लोक राग और वेदना का बीज गणित डा. सुखविन्दर कौर बाठ 

डा. सुखविन्दर कौर बाठ को भाषा विभाग की ओर से शिरोमणि हिन्दी साहित्यकार अवार्ड 2016 से नवाज़ा गया है। सुखविन्दर कौर बाठ हिन्दी साहित्य क्षेत्र में एक जाना-पहचाना नाम है। वर्तमान समय में पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला के हिन्दी विभाग में प्रोफैसर और प्रमुख की सेवाएं निभा रही इस शख्सियत ने डी.लिट तक डिग्री हासिल की हुई है। हिन्दी भाषा के साहित्य द्वारा पंजाबी सभ्याचार और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने वाली डा. बाठ ने गुरमति और सभ्याचार के बहुत-से विषयों पर शोध कार्य भी किये हैं, जिनमें गुरुवाणी कथा वादन, गुरु तेग बहादुर जी की वाणी का दार्शनिक अध्ययन, सिख हिस्ट्री एंड गुरमति दर्शन, फोकरोल एंड कलचरल, पंजाबी लोक साहित्य-संस्कृति का आईना, कबीर का लोकतांत्रिक चिन्तन मुख्य रूप से शामिल हैं।
11 फरवरी, 1962 को गुरदासपुर में जन्मी डा. सुखविन्दर कौर बाठ के परिवार ने देश विभाजन का संताप झेला था। उन्होंने अपने बुजुर्गों को इस दुख की पीड़ा को अनुभव करते हुए देखा था जिस कारण अचेत रूप से ही वह भी इस संवेदना को महसूस करती हैं। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग से एम.ए., एम.फिल और पी.एच.डी. करने वाली डा. बाठ अपने पारिवारिक जीवन में बहुत ही संतुष्ट एवं प्रसन्नचित नज़र आती हैं। वह अपने हमस़फर की तारीफ करती हुई अपने साहित्यक स़फर में उन्हें एक पथ-प्रदर्शक, मित्र और अपना सुहृद पाठक भी समझती हैं। वह अपनी बेटियों को भी अपना प्रेरणास्रोत और मित्र समझती हैं। उनकी बड़ी बेटी डाक्टर हैं।
वह सामाजिक रूप से चिंतन समर्थक लेखिका है। 1947 के देश विभाजन का दुख, पंजाब के काले दौर के दिन और  घाव उनकी साहित्यक रचनाओं को प्रभावित करते हैं। माता-पिता का भरपूर समर्थन और ससुराल परिवार के सहयोग ने उन्हें एक सफल जीवन व्यतीत करने में समर्थ बनाया। वह अपने माता जी की शख्सियत से प्रभावित थीं, जिन्हें वेद शास्त्रों का बहुत ज्ञान था। जिन्होंने शायद अचेत रूप से ही उन्हें हिन्दी भाषा को अपना साहित्यक और अध्ययन का क्षेत्र बनाने के लिए प्रेरित किया था। उनकी यादों में आज भी संयुक्त परिवार में मां के पास बैठ कर नैतिक कथाएं सुनना शायद उनके लिए कथा की दुनिया ओर जाने का एक सबब बना। कनाडा में भी कुछ समय व्यतीत करके वहां बसे हुये पंजाबी प्रवासियों की भाषा और सांस्कृतिक साझ को देख कर बहुत प्रभावित हुईं। वह समझती हैं कि मानवीय जज़्बातों की साझ भाषा से ही बनती है और भाषा किसी भी सम्प्रदाय की नहीं होती अपितु यह तो सीधे ही हमारे मन में बस जाती है। 
