अनावश्यक विवाद 

विगत दिवस भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दक्षिण भारत के अरब सागर में स्थित केन्द्र शासित राज्य लक्षद्वीप की यात्रा से भारत के निकटतम पड़ोसी तथा छोटे-से देश मालदीव के साथ पैदा हुआ विवाद बेहद दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री ने अपने दौरे के दौरान लक्षद्वीप की सुन्दरता की प्रशंसा की थी तथा इसके साथ ही पर्यटकों को यहां आने के लिए प्रेरित भी किया था। इस पर मालदीव के मंत्रियों को प्रधानमंत्री या भारत के संबंध में कोई विपरीत प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत नहीं थी और न ही भारत की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया देने  की ज़रूरत थी।  पहले ज्यादातर भारतीय पर्यटक अपने निकटतम पड़ोसी मालदीव के द्वीपों पर जाने को प्राथमिकता देते रहे हैं। दर्जनों ही इन द्वीपों का क्षेत्रफल कुल मिला कर लगभग 300 वर्ग किलोमीटर ही बनता है। इस छोटे-से द्वीपों वाले देश में भी अंग्रेज़ों का कब्ज़ा था, इसे वर्ष 1965 में आज़ाद घोषित किया गया। यहां समय-समय पर अलग-अलग सरकारें स्थापित होती रही हैं परन्तु भारत के साथ मालदीव के राजनीतिक संबंध हमेशा अच्छे बने रहे।
1978 तक भारत श्रीलंका के अपने उच्चायोग द्वारा ही इस देश के साथ संबंध स्थापित करता रहा था, परन्तु 1980 में भारत ने मालदीव में अपना दूतावास स्थापित कर लिया। एक तरह से आज भी मालदीव अपनी आवश्यक ज़रूरतों के लिए भारत की ओर ही देखता है। भारत की ओर से ही मालदीव की सुरक्षा के संबंध में हर तरह का प्रशिक्षण इस देश को दिया जाता है तथा यही मालदीव का बड़ा व्यापारिक भागीदार बना रहा है। वहां के विद्यार्थी बड़ी संख्या में भारत में ही शिक्षा प्राप्त करते रहे हैं। हर मुश्किल के समय भारत इसके साथ खड़ा रहा है। दिसम्बर 2004 में भी इन द्वीपों पर आई सुनामी के दौरान भारत ही बड़ा मददगार साबित हुआ था। यहां तक कि 2014 में यहां पीने वाले पानी की बेहद कमी की पूर्ति भी भारत ने ही की थी। कोविड महामारी के समय ज़रूरी दवाइयां तथा अन्य सामान भारत द्वारा ही भेजा गया था। 1988 में जब मौमून अब्दुल गयूम यहां के राष्ट्रपति थे, तब उनका तख्ता पलटने का यत्न किया गया था, जिसे तुरंत भेजी गई भारतीय सेना ने रोका था। भारत द्वारा ही यहां चावल, मसाले, फल, सब्ज़ियां आदि की लगातार सप्लाई की जाती रही है परन्तु अपनी निर्धारित नीति के तहत पिछले 15 वर्ष से चीन ने इन द्वीपों में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू  किया हुआ है। वह यहां की राजनीति पर भी प्रभाव डालने में यत्नशील रहा है। मालदीव के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज़ू चीन के प्रति झुकाव के लिए जाने जाते हैं। भारत के साथ पैदा हुए अनावश्यक विवाद के दौरान वह चीन के दौरे पर थे, जहां उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अपना स्वर मिलाने का यत्न किया है। उन्होंने चीन के एक सिद्धांत का समर्थन किया है, ताइवान के विरुद्ध चीन का पक्ष-पोषण किया है। वहीं चीन ने मालदीव की सुरक्षा तथा आज़ादी का समर्थन किया। उसकी अधिक से अधिक सहायता करने का विश्वास भी दिलाया।  परन्तु हम जानते हैं कि अरब सागर में स्थित इस छोटे-से देश का भारत के लिए सुरक्षा के पक्ष से बड़ा महत्त्व है।
भारत की हमेशा अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध बनाने की धारणा रही है। चाहे अपने इन यत्नों में वह ज्यादातर असफल भी रहा है, परन्तु दक्षिण भारत के समुद्र में बेहद निकटतम पड़ोसी होने के कारण भारत को इस देश के प्रति अपना व्यवहार जहां उदार रखने की ज़रूरत होगी, वहीं एक बड़ा देश होने के कारण पहले की भांति ही इसकी हर तरह से सहायता के लिए भी अपनी वचनबद्धता बनाये रखनी होगी। पैदा हुए अनावश्यक विवादों को खत्म करके भारत को मालदीव के संबंध में अपनी दोस्ती वाला रवैया बनाये रखना चाहिए, क्योंकि आज भी यहां के ज्यादातर राजनीतिज्ञ तथा पार्टियां भारत के प्रति अपनी दोस्ती और सहयोग बनाये रखने  की इच्छुक दिखाई देती हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द