खुशियां सांझी करने का दिन है ईद-उल-फितर  ईद-उल-फितर पर विशेष

भारत विश्व का सबसे अधिक राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक भिन्नताओं वाला देश है। हमारे देश में भिन्न-भिन्न धर्मों और भाईचारों के लोग आपस में बहुत प्यार से मिल-जुल कर रहते हैं और एक-दूसरे के त्योहारों में शामिल होते हैं। ईद-उल-फितर भी आपसी खुशियां साझी करने का महत्वपूर्ण दिवस है जो खुशियों के अनेक तोहफे लाता है। ईद-उल-फितर का दिन वास्तव में रमज़ान-उल-मुबारक के पवित्र महीने में की गयी बंदगी (भक्ति) के बदले में मिलने वाले ईनाम का शुक्रिया अदा करने के लिए मनाया जाता है। रमज़ान-उल-मुबारक के महीने एक ईमानदार शख्स सुबह (सरघी) से शाम अफतारी (रोज़ा खुलने) तक अल्लाह पाक की रज़ा वाला जीवन बड़ी ज़िम्मेदारी से व्यतीत करता है। वह पूरा दिन सभी सुख-सुविधाएं होने के बावजूद तमन्नाओं से मुख मोड़ लेता है और अल्लाह की बंदगी में लीन हो जाता है। हर वक्त एक सच्चे रब्ब को याद करते हुए जीवन व्यतीत करता है और उसी रब्ब की खुशनूदी (रज़ा) प्राप्त करने हेतु तत्पर रहता है। इस वर्ष यह त्योहार 22 अप्रैल को मनाया जा रहा है।
‘ईद-उल-फितर’ का त्योहार हमें लोगों से आपसी भाईचारा, प्यार, मुहब्बत और एक दूसरे से हमदर्दी करने की शिक्षा देता है। इसी कारण यह हुक्म दिया गया है कि ईद-उल-फितर की नमाज़ पढ़ने से पहले ही अपने घर के सभी सदस्यों द्वारा सदका-ए-फितर अदा किया जाए। सदस्य चाहे छोटा या बड़ा हो ताकि गरीब, मस्कीन, यतीम, मज़लूम और विधवाएं भी अपनी ज़रूरतें पूरी करके हमारे साथ ईद की खुशियां साझी कर सकें। असल खुशी बेसहारा लोगों को साथ लेकर ईद का दिन मनाने का नाम है जिससे आपसी प्यार, मुहब्बत, आपसी भाईचारक साझ की डोर, आपसी सांझें, मेल-मिलाप और जज़्बात उत्पन्न होते हैं। 
एक बार पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल. साहिब मदीने की गलियों में से नमाज़ पढ़ने जा रहे थे। आप ने देखा कि कुछ बच्चे गली में खेल रहे थे परन्तु एक बच्चा मायूस हालत में पास खड़ा रो रहा था जिस की मासूम आंखों से आंसू बह रहे थे। यह दृश्य देख कर पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल. साहिब बेचैन हो गए और बच्चे से मायूसी का कारण पूछा। बच्चे ने बहुत एहतराम (अदब) से जवाब दिया, ‘ए अल्लाह के नबी! मैं यतीम हूं। मेरे पास घर नहीं, दर नहीं, दौलत नहीं। मेरा कोई ़गमखार नहीं। मैं ईद की खुशियां कैसे मनाऊं?’ पूरी मानवता के लिए रहमत बन कर आए पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल. साहिब का दिल पसीज गया और वह बेचैन हो गए। बच्चे का हाथ पकड़ कर घर ले आए और हज़रत आइशा (रजी.) को फरमाया कि ‘इसे नहलाएं, बढ़िया कपड़े पहनाएं, खुशबू लगाएं।’ फिर इरशाद फरमाया कि ‘ए प्यारे बच्चे, खुश हो जा। आज के बाद मुहम्मद तेरा बाप, आइशा तेरी मां, फातिमा तेरी बहन और हसन-हुसैन तेरे भाई हैं।’ यह सुन कर बच्चा बागो-बाग हो गया और खुशी से झूमने लगा। 
इससे यह सिद्ध होता है कि पैगम्बर हज़रत मुहम्मद सल्ल. साहिब यतीमों, गरीबों, अनाथों, मज़लूमों, विधवाओं और बेसहारों के सहारा थे और इन के प्रति आपके मन में बेअंत प्यार और हमदर्दी थी। इस त्योहार को विश्व में ईद का दिन और आसमानी संसार में ईनाम का दिन कहा जाता है। हदीस शरीफ में आता है कि ईद की सवेर को अल्लाह पाक अपने मासूम फरिश्तों को सभी आबादियों में भेज देता है जो कि सभी गलियों और रास्तों के किनारों पर खड़े होकर कहते हैं, ‘ए हज़रत मुहम्मद सल्ल. साहिब की उम्मत! उस मेहरबान अल्लाह की तरफ चलो जो बेअंत रहमतें अता करने वाला और बड़ा माफ करने वाला है।’ 
फिर जब लोग ईदगाह की ओर चलते हैं तो अल्लाह पाक फरिश्तों को कहते हैं कि ‘ए मेरे फरिश्तो! आप गवाह रहो कि मैं इन्हें रमज़ान शरीफ के रोज़े और तरावीह के बदले में अपनी खुशी और दोजख (नर्क) से मुक्ति का परवाना अता करता हूं। ईद के दिन मुसलमान सुबह दातुन करके, नहा कर सुंदर कपड़े पहन कर, खुशबू लगा कर, मीठी चीज़ें जैसे खजूर या छुहारे या कोई अन्य मीठी चीज़ खा कर ईद-उल-फितर की नमाज़ पढ़ने हेतु अल्लाह की प्रशंसा करते हुए एक रास्ते पर जाते हैं और वापसी पर दूसरे रास्ते से आते हैं। 
इस दिन बच्चों को ईदी के रूप में तोहफे या कोई अन्य चीज़ें लेकर दी जाती हैं और बड़ों को ईद-उल-फितर की मुबारकें दी जाती हैं। इस दिन मुस्लिम भाईचारे के लोग अपने रिश्तेदारों, मित्रों और यहां तक कि मुस्लिम भाई अपने गैर-मुस्लिम भाइयों के साथ ईद-उल-फितर की खुशियां साझी करते हैं। ईद-उल-फितर  के दिन ही सभी धर्मों के लोग बिना किसी भेदभाव के आपस में एक-दूसरे को मिठाइयां देते हैं और गले लगाते हैं तथा मिल-जुल कर खुशियां साझा करते हैं। हमारे देश भारत की यह एक विलक्ष्णता है कि आपसी भाईचारा, प्यार-मुहब्बत, सांझीवालता, सरबत का भला, हमदर्दी, समानता और एक देश के नागरिक होने का संदेश देते हुए देश की एकता, अखंडता और प्रभुसत्ता को और भी मज़बूत करते हैं।  

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