‘बहुत कुछ की’ मूक साक्षी रही है लाल किले की प्राचीर

अगर लाल किले की प्राचीर बोल सकती तो जरूर बताती, मैं वो दीवार हूं, जिसके कानों ने अब तक इतना कुछ सुना है कि अगर उसे शब्दों में लिख दिया जाए तो एक दो नहीं, दर्जनों किताबें बन सकती हैं। जी हां! आगामी स्वतंत्रता दिवस को एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल किले के उसी परकोटे से देश को संबोधित करेंगे, जहां से आजतक देश के सभी प्रधानमंत्री संबोधित करते रहे हैं। अगर कहा जाए कि हर साल 15 अगस्त को यह प्राचीर देश के लिए की गई अनेक महत्वपूर्ण बातें पहली पहली बार सुनती है, तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन पहली बार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस परकोटे से देश को 15 अगस्त को नहीं बल्कि 16 अगस्त 1947 को संबोधित किया था। दरअसल 14 और 15 अगस्त 1947 की मध्य रात उन्होंने देश को वायसराय लॉज यानि मौजूदा राष्ट्रपति भवन से संबोधित किया था, जिसे हम उनके सबसे महत्वपूर्ण भाषणों में से एक ‘नियति के साथ समझौता’ के रूप में जानते हैं। इसमें नेहरू की विद्वत्ता और भविष्य के भारत के लिए एक सुगठित लोकतंत्र की झलक मौजूद है।लाल किले की इस प्राचीर ने, जिसे लाहौरी गेट भी कहते हैं, भारत के नवनिर्माण की अब तक अनगिनत योजनाएं सुनी हैं, जिनमें से कुछ फलीभूत हुई हैं और कुछ महज भाषणों तक ही सीमित रही हैं। इस प्राचीर से देश को सबसे ज्यादा बार संबोधित करने वालों में पंडित जवाहरलाल नेहरू, डा. मनमोहन सिंह, श्रीमती इंदिरा गांधी और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल हैं। यूं तो नेहरू एक विकासवादी पुरुष थे, जो अकसर अपनी योजनाओं की घोषणा करते रहते थे। बावजूद इसके उनकी कई महत्वपूर्ण योजनाओं का पहली बार खुलासा उनके 15 अगस्त वाले संबोधन में ही हुआ था। उन्होंने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की तुलना आधुनिक मंदिरों के रूप में  पहली बार 15 अगस्त के अपने एक भाषण में ही की थी। लाल किले की प्राचीर से ही लालबहादुर शास्त्री ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा दिया था। इसी प्राचीर से उन्होंने देशवासियों से आह्वान किया था कि व्यापक राष्ट्र-हित में लोग सप्ताह में एक दिन उपवास करें। लाल किले की इस प्राचीर को अनेक महत्वपूर्ण बातें और योजनाएं पहली बार सुनने को भी मिली हैं। भारत की अब तक की सबसे साहसी प्रधानमंत्री मानी जाने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी ने लाल किले की प्राचीर से अपनी अनेक योजनाओं की घोषणा पहली बार की। इसी प्राचीर से उन्होंने देश में गरीबी हटाने के लिए 20 सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की, तो इसी प्राचीर से उन्होंने देश को पहली बार यह संदेश भी दिया कि अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए उसे दुनिया के बाजार के लिए खोलना होगा। कहना चाहिए कि उन्होंने उदारवादी अर्थ-व्यवस्था की आधारशिला इसी लाल किले की प्राचीर से रखी थी। अगर आज हिंदुस्तान को पूरी दुनिया में कम्पयूटर सैवी देश के रूप में जाना जाता है तो इस संकल्प की घोषणा भी पहली बार 15 अगस्त 1986 के राष्ट्र के नाम संबोधन में ही हुई थी। लाल किले की प्राचीर से ही प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने पहली बार देश को बताया था कि किस तरह सामाजिक न्याय, देश के एक बहुत बड़े समुदाय का वैधानिक हक है और इस हक को  हासिल करवाने में सरकारों को मददगार बनना चाहिए।साल 1979 में चौधरी चरण सिंह भले वैशाखियों के बल पर सरकार चला रहे थे, लेकिन उन्होंने लाल किले की प्राचीर से जिस दहकते हुए अंदाज में अपना भाषण समाप्त किया था, वह पहले के कई प्रधानमंत्रियों से बहुत भिन्न और बेहद मौलिक था। प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अपने भाषण में करीब डेढ़ दर्जन बार किसानों का जिक्त्र किया था, नौजवानों के लिए नई योजनाओं और विकास की बात की थी तथा अपने शुरुआती उद्गार में ही अपनी सरकार को लेकर लोगों के मनोविज्ञान को साफ  कर दिया था। अटल बिहारी वाजपेयी भाषण की कला में निष्णात थे, लेकिन जब वह प्रधानमंत्री बने, उनके स्वास्थ्य का वह सुनहरा दौर गुजर चुका था, जिसमें वह अपनी भाषण कला का जादू बिखेरा करते थे। इसलिए तब उनके लाल किला के संबोधन वैसे आकर्षक नहीं रहे, जैसे वह जवानी के दिनों में ससंद में समा बांधा करते थे। डॉ. मनमोहन सिंह भले आत्मविश्वास से भरे जमीनी राजनेता न रहे हों, लेकिन वह पढ़े-लिखे, प्रोटोकॉल के दबाव और गरिमा को बेहतर ढंग से निभाने वाले शख्स थे। उन्होंने हमेशा अपने संबोधनों में  गरीबी निवारण की ठोस योजनाओं और साक्षारता बढ़ाने पर जोर दिया। जहां तक प्रधानमंत्री मोदी की बात है, वह देश में महात्मा गांधी के बाद के सबसे बड़े ग्रेट ओरेटर हैं।  मसलन भारत द्वारा अंतरिक्ष यात्री भेजने का खुलासा उन्होंने पहली पहली बार लाल किले की प्राचीर के अपने भाषण में ही किया था। इसी में उन्होंने कई बार पाकिस्तान को भी कड़े संदेश दिये और पाक अधिकृत कश्मीर तथा गिलगित के लिए कई सांकेतिक बातें उन्होंने इसी लाल किले के संबोधन में कहीं। कुल मिलाकर देखें तो लाल किले की प्राचीर ने सबसे ज्यादा और सबसे महत्वपूर्ण सुना है।

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