सफेद सोने को काला करने वाली चिट्टी मक्खी पर नकेल डालने की आवश्यकता

नरमा पंजाब में खऱीफ की अहम फसल है। फसली विभिन्नता के पक्ष से भी इसकी बड़ी अहमियत है। किसी समय कपास पट्टी के किसान बड़े खुशहाल थे और यह पट्टी राज्य की कृषि आधारित आर्थिकता की सीढ़ी मानी जाती थी। वर्ष-प्रति-वर्ष उत्पादकता कम होने से इसका क्षेत्र भी कम होता गया। वर्ष 1996-97 में काश्त के अधीन रकबा 7.40 लाख हैक्टेयर था, जो सन् 2015 में हुए चिट्टी  मक्खी के गम्भीर हमले के कारण उत्पादकता कम होने के बाद इस फसल का रकबा कम होकर वर्ष 2016-17 में 2.78 लाख हैक्टेयर रह गया। फिर 2017-18 के दौरान नरमा 2.87 लाख हैक्टेयर रकबे में बोया गया। इसी दौरान चिट्टी मक्खी पर काबू पाने के लिए मशीनी स्प्रे के साथ ‘उलाला’ (फ्लोनिक्मिड) जैसे प्रभावशाली कीटनाशक के  प्रयोग से चिट्टी मक्खी पर काबू पाने के उपरांत रकबा प्रत्येक वर्ष बढ़ना शुरू हो गया। 
इस वर्ष कपास-नरमे की काश्त अब 5.1 लाख हैक्टेयर रकबे पर की जाती है। मुख्य तौर पर यह काश्त बठिंडा, मानसा (जहां शुरू में हुईं बारिशों के कारण कुछ रकबे पर हल चला दिया गया), मुक्तसर तथा फाज़िल्का ज़िलों में हुई है। अन्य जिलों में बरनाला, मोगा, फरीदकोट तथा संगरूर में भी नरमे-कपास की काश्त में कुच रकबा आया है। यहां तक कि मालवा में पटियाला, फतेहगढ़ साहिब तथा लुधियाना ज़िलों में भी इस वर्ष थोड़-थोड़े रकबे में कपास-नरमे की काश्त की गई है। पिछले वर्षों में चिट्टी  मक्खी के हमले ने इस फसल को काफी नुक्सान पहुंचाया था परन्तु पंजाब सरकार ने मशीनी छिड़काव तथा प्रभावशाली कीटनाशकों का उचित प्रबंध करके निजी कम्पनियों के सहयोग से इस पर काबू पा लिया गया। ‘आदर्श फार्म सेवा’ योजना के तहत यू.पी.एल. ने सस्ते किराये पर स्प्रे करने हेतु मशीनी स्प्रे की सेवा किसानों तक पहुंचाई। चिट्टी मक्खी फसल का बड़ा नुक्सान करती है और पत्ता मरोड़ को भी साथ लाती है, जिस कारण फसल की उत्पादकता और कम होती है। वर्ष 2015-16 में उत्पादकता कम होकर 197 किलो रुई प्रति एकड़ पर आ गई थी, जो कि वर्ष 2017-18 में बढ़ कर 304 किलो प्रति एकड़ हो गई। गत वर्ष उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और यह औसतन 806 किलो प्रति हैक्टेयर हो गई है। नरमे का उत्पादन 12-14 क्ंिवटल प्रति एकड़ के मध्य रहा। 
कृषि तथा किसान भलाई विभाग के निदेशक स्वतंत्र कुमार एरी के अनुसार पंजाब सरकार इस वर्ष कपास-नरमे की काश्त पर उत्पादकता बढ़ाने संबंधी प्रभावशाली प्रयास कर रही है। निदेशक एरी अभी-अभी मानसा, बठिंडा, मुक्तसर  और फाज़िल्का ज़िलों के 15 गांवों का दौरा करके  आए हैं और उन्होंने इन ज़िलों के मुख्य कृषि अधिकारियों तथा विभाग के विशेषज्ञों के साथ विशेष चर्चा करके किसानों को हर सुविधा पहुंचाने का यत्न किया है। विशेषज्ञ किसानों को बता रहे हैं कि ई.टी.एल. स्तर पर चिट्टी मक्खी का हमला जो जाये या जब मध्य वाली छतरी के 50 प्रतिशत पौधों के  पत्तों पर शहद जैसी बूंदें हों तो पौधे के ऊपरी हिस्से में प्रात: 10 बजे से पहले फ्लोनिक्मिड आदि दवाई का छिड़काव करें। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के अनुसार चिट्टी मक्खी की वृद्धि को रोकने के लिए किसानों को सिंथेटिक फैराथ्राइड कीटनाशकों (सायपरमैथरनि, फैनवलरेट, डैल्टामैथरिन) का प्रयोग बिलकुल नहीं करना चाहिए। मशीनी छिड़काव को प्राथमिकता देनी चाहिए ताकि चिट्टी मक्खी का नाश करने के लिए बड़ा सफल रहता है। कृषि तथा किसान भलाई विभाग ने यह सेवा किसानों को उपलब्ध करने के लिए उचित प्रबंध किये हैं। अब फसल 80-90 दिन की हो गई है। शुरुआती अवस्था में चिट्टी मक्खी का हमला होने पर एक-दो स्प्रे कर देने चाहिए।
 पी.ए.यू. विशेषज्ञों के अनुसार चिट्टी मक्खी पूरा वर्ष क्रियाशील रहती है। यह नदीनों, भिंडी, बैंगन, कद्दू प्रजाति की सब्ज़ियों तथा बागों के पौधों पर पलती रहती है। ‘पत्ता मरोड़’ चिट्टी मक्की के साथ फैलने वाला एक विषाणु रोग है। आम तौर पर रोगी पौधों के पत्तों की निचली नाडें़ं मोटी हो जाती हैं। कई बार छोटी तथा बड़ी नाड़ों पर छोटी-छोटी पत्तियां निकल आती हैं। अधिक बीमारी की हालत में पौधे छोटे रह जाएंगे और पत्ते कटोरों तथा प्यालों की शक्ल अपना लेंगे। रोगी पौधे को फूल और डोडियां कम लगेंगे।