इज़रायल और फिलस्तीन युद्ध में वैश्विक महाशक्तियां

येरुशलम की अल-अक्सा मस्जिद में इज़रायल द्वारा की गई कार्यवाही ने इज़रायल और फिलस्तीन के बीच युद्ध के हालात पैदा कर दिए हैं। बीते छह दिन से दोनों देश एक-दूसरे पर रॉकेट, मिसाइल और बम पटक रहे हैं। फिलस्तीन द्वारा इज़रायल पर छोड़े गए रॉकेटों को इस्पाती छत्र (आयरन डोम) ने आसमान में ही ध्वस्त कर दिया, बावजूद आवासीय बस्तियों में गिरे रॉकेटों ने कई बहुमंज़िला भवनों को नेस्तनाबूद करने के साथ नागरिकों को भी मार गिराया है। भारतीय मूल की निर्दोष महिला सौम्या संतोष भी इस युद्ध की वेदी पर बलिदान हो गईं। दूसरी तरफ  इज़रायल ने फिलस्तीन में बैठे आतंकवादी संगठन हमास पर किए हमलों में अनेक रिहायशी इमारतों को मिसाइलें दागकर ज़मींदोज कर दिया। इन हमलों में दोनों ही देशों के सैकड़ों आम नागरिक मारे जा चुके हैं। इनमें महिलाएं व बच्चे भी शामिल हैं। यह युद्ध सैनिकों की आमने-सामने होने वाली लड़ाई की बजाय तकनीक से लड़ा जा रहा है। इसमें कम्प्यूटर तकनीक भी मदद कर रही है। युद्ध में दोनों देशों की ओर से जो आक्रामकता दिखाई दे रही है, उससे लगता है कि इस युद्ध में वैश्विक महाशक्तियां भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से मदद के लिए तैयार हो गई हैं। हालांकि इज़रायल और फिलस्तीन के बीच युद्ध का होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन इस बार इज़रायल ने जो कठोर रुख अपना लिया है और जिस तरह से वह सायबर तकनीक से फिलस्तीन के भवनों को नष्ट कर रहा है, उससे लगता है कि वह फिलस्तीन को कहीं पूरी तरह बर्बाद न कर दे? यदि घातक हथियारों के दागे जाने का सिलसिला इसी तरह चलता रहा तो संभव है कि कहीं तीसरे विश्व युद्ध की बुनियाद न पड़ जाए।  
युद्ध के ये हालात इसलिए ज्यादा गहरा रहे हैं, क्योंकि अलअक्सा मस्जिद में इज़रायली कार्यवाही पवित्र रमज़ान के दौरान हुई है। इसलिए सुन्नी बहुल देशों में भयंकर आक्रोश है। पाकिस्तान और तुर्की खुलकर फिलस्तीन के पक्ष में खड़े हो गए हैं। तुर्की के राष्ट्रपति एंदोगान रेसेप तैयप ने तो रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन से इज़रायल को कड़ा सबक सिखाने की मांग तक कर डाली है। दूसरी तरफ अमरीका खुलकर इज़रायली कार्यवाही को उचित ठहरा रहा है। साफ  है, रूस देर-सवेर हरकत में ज़रूर आएगा। अक्सा मस्जिद पर कार्यवाही से फिलहाल इज़रायल में गृहयुद्ध के हालात पैदा हो गए हैं। इज़रायल के शहरों में अरब मूल के लोगों और यहूदियों के बीच हिंसक दंगे शुरू हो गए हैं। इज़रायल में 21 फीसदी आबादी अरब लोगों की है। अरबियों को आतंकवादी संगठन हमास न केवल उकसा रहा है, बल्कि उन्हें हिंसक हमले के औज़ार भी हासिल करवा रहा है। दरअसल, फिलस्तीन के इस्लामिक आतंकवादी संगठन ‘हमास’ एक सुन्नी मुस्लिमों का संगठन है। यह भी अन्य आतंकवादी संगठनों की तरह उन इस्लामी देशों का विरोधी है, जिनके कायदे-कानून शरीयत के अनुसार नहीं हैं। इस्लामी देशों की आंखों में इज़रायल हमेशा खटकता रहा है। इज़रायल एक यहूदी देश है। इज़रायल और फिलीस्तीन दशकों से लड़ते चले आ रहे हैं। ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अहमदी नेज़ाद ने तो सार्वजनिक ऐलान किया था कि इज़रायल को विश्व मानचित्र से समाप्त कर देना चाहिए। 
