भेदभावपूर्ण है यूरोप का ग्रीन पासपोर्ट

भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर जब हाल ही में जी-20 मंत्रियों की बैठक के लिए इटली में थे तो उन्होंने यूरोप के विदेश मंत्रियों और यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि जोसफ बोर्रेल फोंटेल्लेस से यूरोपियन यूनियन डिजिटल कोविड सर्टिफिकेट (ईयूडीसीसी), जिसे ‘ग्रीन पासपोर्ट’ भी कहते हैं, के विरुद्ध कड़ा विरोध दर्ज किया। उन्होंने यहां तक संकेत दिया कि अगर इस पर नई दिल्ली की आपत्तियों का संज्ञान सकारात्मक दृष्टि से न लिया गया तो जवाब में भारत भी उन देशों के खिलाफ  कठोर क्वारंटाइन कदम उठायेगा जो उसके साथ भेदभाव कर रहे हैं। भारत के अतिरिक्त अफ्रीकन यूनियन ने भी ग्रीन पासपोर्ट का ज़बरदस्त विरोध किया है।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि यूरोपीय संघ का ग्रीन पासपोर्ट पूर्णत: भेदभावपूर्ण है, विशेषकर विकासशील देशों के यात्रियों के संदर्भ में, जिनकी कोविड वैक्सीन तक सीमित पहुंच है। भारत की चिंताएं मुख्यत: तीन हैं, लेकिन उनकी चर्चा करने से पहले यह जानना आवश्यक है कि ग्रीन पासपोर्ट है क्या, जिसे यूरोपीय संघ ने एक जुलाई से लागू कर दिया है। ग्रीन पासपोर्ट को यूरोपीय संघ के सभी 27 देशों के अतिरिक्त स्विट्ज़रलैंड, लीचटनस्टीन, आइसलैंड और नॉर्वे ने भी मान्यता प्रदान की है। ग्रीन पासपोर्ट डिजिटल क्यूआर कोड के रूप में है, जो यह प्रमाणित करता है कि व्यक्ति का कोविड-19 के विरुद्ध टीकाकरण हो चुका है, और साथ ही यह भी कि उसका हाल का कोविड-19 टैस्ट नेगेटिव था और कि वह पूर्व में संक्रमित होकर ठीक होने पर अब इम्यून की श्रेणी में है। जिस व्यक्ति के पास यह ग्रीन पासपोर्ट है, उसे यूरोपीय संघ के भीतर यात्रा करने के लिए कोविड प्रोटोकॉल से संबंधित किसी अन्य कागज की आवश्यकता नहीं होगी ।
महामारी काल में यात्रियों की सुविधाओं के लिए ग्रीन पासपोर्ट एक अच्छी पहल है, लेकिन इसमें एक पेंच यह है कि ग्रीन पासपोर्ट सिर्फ  उन व्यक्तियों को ही जारी किया जायेगा, जिन्होंने यूरोपियन मेडिसंस एजेंसी (ईएमए) द्वारा ‘मान्यता प्राप्त’ चार वैक्सीनों—कोमिरनटी (फाईज़र, बायोएनटेक), वैक्सीन जांससेन (जॉनसन एंड जॉनसन), स्पाइकवक्स (मॉडर्ना) व वक्सजेवरिया (एस्ट्राजेनेका, यूरोप) में से किसी एक से अपना टीकाकरण कराया हो। इन चार वैक्सीनों में भारत में बनने वाली कोविशील्ड व कोवैक्सीन शामिल नहीं हैं। हालांकि नई दिल्ली के विरोध के बाद यूरोपीय संघ के 9 देशों ने मान्यता प्राप्त वैक्सीनों की सूची में कोविशील्ड को शामिल करने की हामी भर ली है, लेकिन फिर भी ग्रीन पासपोर्ट का भारतीय यात्रियों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। यूरोपीय संघ के अनुसार सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ  इंडिया (एसआईआई) की कोविशील्ड ‘जैविक’ दृष्टि से अलग उत्पाद है, इसलिए उसे ईएमए क्लियरेंस के लिए अलग से अर्जी देनी होगी।
