भारत-नेपाल रिश्तों को किसकी नज़र लग गई ?

भारत-नेपाल सीमा पर जो अब तक कभी नहीं हुआ था और सच कहें तो जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की गई थी, वो भी हो गया। 12 जून, 2020 को बिहार के सीतामढ़ी जिले के अंतर्गत आने वाले जानकी नगर गांव के पास सीमा पर नेपाली सैनिकों ने फायरिंग की,जिससे गांव के एक युवक 25 वर्षीय विकेश कुमार राय की मौके पर ही मौत हो गई, जबकि तीन दूसरे लोग घायल हो गये। इन घायलों में से इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दो की हालत गंभीर थी। अब से पहले भारत-नेपाल सीमा से कभी भी इस तरह की फायरिंग की खबरें नहीं आयी थीं। इसलिए सुनकर वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों की ही नहीं, आम लोगों की भी पहली प्रतिक्रिया आश्चर्य जताने की ही हुई। भारत-पाकिस्तान सीमा से इस तरह की फायरिंग की खबरें आती ही रहती हैं और इन खबरों को सुनकर किसी को आश्चर्य नहीं होता बल्कि दुश्मन देश पर जबरदस्त गुस्सा आता है लेकिन नेपाल के मामले में बिल्कुल उल्टा है। न नेपाल से हम और न हमसे नेपाल, इस तरह की हरकतों की कोई एक-दूसरे से कल्पना नहीं करता। इस मामले में भी नेपाली सेना कह रही है कि कुछ लोग एक सैनिक से हथियार छीनने की कोशिश कर रहे थे, जिस कारण उसे गोली चलानी पड़ी। भारत-नेपाल सीमा पर पहरेदारी करने वाले सशस्त्र सीमा बल के भारतीय जवानों का भी ऐसा ही मानना है।  कोई दूसरा मौका होता तो शायद इसे तूल न दिया जाता, लेकिन इस समय भारत और नेपाल के रिश्ते जिस तरह से बिगड़े हुए हैं, उस माहौल में यह घटना बहुत खतरनाक है। यह इसलिए भी खतरनाक है क्योंकि ठीक इन्हीं दिनों नेपाल की संसद में नेपाल का एक ऐसा राजनीतिक नक्शा पास हुआ है, जिसमें भारत के भी कुछ हिस्से शामिल हैं। बावजूद इसके न तो आम भारतीयों में और न ही आम नेपालियों में एक दूसरे के प्रति किसी तरह की कटुता की भावना आयी है और न ही इस तरह की फीलिंग पैदा हुई है कि भारतीयों के लिए नेपाल और नेपालियों के लिए भारत कोई दुश्मन देश हैं। भले नेपाल की सरकार अपने कूटनीतिक हमलों से हिंदुस्तान की सरकार को हतप्रभ कर रही हो, लेकिन दोनों ही तरफ  के आम लोग इस सबसे अभी तक कतई प्रभावित नहीं हैं। शायद इसका कारण यह है कि भारत-नेपाल भले दो सम्प्रभु देश हों, लेकिन दोनों ही देशों के नागरिकों को एक दूसरे के यहां कतई परायेपन का एहसास नहीं होता। नेपालियों को कतई नहीं लगता कि भारत उनका देश नहीं है या उन्हें यहां डरना चाहिए और न ही भारतीयों को कभी लगता है कि नेपाली उनके भाई नहीं हैं। आखिर इन दिलों तक मजबूत भावनात्मक रिश्तों का राज क्या है? निश्चित रूप से इसका राज़ दोनों ही देशाें की समान संस्कृति है। अभी कुछ दशकों पहले तक नेपाल दुनिया का एकमात्र हिंदू राष्ट्र था, जिस पर भारत का हर हिंदू गर्व करता था। भारत और नेपाल के लोगों का धर्म और उनकी आस्थाएं भी एक हैं, जिस कारण दोनों देशों के लोगों को एक दूसरे के यहां कभी भी परायापन महसूस नहीं होता। भारत और नेपाल के बीच हमेशा से रोटी-बेटी के रिश्ते रहे हैं। इन रिश्तों के बीच कभी भी इस तरह की कोई सोच ही नहीं आयी कि ये रिश्ते दो देशों के बीच के लोगों के हैं।शायद भारत और नेपाल के इन गहरे सांस्कृतिक रिश्तों का ही प्रभाव है कि बीच-बीच में दोनों देशों की सरकारें एक- दूसरे के खिलाफ  अनेक बातें बोलती हैं, अनेकानेक राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप करते हैं और अब तो ये आरोप-प्रत्यारोप प्रतीकात्मक तौर पर एक दूसरे की सम्प्रभुता को भी चोट पहुंचाने लगे हैं लेकिन इन सबके बीच भी भारत और नेपाल के आम लोगों में किसी तरह का मनमुटाव नहीं आया। अब लगता है, जैसे-जैसे दोनों देशों के राजनीतिक और कूटनीतिक रिश्ते बिगड़ रहे हैं, वैसे ही कहीं ये सांस्कृतिक और सामाजिक रिश्ते भी न बिखर जाएं। जिस तरह से 12 जून, 2020 को नेपाली सैनिकों की गोली से एक भारतीय मारा गया और कई घायल हो गये, उससे लगता है कि आने वाले दिनों में भारत-नेपाल की सीमा पर भी कहीं भारत-पाकिस्तान की सीमा वाली हरकतें न होने लगें। हालांकि नेपाल के सैन्य प्रवक्ता ने ही नहीं बल्कि भारत के सशस्त्र सीमा बल के स्थानीय डीजी राजेश चंद्रा ने भी माना है कि यह कोई बॉर्डर टेंशन की घटना नहीं है बल्कि यह आपसी विवाद का मामला है। सशस्त्र सीमा बल ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को इस घटना की पूरी रिपोर्ट भेज दी है, लेकिन जिस तरह से केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कोई लाउड प्रतिक्रिया नहीं की, उससे साफ  है कि दोनों ही देशों को रिश्तों की संवेदनशीलता का भान है, कोई भी अपनी तरफ  से ऐसा कदम नहीं उठाना चाहता, जो दोनों देशों की स्थायी कटुता का आधार बन जाये। इसीलिए सीमा पर सैनिकों के स्तर पर ज़रा भी तनाव नहीं देखा गया लेकिन हमें इस बात से कतई इंकार नहीं करना चाहिए कि गत 8 मई को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब लिपुलेख से धारचूला तक बनायी गई सड़क का उद्घाटन किया, तभी से नेपाल तना है और लगातार यह कह रहा है कि भारत सरकार ने उसकी जमीन में सड़क बनायी है। नेपाल ने इस घटना के विरोध में भारत के तीन इलाको  लिपुलेख, लिंपियाधुरा और काला पानी को अपने राजनीतिक नक्शे का हिस्सा बताया है। एक ऐसे समय में जब भारत पहले से ही चीन के साथ सीमा तनाव में उलझा हुआ है, ऐसे में वह नेपाल को नया सिरदर्द बनाने की गैर-जिम्मेदार हरकत नहीं कर सकता लेकिन यह भी सच है कि अगर नेपाल एकतरफा उपद्रव करने की सोचता है तो फिर दोनों देशों के रिश्ते बहुत खराब हो जाएंगे। 

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