इज़रायल 1948 में स्वतंत्र देश के रूप में अस्तित्व में आया था। तभी से वह मध्य-पूर्व देशों में सक्त्रिय आतंकी संगठनों की मार झेल रहा है। इनमें हिजबुल्ला, इस्लामी जिहाद और हमास शामिल हैं। इज़रायल और इन आतंकी संगठनों के बीच गाजा पट्टी पर संघर्ष जारी रहता है। यह पट्टी 30 मील लंबी और सात मील चौड़ी है। यह दुनिया का सबसे बड़ा खुला इलाका है। ताज़ा अशांति की वजह, इज़रायल द्वारा मस्जिद पर किया हमला है। इज़रायल की कोशिश है कि वह हमास संगठन को नेस्तनाबूद करने के साथ हमास ने गाजा पट्टी में जो बारुदी सुरंगें बना ली हैं, उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दे। हमास और अलजजीरा मीडिया की बहुमंजिला इमारतें इस युद्ध में इज़रायल ने मिसाइलों से पूरी तरह ध्वस्त कर दी हैं। गाजापट्टी पर हालात इतने बद्दतर हो गए है कि लोगों को बिजली-पानी मिलना मुश्किल हो गया हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार गाजा में 2 लाख 30 हज़ार लोग इस संकट को झेलने के लिए विवश हैं। इस कारण दस हज़ार से भी ज्यादा फिलस्तीनियों ने गाजापट्टी से पलायन शुरू कर दिया है। दूसरी तरफ  इज़रायल में गृहयुद्ध के हालात बने हुए हैं। कई शहरों में अरबी मूल के लोगों से पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों का सीधा हिंसक टकराव हो रहा है। नतीजतन अमेरिका और सऊदी अरब ने युद्ध समाप्त करने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज़ कर दिए हैं। 
हमास फिलस्तीन और कतर समेत मध्य-पूर्व के अनेक देशों में सक्रिय है। अमरीका, इज़रायल, ब्रिटेन, कनाडा, जॉर्डन, ऑस्ट्रेलिया, जापान और यूरोपीयन यूनियन इसे आतंकी संगठन मानते हैं तो वहीं रूस, तुर्की, चीन, ईरान, दक्षिण अफ्रीका और कई अरब देश हमास को आतंकवादी संगठन नहीं मानते हैं। 1987 में यह संगठन अस्तित्व में आया था। इसे मिस्र के मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन का ही हिस्सा माना जाता है। इसे आर्थिक मदद सऊदी अरब और ईरान से मिलती है। इसका सारा धन सऊदी बैंक अल तकवा में सुरक्षित रहता है। यही बैंक अलकायदा के हवाला कारोबार में मदद करता रहा है। इज़रायल और फिलस्तीन के बीच गाजापट्टी पर 2006 से यह जंग जारी है। इसे फिलस्तीन के ग्रहयुद्ध की भी संज्ञा दी जाती है। साफ  है, आतंकवाद को लेकर दुनिया दो खेमों में बंटी हुई है। जो देश शांति की भूमिका रचने के पैरोकार बन रहे हैं, वहीं देश इन दोनों देशों को युद्ध की सामग्री बेचते हैं। साफ  है, पेट्रोल से आग बुझाने का खेल खेला जा रहा है। इज़रायल पश्चिम एशिया में अमरीका का प्रतिनिधि देश है। इज़रायल के ज़रिए ही इस क्षेत्र में अमरीकी हितों की पूर्ति होती है। अमरीका के दम पर ही इज़रायल फिलस्तीन की सत्ता पर काबिज हमास का अस्तित्व समाप्त कर देने का दम भरता रहता है। इज़रायल जिस इस्पाती छत्र से अपनी रक्षा फिलस्तीन से छोड़े गए रॉकेटों से कर पाया है, वह इस्पाती छत्र अमरीका की आर्थिक और तकनीकी मदद से इज़रायल की धरती पर मजबूत सुरक्षा.कवच के रूप में मौजूद हैं। इस्लामिक देशों से घिरे छोटे से देश इज़रायल की हिम्मत को दाद देनी होगी कि वह लगातार संघर्षरत रहते हुए अपना स्वाभिमान बरकरार रखे हुए है । लेकिन हमास जिस तरह से इज़रायल पर पलटवार कर रहा है, उससे स्पष्ट होता है कि उसकी भी सैन्य शक्ति बड़ी है। तुर्की इस मदद में सहभागी हो सकता है। तुर्की नाटो का सदस्य देश है। एक समय अमरीका की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का प्रमुख मोहरा रहा है। अमरीका इसे निर्वाद हथियारों की आपूर्ति करता रहा है। अब रूस भी तुर्की को बड़ी मात्रा में हथियार दे रहा है। साफ  है, वैश्विक महाशक्तियां छोटे देशों को आपस में लड़ाने का बड़ा काम अपने आर्थिक हितों के लिए करती हैं। इसलिए इज़रायल और फिलस्तीन को शांति के पहलुओं पर गंभीरता से विचार करते हुए इस संकट से उबरने का मार्ग तलाशने की ज़रूरत है।  -मो. 094254-88224