दोनों एसआईआई व एस्ट्राजेनेका ने स्पष्ट किया है कि वह क्लियरेंस लेने की प्रक्रिया में हैं। गौरतलब है कि कोविशील्ड ग्लोबल साउथ के कम व मध्य आय वाले 95 देशों में वितरित की गई है, इसलिए यूरोपीय संघ का निर्णय इन सबके खिलाफ भेदभाव करता है। यहां यह बताना भी जरूरी है कि अफ्रीका में जो अंतर्राष्ट्रीय कोवक्स अलायन्स कार्यक्रम चलाया गया था, उसमें कोविशील्ड व दक्षिण कोरिया में बनने वाली एस्ट्राजेनेका-स्कबायो वैक्सीन को यूरोपीय संघ का समर्थन भी प्राप्त था। इसे मद्देनजर रखते हुए अफ्रीकन यूनियन भी भारत के साथ मिलकर ग्रीन पासपोर्ट का विरोध कर रहा है। हालांकि भारत बायोटेक ने अपने तीसरे चरण के नतीजे में दावा किया है कि उसकी कोवैक्सीन लक्षणात्मक कोविड-19 के विरुद्ध 77.8 प्रतिशत प्रभावी है, दो-खुराक गंभीर रोग के विरुद्ध 93.4 प्रतिशत प्रभावी है और डेल्टा वैरिएंट के विरुद्ध 65 प्रतिशत सुरक्षा प्रदान करती है ।
लेकिन कोविशील्ड के मुकाबले में इसे ग्रीन पासपोर्ट मान्यता मिलना कठिन है क्योंकि इसे अभी विश्व स्वास्थ संगठन से भी मान्यता नहीं मिली है, जिसके लिए प्रयास जारी हैं। यह सही है कि वर्तमान में ग्रीन पासपोर्ट का भारतीयों पर केवल सांकेतिक असर ही पड़ेगा क्योंकि इस समय यूरोपीय संघ के देशों में सिर्फ  आवश्यक यात्रा की ही अनुमति है और जो भारत से यात्रा कर रहे हैं, उन्हें विशेष इजाज़त लेनी पड़ती है, लेकिन आगे इससे काफी दिक्कतें आ सकती हैं। भारत में पहली बार पहचाने गये डेल्टा व डेल्टा प्लस वैरिएंट्स को लेकर ग्लोबल चिंताएं निरन्तर बढ़ती जा रही हैं,जिससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि भविष्य में भारतीयों को अपनी विदेश यात्रा के दौरान काफी पाबंदियों का सामना करना पड़ सकता है।
दरअसल, ग्रीन पासपोर्ट को लेकर भारत की चिंताएं मुख्यत: तीन हैं। ग्रीन पासपोर्ट से वैक्सीन असमता बढ़ेगी और उन देशों के यात्रियों को कठिनाई होगी जिनके पास समान वैक्सीन पहुंच नहीं है। भारत का कहना है कि यूरोपीय संघ को कोविशील्ड को मान्यता दे देनी चाहिए क्योंकि वह एस्ट्राज़ेनेका की अन्य लाइसेंस-युक्त वैक्सीनों से अलग नहीं है। भारत का यह भी कहना है कि मोटे तौरपर भारत में मान्यता प्राप्त सभी वैक्सीनों को विश्वव्यापी मान्यता प्रदान कर देनी चाहिए और यह कि यात्रियों को को-विन वेबसाइट के जरिये सर्टिफाई किया जा सकता है। यूरोपीय संघ के निर्णय से नस्लवाद की बू भी आ रही है क्योंकि ईएमए ने केवल उन वैक्सीनों को मान्यता दी है जिनका वितरण यूरोप व उत्तरी अमरीका में हुआ है, और उन्हें छोड़ दिया गया है जो शेष संसार में रूस, भारत व चीन द्वारा वितरित की गई हैं।
शायद यही वजह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2 जुलाई को जो अपना अंतरिम दिशानिर्देश जारी किया, उसमें उसने स्पष्ट कहा है कि यात्रा के लिए वैक्सीन पासपोर्ट आवश्यक न किये जायें, वह वैकल्पिक हों। उसके अनुसार एक देश में एंट्री व एग्जिट के लिए कोविड-19 टीकाकरण का साक्ष्य प्रस्तुत करना अनिवार्य शर्त नहीं होनी चाहिए। बहरहाल, सवाल यह है कि क्या यूरोपीय संघ अपने निर्णय को बदलेगा? ग्रीन पासपोर्ट लागू करते समय यूरोपीय संघ ने स्पष्ट किया था कि उसका उद्देश्य उन लोगों के बीच अंतर करना है,जिनका टीकाकरण हो चुका है और जिनका नहीं हुआ है या जिन्होंने ‘गैर मान्यता प्राप्त वैक्सीन’ ली है। लेकिन अब जब यूरोपीय संघ के नौ देशों (ऑस्ट्रिया, जर्मनी, यूनान, आइसलैंड, आयरलैंड, हॉलैंड, स्लोवेनिया, स्पेन व स्विट्ज़रलैंड) ने तय किया है कि वे स्वतंत्र रूप से कोविशील्ड को अपवाद के तौरपर स्वीकार कर लेंगे -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर