ठंडा मौसम और गेहूं की फसल

गेहूं शरद ऋतु की फसल है। अत्यावश्यक ठंड और मध्यम बारिश गेहूं की फसल के लिए लाभदायक हो सकती है। शुरू में इस स्टेज पर फसल को ठंड की ज़रूरत होती है। पंजाब कृषि विभाग एवं किसान भलाई विभाग के निदेशक डा. राजेश वशिष्ट के अनुसार यदि मौसम अनुकूल रहा तो गेहूं का रिकार्ड उत्पादन होने की सम्भावना है, जिसके सन् 2018-19 के 182.62 लाख टन के रिकार्ड उत्पादन को छू जाने की सम्भावना है। आई.सी.ए.आर-भारतीय कृषि अनुसंधान के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार भारत का भी रिकार्ड उत्पादन होगा, जो 112 मिलीयन टन को छू जाएगा।  पंजाब में गेहूं का 35.60 लाख हैक्टेयर की काश्त का लक्ष्य रखा गया है और लगभग 35.20 लाख हैक्टेयर पर काश्त हो चुकी है। अभी कुछ क्षेत्रों में काश्त हो रही है। निदेशक वशिष्ट के अनुसार काश्त अधीन कुल रकबा लक्ष्य से भी पार हो जाने की सम्भावना है। 
पंजाब भारत के कुल गेहूं उत्पादन का 19 प्रतिशत पैदा करता है। सिंचाई अधीन रकबा 99.9 प्रतिशत है और फसली घनत्व 190 प्रतिशत। भारत में गेहूं की बड़ी महत्ता है। विदेशों में भी गेहूं के उत्पादन के कारण भारत का दर्जा ऊंचा है। सब्ज़ इन्कलाब से पहले पंजाब में उत्पादन 17.42 लाख टन था, जो बढ़ कर 10 गुणा से भी अधिक हो गया। किसानों द्वारा अधिक रकबे पर ज़्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों जैसे एच.डी.-3086, डी.बी.डब्ल्यू.-187 और डी.बी.डब्ल्यू-222 की बिजाई की गई है। निजी क्षेत्र के बीजों के बड़े डीलर भट्ठल बीज फार्म लुधियाना के मालिक राविन्द्रजीत सिंह भट्ठल ने बताया कि निजी क्षेत्र के डीलरों के पास इन किस्मों के बीजों का लगभग पूरी मात्रा बिक गई है, जबकि दूसरी अन्य किस्मों के बीच काफी मात्रा में बिना बिके रह गए। किसानों की मांग इन तीनों किस्मों के लिए बहुत अधिक रही और डी.बी.डब्ल्यू.-187 किस्म का तो पंजाब की मंडी में पूरा बीज खत्म हो गया। निदेशक वशिष्ट के अनुसार अब तक फसल किसी भी बीमारी से मुक्त है और भरपूर होने का भविष्य दर्शाती है। 
आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के जैनेटिक्स डिवीज़न के प्रमुख और गेहूं के ब्रीडर डा. राजबीर यादव किसानों को सलाह देते हैं कि वे अपनी फसल का निरन्तर निरीक्षण करते रहें और जब भी किसी किस्म पर पीली कुंगी का हमला हो जाए तो वे प्रोपीकोनाज़ोल दवाई का स्प्रे करें। जिन किस्मों की लम्बाई 95-96 सैंटीमीटर से अधिक है जैसे कि एच.डी.-3226, एच.डी.-3117 आदि की, उन किस्मों की फसल पर लिहोसीन 250 एम.एल.+फोलिकोर 125 एम.एल. को 125 लीटर पानी में घोल कर उसका छिड़काव कर देना चाहिए। जिन किसानों ने अभी तक गुल्ली डंडा और चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के लिए किसी नदीन नाशक का छिड़काव नहीं किया, उनको उचित नदीन नाशक चुन कर छिड़काव कर देना चाहिए, क्योंकि गुल्ली डंडा धान, गेहूं फसली चक्र में गेहूं के उत्पादन को 60 प्रतिशत तक कम करने पर हावी हो जाता है। इस पर काबू पा लेना चाहिए। जिन किसानों ने यूरिया (नाईट्रोजन) की दूसरी खुराक नहीं डाली, उनके तुरंत नीम-लिप्त यूरिया की दूसरी खुराक दे देनी चाहिए। जिस गेहूं की देरी से दिसम्बर के मध्य में बिजाई की गई हो, उसे नाईट्रोजन (यूरिया) का मात्रा 25 प्रतिशत कम कर देनी चाहिए। धान-गेहूं के फसली चक्र में हलकी ज़मीनों पर आम तौर पर मैगनीज़ की कमी हो जाती है। ऐसी ज़मीनों में 0.5 प्रतिशत मैगनीज़ सल्फेट का एक छिड़काव फसल को पानी देने से 2-4 दिन पहले और तीन छिड़काव सप्ताह-सप्ताह के अंतर से बाद में साफ मौसम वाले दिनों में कर देने चाहिए। मैगनीज़ सल्फेट के केवल छिड़काव करने की ही सिफारिश की गई है। इसे ज़मीन में डालना चाहिए। कई स्थानों पर पौधे की चोटी के पत्तों का रंग नोक को छोड़ कर हल्का पीला हो जाता है। पत्ते, ज़र लगे की तरह दिखाई देते हैं। ऐसी हालत में फसल को 3 से 5 किलो प्रति एकड़ सल्फर छींटे से दे देनी चाहिए और यदि फसल की आयु 60 दिन से अधिक हो जाए तो एक किलो प्रति एकड़ सल्फर का छिड़काव कर देना चाहिए। गेहूं की फसल के लिए ये सिफारिशें विशेषज्ञों द्वारा की गई हैं। 
सूरजमुखी की बिजाई इस महीने के अंत तक समाप्त कर देनी चाहिए। बागवानी विशेषज्ञों के अनुसार पत्ते झड़ने वाले फलों के आड़ू, अनार, नाख, आलू बुखारा, फाल्सा आदि के पौधे लगाने के लिए अनुकूल समय है। ठंड से किन्नू एवं माल्टे का रंग बढ़िया हो जाएगा और इन फलों में मिठास भी पड़ जाएगी परन्तु कोहरा अधिक नहीं पड़ना चाहिए।