चुनावों की घोषणा

चुनाव आयोग द्वारा चार राज्यों एवं एक केन्द्र शासित प्रदेश में चुनावों की घोषणा ने राजनीतिक फिज़ा में बड़ी सक्रियता ला दी है। वैसे तो विधानसभाओं की तिथि समाप्त होने से पूर्व इन चुनावों की घोषणा होना एक आम बात है परन्तु जिस तरह का माहौल अब बना देखा जा सकता है, उसमें कुछ कारणों से इन राज्यों के चुनावों का महत्त्व ज़रूर बढ़ गया है। केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार का दूसरा कार्यकाल चल रहा है। चुनाव चाहे स्थानीय स्तर पर सत्ताधारी रही पार्टियों की कारगुज़ारी एवं अन्य स्थानीय मुद्दों पर होंगे परन्तु केन्द्र सरकार की कारगुज़ारी भी इन्हें प्रभावित करेगी। चाहे हर राज्य की स्थिति अलग-अलग है परन्तु इन्हें नरेन्द्र मोदी की कारगुज़ारी पर भी एक तरह से फतवा माना जाएगा। क्योंकि इनमें भाजपा की नज़र ज्यादातर श्री मोदी पर ही रहेगी और वही केन्द्र बिन्दू बन कर उभरेंगे। चाहे इनमें से कुछ राज्यों में सरकारें अलग-अलग पार्टियों की हैं। पश्चिम बंगाल में ममता बैनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस की सरकार है। केरल में सरकार का नेतृत्व मार्क्स पार्टी कर रही है। असम में भाजपा का प्रशासन है। तमिलनाडू में ए.आई.ए.डी.एम.के. की सरकार है एवं पुडुचेरी में कांग्रेसी मुख्यमंत्री को भीतर से ब़गावत होने के कारण अल्पमत में रह जाने के कारण त्याग-पत्र देना पड़ा है। इनमें सबसे अधिक सीटें पश्चिम बंगाल की हैं, जिसकी विधानसभा के 294 विधायक हैं। तमिलनाडू की विधानसभा में 234 विधायक हैं, केरल की असैम्बली की सीटें 140 हैं, असम की 126 एवं पुडुचेरी की 30 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल में गत लम्बी अवधि से बड़ा सख्त राजनीतिक माहौल बना हुआ है। गत 10 वर्षों से ममता बैनर्जी यहां सत्ता सम्भाल रही हैं। चाहे भाजपा का वोट बैंक 10 वर्ष पूर्व यहां पर नाममात्र ही था परन्तु अब उसने एक लम्बा स़फर तय करके इस राज्य में अपनी पैंठ बना ली है। इस बार मुख्य मुकाबला तृणमूल कांग्रेस और भाजपा में बना नज़र आ रहा है जबकि वामपंथी पार्टियां एवं कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ती नज़र आ रही हैं। वर्ष 2014 में लोकसभा चुनावों में भाजपा को यहां से सिर्फ 2 सीटें ही मिली थीं परन्तु 2018 में भाजपा को यहां से लोकसभा की 18 सीटें मिल गई थीं। उसका मत प्रतिशत भी 10 प्रतिशत से बढ़ कर 40 प्रतिशत हो गया था, जबकि इसी समय वामपंथी एवं कांग्रेस का मत प्रतिशत काफी कम हो गया था। 10 वर्ष पूर्व ममता ने वामपंथियों से परिवर्तन के नाम पर सत्ता छीन ली थी। अब भाजपा भी परिवर्तन के नाम पर उनके विरुद्ध चुनाव लड़ रही है। उसने एक बार तो इन चुनावों हेतु अपनी पूरी ताकत लगा दी है तथा ममता के लिए बड़ी चुनौती बन कर उभरी है। असम में गत पांच वर्ष से भाजपा शासन कर रही है। इससे पूर्व तीन कार्यकालों तक यहां कांग्रेस का शासन रहा है। चाहे इस बार भी मुकाबला दोनों पार्टियों में ही दिखाई दे रहा है परन्तु विगत में भाजपा की मोदी सरकार ने इस राज्य में विकास कार्यों की झड़ी लगा दी थी। प्रधानंमत्री नरेन्द्र मोदी के असम दौरे की भी काफी चर्चा होती रही है। तमिलनाडू में ए.आई.ए.डी.एम.के. के नेतृत्व में पलिनीस्वामी मुख्यमंत्री हैं। उनका केन्द्र में भाजपा के साथ सहयोग रहा है। इस बार डी.एम.एम.के. के नेता एम.के. स्टालिन का राज्य की राजनीति में बड़ा उभार देखा जा रहा है। जयललिता की सहयोगी रही शशिकला भी अब जेल से बाहर आ गई हैं। उसका बड़ा प्रभाव भी ए.आई.ए.डी.एम.के. की राजनीति पर देखा जाएगा, उनके द्वारा इन पार्टी के चुनावी आंकलन में बड़ा प्रभाव डालने की सम्भावना है, चाहे ए.आई.ए.डी.एम.के. मौजूदा नेतृत्व के साथ उनके कड़े मतभेद भी हैं। पुडुचेरी में कांग्रेस सरकार के विधायकों की आपसी फूट के कारण अल्पमत में रह जाने के कारण लगे राष्ट्रपति शासन में इस पार्टी के लिए पुन: पांवों पर खड़ा हो पाना कठिन लग रहा है। आगामी 2 मई को इन चुनावों के परिणाम आने के बाद जहां राजनीति में नए समीकरणों के उभरने की सम्भावना है, वहीं केन्द्र सरकार पर भी इन परिणामों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देगा, जो नई राजनीतिक कतारबंदी को भी जन्म देने में समर्थ होगा।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द