बुलंद हौसले की नई मिसाल डी.एस.पी. हिमा दास

इस दुनिया में जितने भी महान व्यक्ति हुए हैं, उनको बैठे-बिठाए सफलता नहीं मिली। यदि उनका नाम इस दुनिया में ध्रुव तारे की तरह चमकता है तो उसके पीछे उनकी कडी मेहनत और बुलंद हौसला है। खेल जगत में भी ऐसे कई दिग्गज खिलाड़ी हुए हैं जो गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों से संबंधित थे परन्तु उनके सपनों की उड़ान बहुत ऊंची थी। इसी तरह के जज़्बे और सपनों की नई मिसाल है डी.एस.पी. हिमा दास। सन् 2000 में जन्मी हिमा दास असम से संबंध रखती है। उसका अपने गांव के खेतों से अंतर्राष्ट्रीय  दौड़ ट्रैक तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था। एक किसान परिवार से संबंध रखती हिमा दास ने 400 मीटर दौड़ को 50.79 सैकेंड में पूरा करके भारतीय राष्ट्रीय रिकार्ड स्थापित किया। इसके अतिरिक्त 2018 में हुईं एशियन खेलों में स्वर्ण पदक भारत की झोली में डाला। कॉमनवैल्थ खेलों में हिमा दास ने स्वर्ण पदक की बाज़ी मारी। अपने बुलंद हौसले से आगे बढ़ती हिमा दास ने पौलैंड में हुई ग्रैंड प्रिक्स  में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। भारत सरकार की ओर से हिमा दास की मेहनत की प्रशंसा करते हुए उसे 2018 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। गत दिनों उसे असम पुलिस में बतौर डी.एस.पी. भर्ती किया गया, जो कि हिमा दास, उसके माता-पिता और अध्यापकों के लिए बड़े गर्व की बात है। हिमा दास आज बहुत-सी लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। उसकी यह सफलता लड़कियों तथा उनके माता-पिता की खेलों में रुचि बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी। हिमा दास ने इस बात को साबित कर दिखाया है कि ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’। जहां हिमा दास के माता-पिता और असम को उस पर गर्व है, वहीं पूरे भारत, खेल जगत और हर उस महिला जिसने आगे बढ़ने के सपने सजाए हुए हैं, को भी हिमा दास पर गर्व है। 

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