ट्रम्प के नाम पर लगा बड़ा द़ाग

अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के पद के कुछ ही दिन शेष रह गये हैं। इसी महीने 20 तिथि को नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन अपने पद की शपथ लेंगे। इस पद के लिए विगत वर्ष नवम्बर के महीने में सम्पन्न हुये चुनावों के बाद जिस प्रकार का व्यवहार ट्रम्प ने किया था, वह किसी भी भांति इस उच्च पद पर विराजमान व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनुसार नहीं था। मतगणना की कठिन प्रक्रिया के दौरान ट्रम्प ने बार-बार चुनाव एवं मतों की गणना पर प्रश्न उठाये थे। इन चुनावों में हुई धांधलियों की बात की थी तथा निरन्तर अपनी विजय होने की घोषणा भी की थी। इसी दौरान उन्होंने कुछ राज्यों में मतगणना कर रहे अधिकारियों को भी धमकाने का यत्न किया था। उनकी ओर से निरन्तर की जाती ऐसी बयानबाज़ी ने पूरे देश में स्थिति तनावपूर्ण बना दी थी। ट्रम्प के 4 वर्ष के कार्यकाल में भी अनेक बार देश में ऐसे तनावपूर्ण हालात बनते रहे हैं। अनेक स्थानों पर रंग एवं नस्लभेदी विवाद होते रहे जिनसे यह प्रभाव मिलता था कि यह सब कुछ ट्रम्प के संकेत एवं भड़काहट से होता रहा है तथा इनके दोषियों के विरुद्ध कोई बड़ी कार्रवाई भी नहीं होती थी। इसी दौरान उन्होंने बहुत-से देशों को धमकियां भी दी थीं। ईरान जैसे देश के साथ वह युद्ध जैसी स्थिति पर उतर आये थे। ईरान के सबसे बड़े सैनिक अधिकारी को उनकी ओर से इराक में निशाना बनाये जाने के बाद युद्ध जैसे हालात बन गये थे। ट्रम्प अपनी विवादास्पद बयानबाज़ी के लिए भी जाने जाते रहे हैं। चाहे उनके भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ अच्छे संबंध बने रहे थे, उनके भारत दौरे की भी बड़ी चर्चा हुई थी, परन्तु उनके क्रिया-कलापों एवं सोच को कभी भी परिपक्व नहीं माना गया, अपितु विश्व भर के नेता प्राय: उनकी कार्यशैली को निशाना बनाते रहे थे। समय व्यतीत होने के साथ-साथ उनकी ऐसी कार्रवाइयों में वृद्धि ही होती चली गई। चुनावों के दौरान भी उनके अधिकतर बयान विवादास्पद ही बनते रहे। कोरोना महामारी के समय भी उससे निपटने के लिए उनकी कार्रवाई ढीली एवं ़गैर-गम्भीर ही मानी गई जिसके दृष्टिगत अमरीका के जन-साधारण का उनसे मोह भंग हो गया प्रतीत होने लगा था। परन्तु अपनी पराजय को सामने देख कर वह बौखला गये थे। 6 जनवरी को राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक रैली में अपने हज़ारों की संख्या में एकत्रित हुये समर्थकों को पूरी तरह भड़काने का यत्न किया। ऐसी भड़काहट में आकर उन्होंने देश के संसदीय परिसर कैपीटोल पर हज़ारों की संख्या में एक प्रकार से धावा बोल दिया एवं वे ज़बरदस्ती संसद भवन में घुस गये। वहां जिस प्रकार उन्होंने हिंसक कार्रवाइयां कीं, उसने अमरीका को समूचे विश्व के समक्ष शर्मसार करके रख दिया। इस हिंसा में 5 लोग मारे गये थे। इस घटना ने पूरे देश को एक प्रकार से सकते में ला खड़ा किया था। अब इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप ही संसद की ओर से उन पर महाभियोग का मुकद्दमा चलाने की कार्रवाई की जा रही है। संसद के निचले हाऊस प्रतिनिधि सदन की ओर से  इस प्रस्ताव को पारित भी कर दिया गया है। ऊपरी सदन सैनेट में इस प्रस्ताव को 19 जनवरी को पेश किया जाना है परन्तु 20 जनवरी को  जो बाइडन की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए शपथ लिये जाने के बीच दिन बहुत कम रह गये हैं। इसलिए इसका सैनेट में पास होना चाहे कठिन प्रतीत होता है परन्तु इस घटनाक्रम से ट्रम्प के नाम पर अपने पद का दुरुपयोग करने संबंधी एक बड़ा द़ाग अवश्य लग गया है। उनके कार्यकाल के दौरान दो बार उनके विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया है। अमरीका के इतिहास में पहले ऐसा कभी नहीं हुआ। इससे पूर्व दो राष्ट्रपतियों के बारे में ऐसा प्रस्ताव लाया गया था परन्तु वह पारित नहीं हो सका। अमरीका सबसे प्राचीन लोकतांत्रिक देश है, जिसका सैकड़ों वर्ष पूर्व लिखित संविधान भी तैयार किया गया था। उसमें घटित ऐसा घटनाक्रम निश्चय ही देश की मज़बूत परम्पराओं को कमज़ोर करने वाला है। ट्रम्प ने अपने कार्यकाल के दौरान जिस तरह नस्लभेदी नीतियों को प्रोत्साहित किया है, उसके कारण अमरीका को भविष्य में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द