किसानों और केन्द्र सरकार के बीच गतिरोध कैसे टूटेगा ?

मुझ को हालात में उलझा हुआ रहने दे यूं ही
मैं तेरी ज़ुल्फ नहीं हूं जो संवर जाऊंगा

इस समय किसान आन्दोलन के हालात भी बिल्कुल ऐसे ही हैं, जो यह प्रभाव दे रहे हैं कि यह मामला सुलझना यदि मुमकिन नहीं तो मुश्किल अवश्य है क्योंकि दोनों पक्ष अभी भी अपनी-अपनी बात पर अडिग हैं। वैसे ही हुआ जैसे कि उम्मीद थी। 4 जनवरी की किसान-सरकार बैठक में बात समझौते की ओर नहीं बल्कि थोड़े टकराव की ओर बढ़ती दिखाई दी परन्तु यह अच्छा संकेत है कि बातचीत टूटी नहीं। आज 8 जनवरी को फिर बातचीत हो रही है। किसान संगठनों ने मामला हल न होने की स्थिति में 26 जनवरी को दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर मार्च करने की घोषणा की हुई है। हम सिर्फ आशा और प्रार्थना ही कर सकते हैं कि 26 जनवरी आने से पहले-पहले यह मामला हल हो जाए, क्योंकि यदि 26 तक मामला हल न हुआ तो यह निश्चित है कि केन्द्र सरकार किसानों को किसी भी कीमत पर दिल्ली में दाखिल होने से रोकेगी, जबकि किसानों के भारी समूह में छिपा आक्रोश और बढ़ा हुआ उत्साह उनको उस दिन ‘करो या मरो’ की रणनीति अपनाने हेतु उकसायेगा। परिणाम आशा से कहीं अधिक खतरनाक भी निकल सकता है। 
केवल दो दिन शेष हैं
कल को कोई नया तीसरा विचार सामने आ जाए तो अलग बात है परन्तु वर्तमान में जो सूचनाएं, जानकारियां और ‘सरगोशियां’ हमारे तक पहुंची हैं, उनके अनुसार 26 जनवरी से पहले समझौते के सिर्फ और सिर्फ 2 तरीके ही नज़र आ रहे हैं। पहला सरकार इन तीनों कानूनों को माडल कानूनों का दर्जा दे देने की पेशकश करे और किसान इसे स्वीकार कर लें। माडल कानूनों का अर्थ यह होगा कि केन्द्र इन कानूनों को पूरे देश में स्वयं लागू नहीं करेगा, अपितु इनको सिर्फ माडल कानून मानेगा और इन पर अमल राज्य सरकारें अपनी मज़र्ी से करें या न करें, यह उनका अधिकार होगा या फिर वह स्थानीय हालात के अनुसार संशोधन करके लागू कर सकती हैं। दूसरा रास्ता सुप्रीम कोर्ट द्वारा निकल सकता है, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय पहले भी इस बारे सरकार को पूछ चुकी है। चाहे हमारी जानकारी के अनुसार केन्द्र सरकार अदालत में इन कानूनों को रद्द करने के खिलाफ डट कर स्टैंड लेगी परन्तु यदि सर्वोच्च अदालत 26 जनवरी से पहले-पहले कानूनी भाषा में इन कानूनों को ठंडे बस्ते में डाल कर, इन पर विचार करने के लिए कानून विशेषज्ञों, सरकार और किसानों के प्रतिनिधियों की कोई समयबद्ध रिपोर्ट देने वाली कमेटी बना देती है तो केन्द्र सरकार भी इसे आपनी हार नहीं मानेगी और इसे स्वीकार कर लेगी, जबकि किसान भी इसे अपनी अस्थाई जीत करार देकर संतुष्ट हो सकेंगे। परन्तु इस तरह होने पर भी समर्थन मूल्य के मामले के पेच फंसे रहेंगे, जिनको हल करना इतना अधिक आसान नहीं होगा। इस कमेटी में किसान प्रतिनिधि और पंजाब के प्रतिनिधि इस बात को पूरे ज़ोर से उभार सकेंगे कि ये कानून बनाने केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं हैं। फिर हो सकता है कि केन्द्र सरकार भी इस मोर्चे से सीखे सबक को याद करते हुए इन कानूनों से हाथ पीछे खींच लें, क्योंकि फिर यह इज़्जत और ज़िद्द का प्रश्न नहीं रह जाएगा। 
4 नेताओं से अधिक परेशान सरकार
हालांकि सच्चाई यही है कि इस किसान आन्दोलन को शुरू करने का श्रेय पंजाब के किसान संगठनों को जाता है और पंजाब के किसान एवं पंजाबी लोग ही विश्व भर में इस मोर्चे के प्रचार में अग्रणी हैं। अब दूसरे प्रदेशों से भी आन्दोलन को काफी समर्थन मिल रहा है परन्तु सूत्रों के अनुसार केन्द्र सरकार 4 किसान नेताओं की भूमिका से अधिक परेशान है। इन नेताओं का संबंध वामपंथी संगठनों के साथ बताया जा रहा है। 
प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात
