अनावश्यक विवाद 

पिछले दिनों गलवान घाटी में घटित हुई दुखद घटना के बाद चीन की ओर से सीमाओं पर निरंतर छेड़छाड़ से उत्पन्न हुए हालात के संबंध में साझी राय बनाने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के बाद कांग्रेस के पूर्व प्रधान राहुल गांधी की ओर से जो अनावश्यक बयानबाजी की गई है, उसने माहौल को और भी खराब किया है। प्रधानमंत्री के इस बयान कि चीन ने भारत के किसी इलाके पर कब्जा नहीं किया तथा न ही उसने सीमा पर भारत की किसी चौकी पर कब्जा किया है, को लेकर विवाद शुरू हुआ था। इस बयान को राहुल गांधी और कांग्रेस नेताओं ने अनावश्यक रूप से उछाल कर जहां स्वयं को बड़ा देशभक्त होने का प्रभाव दिया, वहीं नरेन्द्र मोदी पर चीन के समक्ष घुटने टेकने और चीन को खुश करने के आरोप भी लगाए हैं। राहुल गांधी ने तो एक अन्य बयान में प्रधानमंत्री को ‘सरन्डर मोदी’ तक कह दिया है जिसका अभिप्राय यह है कि नरेन्द्र मोदी चीन के समक्ष झुक गए हैं। जहां तक चीन का संबंध है, उस पर किसी प्रकार का भरोसा किया जाना कठिन है। चीन का प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई भारत आकर पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ पूरी तरह गर्मजोशी दिखा कर ‘पंचशील’ समझौता करता है परन्तु इसके कुछ ही वर्ष बाद 1962 में चीन अचानक भारत पर हमला करके भारत की 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि हथिया लेता है। संभवत कांगे्रसियों को यह भूल गया है कि यह हमला पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री होने के दौरान हुआ था। इसमें भारत की शर्मनाक पराजय हुई थी। इसके बाद कितने ही दशक देश पराजय की इस लज्जा से बाहर नहीं निकल सका था। हालांकि श्रीमती इंदिरा गांधी ने अवश्य चीन की ओर अपना कड़ा रवैया बनाए रखा था। चीन की बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए तथा उसकी ओर से किए गए परमाणु परीक्षणों को देख कर श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी उसके मुकाबले में परमाणु परीक्षण किए थे। इसकेबाद प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने किन शर्तों अथवा किन  स्थितियों में चीन का दौरा किया, इस संबंध में उस समय की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार की ओर से बहुत कुछ समझाने का यत्न किया जाता रहा। परन्तु इसके साथ-साथ 1962 के युद्ध में हारने की नमोशी भी साथ-साथ चलती रही। भारत कीओर से किए गए लाख यत्नों के बावजूद चीन ने भारत की कब्जा की हुई एक इंच भूमि भी नहीं छोड़ी अपितु उसके बाद उसने लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश व अन्य भारतीय इलाकों पर भी अपना हक जताना शुरू कर दिया था। ऐसी स्थिति में सीमांत मामलों के संबंध में चीन की ओर से दिखाए गए अड़ियल रवैये के बावजूद राहुल गांधी के पिता तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ओर से की गई चीन की यात्रा का क्या हासिल हुआ, यह अब पूरी तरह स्पष्ट है क्योंकि इस यात्रा के बाद चीन ने सीमांत मामले पर अपना रवैया और भी कड़ा कर लिया था। यदि आज 3500 किलोमीटर सीमाओं पर दोनों देशों की सेनाओं में आपसी झड़पें होती रहती हैं तो इसका बड़ा कारण चीन के रवैये के दृष्टिगत सीमाओं की पूरी तरह निशानदेही न हो पाना है। इस कारण दोनों ओर गश्त करने वाली सेनाओं की आपसी झड़पें होना प्राकृतिक बात है। ऐसा एक बार नहीं, सैंकड़ों बार हो चुका है। इसीलिए दोनों देशों की सेनाओं की उच्चस्तीरय बैठकों में ये समझौते हुए कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एल.ए.सी.) से दो किलोमीटर तक गश्त करने वाली दोनों देशों की सेनाएं अपने साथ गोली-सिक्का नहीं ले जाएंगी। इन समझौतों के तहत ही पहले हुई झड़पों और गलवान घाटी में हुए झगड़े के दौरान बारूदी हथियारों का प्रयोग नहीं किया गया। चीनी सैनिकों ने घात लगाकर बारूदी हथियारों के बिना अपनी पूरी तैयारी के साथ भारतीय जवानों पर हमला किया जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए। चीन ने पहले इस लड़ाई में अपने सैनिकों के हुए किसी प्रकार के नुकसान का खुलासा नहीं किया था परन्तु 22 जून को यह जरूर माना कि उसका एक  कमांडर भी इस झड़प में मारा गया है। राहुल गांधी ने उसी समय ये बयान दागने शुरू कर दिए थे कि भारतीय जवान अपने साथ हथियार लेकर क्यों नहीं गए। इसके बाद उन्होंने बयानों की झड़ी लगा दी जिससे प्रतीत होता है कि वह रक्षा जैसे गंभीर मामले पर भी ओछी राजनीति कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ब्यान की भावना को दृष्टिविगत करते हुए उन्हें चीनियों के समक्ष ‘घुटने टेकने’ वाला तक कह दिया गया। निसन्देह: सुरक्षा के मामलों पर प्रधानमंत्री की ओर से दिये गए बयान को लेकर मतभेद प्रकट किए जा सकते हैं परन्तु मौजूदा स्थिति में बेहतर दलीलों एवं अनुकूल शब्दों का चयन किया जाना चाहिए था। बाद में प्रधानमंत्री के उक्त बयान के संबंध में उनके कार्यालय की ओर से यह स्पष्टीकरण भी दिया गया कि प्रधानमंत्री के बयान का संबंध समूचे हालात के साथ नहीं था अपितु यह बयान गलवान घाटी के घटनाक्रम और भारतीत सैनिकों के अडिग हौसले को लेकर ही दिया गया था। हम समझते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस मामले को तथ्यों के आधार पर और भी स्पष्ट करना चाहिए ताकि आलोचना करने वाले व्यक्तियों को ऐसे भ्रम फैलाने का और अवसर न मिले। 

-बरजिन्दर सिंह हमदर्द