दिखाई दे रहे हैं। कई देशों में बीमारों को रखने के लिए अधिकाधिक बैड तैयार किए जा रहे हैं ताकि मरीज़ बीमारी के ठीक होने तक अलग-अलग रह सकें तथा इससे बीमारी के और प्रसार को रोका जा सके क्योंकि इसके उपचार के लिए अभी तक पृथकवास तथा शरीर की आतंरिक शक्ति को बढ़ाने में सहायक होने वाली कुछ दवाइयों के उपयोग को ही इसका हल माना जा रहा है। पिछले कुछ महीनों में इस संबंध में निरन्तर जितने यत्न केन्द्र सरकार की ओर से अपने सीमित साधनों के साथ किये गये हैं, वे राहत प्रदान करने वाले हैं चाहे इनसे अभी तक इस वायरस के प्रसार को रोका नहीं जा सका। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सतत यत्नों के साथ जहां देश-वासियों के उत्साह को बनाये रखने का यत्न किया है, वहीं उनके द्वारा प्रांतों के मुख्यमंत्रियों के साथ बार-बार विस्तृत विचार-विमर्श जारी रखा गया ताकि महामारी से मुकाबले की इस सक्रियता को सांझा बनाया जा सके। कुछ छोटे प्रांतों ने प्रभावशाली योजनाओं के साथ इस महामारी को रोकने का यत्न किया है तथा इसमें वे एक सीमा तक सफल भी हुये हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश, गोवा, सिक्किम, मणिपुर, उड़ीसा, मिज़ोरम एवं नागालैंड आदि शामिल हैं। चाहे अब इन राज्यों से भी वायरस से प्रभावित होने वाले लोगों के समाचार मिलने लगे हैं, परन्तु सर्वाधिक प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र, तमिलनाडू, और दिल्ली शामिल हैं जिनमें यह बीमारी निरन्तर बढ़ती जा रही है। दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने शुरू से ही इसे काबू में रखने के लिए निरन्तर हर प्रकार के यत्न किये हैं तथा लोगों को अधिकाधिक डाक्टरी एवं अन्य सुविधाएं प्रदान करने का भी यत्न किया है। चाहे यह वायरस यहां निरन्तर बढ़ रहा है परन्तु केजरीवाल अपने साथियों के साथ इसके विरुद्ध निरन्तर लड़ाई जारी रख रहे हैं। इसके लिए उन्होंने सभी राजनीतिक दलों को इकट्ठे होकर मोर्चा बनाने की अपीलें भी की हैं। इस संबंध में उनकी पिछले दिनों केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ हुई बैठक को भी देखा जा सकता है, जिसमें सभी बड़े राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि शामिल हुये थे। इसमें अधिकाधिक परीक्षण किये जाने, आधारभूत स्वास्थ्य सुविधाओं को व्यापक एवं और मजबूत किये जाने तथा बीमारी के इलाज से होने वाले खर्च को कम किये जाने पर गहन विचार-विमर्श किया गया। इसमें गृह मंत्री अमित शाह ने भी कहा, कि सभी राजनीतिक दलों के इकट्ठे होने से लोगों के मन में एक विश्वास पैदा होता है तथा सांझे यत्नों से अच्छी उपलब्धि हासिल किये जाने की अधिक उम्मीद बंधती है। इस संबंध में जो भी फैसले इस बैठक में लिये गये हैं, अब उन पर क्रियात्मक रूप में अमल किये जाने की आवश्यकता है। नि:सन्देह इस महामारी से सामूहिक रूप में इकट्ठे होकर ही लड़ाई लड़ी जा सकती है। यही भावना  जन-मनोबल को ऊंचा बनाये रखने में सहायक सिद्ध हो सकती है। किसी भी मामले को हल करने के लिए उत्पन्न हुआ सांझेदारी का एहसास एक आत्मिक शक्ति प्रदान करता है, जिसे निराशा से आशा की ओर बढ़ने का स़फर कहा जा सकता है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द