डा. सुखविन्दर ने जब पहली रचना लिखी तो अचेत रूप से ही उन्होंने एक कहानी की रचना कर दी। अपने अध्यापक को हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान डा. एच.एस. बेदी और अपनी मित्र डा. सुधा के साथ साहित्य जज़्बातों की साझ रखने वाली वेदना भरपूर लेखिका डा. सुखविन्दर कौर बाठ ने जब पहली बार कहानी 1995-96 में लिखी तो यह उनके किसी अनुभव का सृजन था, जो वाराणसी से निकलती एक पत्रिका में प्रकाशित और भिजियो सिजियो कंबली, मैं पंजाब आऊंगा, कोठे कुशालपुर कुंदन तों धरती सजे कहानियों द्वारा उन्होंने पंजाबी सभ्याचार और समाज की बहुत-सी परतों को उभारा। इन कहानियों को अधिक प्रोत्साहन मिला। उनकी कहानियां जहां मानवीय पात्रों के इर्द-गिर्द घूमती हैं, वहीं पक्षी और जानवर भी उनकी कहानियों में प्रतीकात्मक ढंग से आ जाते हैं। वह पक्षियों के व्यवहार द्वारा मानवीय उलझनों और चालाकियों का बखूबी वर्णन अपनी कहानियों के माध्यम से करती हैं। 
पारिवारिक ज़िम्मेदारियां भी निभाती हुई वह अपनी साहित्य साधना और शोध कार्य भी निरन्तर करती हैं। दो बेटियों की मां होना उनके लिए और उनके पति के लिए एक खुशकिस्मत वाला सबब है। वह अपनी रचनाओं और शोध कार्यों में नारी की समस्याओं, पुरुष और महिला के सामाजिक संबंधों के बारे में भी बेबाकी से लिखती हैं। 21वीं सदी के हिन्दी नावलों संबंधी उन्होंने अच्छी तरह अध्ययन किया है और मानवीय रिश्तों के दृष्टिकोण से इन नावलों की समीक्षा करते हुये वह अचेत रूप से ही शब्दों के साथ-साथ चलती जाती हैं। वह साहित्यक ज़िम्मेदारियों के साथ प्रबंधकीय ज़िम्मेदारियां भी निभाती हैं, जिनमें प्रमुख हिन्दी विभाग, महर्षि वाल्मीकि चेयर की (एडीशनल) प्रमुख, चीफ वार्डन होस्टल पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला, विषय माहिर पत्र व्यवहार, पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला शामिल हैं। उनकी दर्जनों पुस्तकें सम्पादित और अनुवादित हैं। पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड की मैट्रिक श्रेणी के लिए 2001 में उन्होंने हिन्दी टैक्सट बुक सम्पादित की। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी गदय त्रिवेणी पुस्तक बी.ए. के पाठयक्रम के लिए सम्पादित की। तीन दर्जन के लगभग शोध पत्र राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय कांफ्रैंसों में पढ़े और मुख्य विद्वान के रूप में अपने विचार, अपने भाषण, सम्बोधन में प्रस्तुत करने का अवसर मिला। डा. सुखविन्दर कौर बाठ जहां भिन्न-भिन्न सैमीनारों, कांफ्रैंसों में मुख्यातिथि के रूप में उपस्थिति होती रहीं, वहीं साथ ही स्वयं भी अनेकों सैमीनारों का प्रबंधन करती रहीं। आप जी की उपलब्धियों के मद्देनज़र आपको अनेक सम्मान भी हासिल हुए जिनमें से मानव भारतीय शिक्षा समिति हिसार की ओर से, अखिल भारतीय साहित्य कला मंच मुरादाबाद (उ.प्र.) की ओर से, उत्तर प्रदेश साहित्य सोसायटी की ओर से साहित्यक शिरोमणि अवार्ड, साहित्य श्री अवार्ड अन्तर्राष्ट्रीय कला मंच दुबई की ओर से मिला। आप वाटर और सैनीटेशन विभाग, भारत सरकार में सलाहकार कमेटी की सदस्य भी हैं। नारी शक्ति और नारी संवेदना की उदाहरण डा. सुखविन्दर कौर बाठ को भाषा विभाग के अवार्ड के लिए कार्यालय ‘अजीत’ मुबारकबाद देता है।
-हंस राज महिला महाविद्यालय, जालन्धर