हालांकि प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात के बाद भाजपा नेता सुरजीत कुमार ज्याणी और भाजपा के राष्ट्रीय नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल प्रधानमंत्री के साथ हुई बातचीत का विवरण बताना तो दूर की बात एक अक्षर भी बताने के लिए तैयार नहीं हैं, परन्तु फिर भी जो बात उन्होंने अपने विश्वासपात्रों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के साथ की है, उसके अनुसार 45 मिनट के लिए तय यह बैठक 129 मिनट चली। उनके लिए हैरानी की बात थी कि किसान आन्दोलन के बारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उनसे अधिक जानकारी थी, जिससे यह प्रभाव तो अवश्य बनता है कि प्रधानमंत्री किसान आन्दोलन से बेखबर और लापरवाह तो बिल्कुल नहीं हैं। यह अलग बात है कि वह ‘राज हठ’ के शिकार हैं। हमारी जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री तीन कानूनों को पूरी तरह रद्द करने के लिए किसी भी कीमत पर तैयार नहीं होंगे परन्तु इस आन्दोलन को खत्म करने के लिए आखिरी सीमा तक जाने से पहले  वह इस कानून को क्रियात्मक रूप में अप्रभावी बनाने के लिए इसे माडल कानून बनाने के लिए सहमत हो सकते हैं। हमारी जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री ने इन नेताओं को आगामी बातचीत गृह मंत्री अमित शाह के साथ करने के लिए कहा है। प्रधानमंत्री से मुलाकात के बाद ज्याणी, ग्रेवाल और पंजाब के एक अन्य नेता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी मिले थे। आज ये दोनों अमित शाह से भी मिल रहे हैं और कल की सरकार किसान बातचीत से पहले ये कृषि मंत्री नरेन्द्र तोमर से भी मिलेंगे। इससे जो परिणाम निकलता लगता है, वह यह है कि कल की बैठक में केन्द्र सरकार किसान संगठनों को तीन कृषि कानूनों को माडल कानून बनाने की पेशकश कर सकती है। यदि किसान इस पर  सहमत न हुए तो फिर मामला सर्वोच्च अदालत के रहमो-करम पर रह जाएगा परन्तु यदि सर्वोच्च अदालत में मामला लटक गया तो 26 जनवरी का टकराव रोकना शायद बहुत मुश्किल हो जाएगा। 
किसान आन्दोलन की उपलब्धियां
इस बार का किसान आन्दोलन शायद दुनिया भर में हुए शांतिपूर्वक आन्दोलनों में अपनी मिसाल स्वयं ही होगा। नि:संदेह किसान अभी तक अंतिम जीत प्राप्त नहीं कर सके परन्तु किसान आन्दोलन की अब तक की उपलब्धियां पंजाबियों और सिखों के लिए  बहुत बड़ी उपलब्धियां हैं। यह किसी  भी आर्थिक लाभ से ऊंची तथा सुच्ची हैं। इन उपलब्धियों को बचाना और इन पर गर्व करना अत्यावश्यक है। अब तक इस आन्दोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि 1984 के बाद देश भर में सिखों और पंजाबियों की गुम हुई छवि वापस प्राप्त कर ली गई है। इस समय धर्मों, जातियों, सम्प्रदायों को भूल कर आम पंजाबी, पंजाब के हितों के लिए संयुक्त तौर पर लड़ रहे हैं। सिख गुरु साहिबान, सिख कौम  और पंजाबियों की कुर्बानियों से पूरा देश एक बार पुन: से अवगत हो गया है। यह प्रभाव कि पंजाबी हुल्लड़बाज, गर्म स्वभाव के हैं और नशई हो चुके हैं, भी समाप्त हुआ है क्योंकि इस आन्दोलन ने सिद्ध कर दिया है कि पंजाबी और सिख बड़ी से बड़ी लड़ाई संयम, सहज, शांति और हिंसा के बिना भी लड़ सकते हैं। वंड छकने की परम्परा भी स्पष्ट नज़र आ रही है। प्रत्येक पंजाबी और विशेषकर सिख को अपने विरसे के साथ जुड़ने का अवसर ही नहीं मिला, बल्कि गर्व भी हुआ है। यह ठीक है कि लड़ाई आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों की है। ये मांगें मनवानी बहुत ज़रूरी हैं परन्तु बातचीत की मेज़ पर समझौते तो कुछ ले दे कर ही होते हैं। जहां किसान संगठन अब तक साबत कदमी से आन्दोलन को चला रहे हैं, वहीं उनके लिए आवश्यक है कि वे बातचीत की मेज़ पर भी साबत कदम रहें, परन्तु ज़िद्द किसी भी पक्ष को नहीं करनी चाहिए, चाहे वह सरकार हो या चाहे किसान नेता। हम समझते हैं कि यदि किसान 80-90 फीसदी जीत कर भी लौटते हैं तो उक्त स्थितियों में यह उपलब्धियां भी बड़ी समझी जाएंगी। 
दिल भी एक ज़िद्द पे अड़ा है
किसी बच्चे की तरह,
या तो सभ कुछ ही इसे
चाहिए या कुछ भी नहीं। 

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