कोविड के सन्दर्भ में पारदर्शिता की बढ़ती ज़रूरत 

कोविड-19 के संदर्भ में असरदार नीति के लिए नवीनतम प्रमाणिक जानकारी उपलब्ध होना और पारदर्शिता के माहौल में उसे शेयर करना बहुत ज़रूरी है। तभी बेहतर से बेहतर परामर्श प्राप्त हो सकता है जिसके आधार पर नीतिगत बदलाव व सुधार उचित समय पर हो सकते हैं। हाल के समय में सिविल रजिस्ट्रेशन के कुछ राज्यों से संबंधित जो आंकड़े सामने आए हैं, उनमें अप्रैल और मई में कुल मृत्यु-दर में अत्यधिक वृद्धि बताई गई है। हालांकि ये आंकड़े अभी सरकारी तौर पर जारी नहीं हुए हैं, फिर भी इस संभावना के महत्व को समझना चाहिए। हमारे देश में सामान्य दिन में लगभग 26,000 कुल मृत्यु दर्ज होती हैं जो कि विश्व जनसंख्या में हमारे हिस्से में काफी हद तक मेल भी रखता है (विश्व में एक दिन में 1,50,000 से कुछ अधिक मौत होती हैं)। यदि भारत में एक महीने के लिए मृत्यु दर दोगुनी हो जाए तो इसका अर्थ है कि लगभग 8 लाख मौतें अतिरिक्त हुईं व यदि तीन गुणा वृद्धि हुई है तो इसका अर्थ है कि लगभग 16 लाख मौतें अतिरिक्त हुईं। स्पष्ट है कि मृत्यु दर में वृद्धि के आंकड़े बहुत अहम् हैं व इन पर समुचित ध्यान देना चाहिए।
इस स्थिति को समझते हुए यह ज़रूरी है कि सिविल रजिस्ट्रशन के कुल मृत्यु संबंधी आंकड़ों के संदर्भ में पारदर्शिता प्राप्त की जाए। ये आंकड़े एकत्र होने के साथ-साथ लोगों तक पंहुचने चाहिएं। इसके साथ सरकार यह स्पष्टीकरण दे सकती है कि ये अभी आरंभिक आंकड़े हैं व इनमें बाद में थोड़ा बहुत बदलाव हो सकता है।
ये आंकड़े साथ-साथ उपलब्ध होने का लाभ यह होगा कि पंचायत, प्रखंड, छोटे शहर के विकेन्द्रित स्तर पर भी ये आंकड़े उपलब्ध हो जाएंगे और लोग शीघ्र ही यह जान पाएंगे कि स्थिति में कैसा बदलाव हो रहा है व कैसी विशेष सजगता की जरूरत है।
इसके साथ पिछले लगभग चार वर्षों के मुत्यु के सिविल रजिस्ट्रेशन संबंधी आंकड़े भी सहज उपलब्ध होने चाहिएं। वर्ष 2017, 2018 व 2019 के औसत के आधार पर किसी भी महीने की कुल मृत्यु संबंधी सामान्य स्थिति पता चल सकती है। वर्ष 2020 कोविड का पहला वर्ष था अत: इसकी स्थिति भी पता चल सकती है। फिर वर्ष 2021 या मौजूदा वर्ष के किसी भी महीने की तुलना हो सकती है जिससे अतिरिक्त मृत्यु की जानकारी सरलता से प्राप्त हो जाएगी व यहां की बदलती स्थिति का पता किसी भी पंचायत, जिले, शहर या राज्य को उचित समय पर लग सकता है।
यह कुल मृत्यु की जानकारी तो कुछ कमियों के बावजूद प्राप्त हो सकती है पर मृत्यु के ठीक-ठीक कारणों का पता इससे नहीं चल पाएगा क्योंकि इसमें कई पेचीदगियां हैं।  केवल कुल मृत्यु के आंकड़े व कुल अतिरिक्त मृत्यु के आंकड़े यदि साथ-साथ प्राप्त होते रहें तो इससे भी विकेन्द्रित बदलाव उचित समय पर करने में मदद मिलेगी व केन्द्रीय सरकार पर बोझ भी कम होगा।
इसी तरह से विश्व स्तर पर भी कोविड संबंधी पारदर्शिता का महत्व बढ़ रहा है। नई जानकारियां मिलने के साथ यह संभावना बढ़ी है कि कोविड-19 का उद्गम वुहान में लैब-लीक में हुए जेनेटिकली रूप से संवर्धित वायरस के लीक से जुड़ा है। चूंकि जेनेटिक रूप से संवर्धित वायरस का असर प्राकृतिक रूप से फैले वायरस से बहुत अलग हो सकता है, अत: इस वायरस के व्यवहार, प्रसार, संक्रमण, इलाज, बचाव आदि को समझने के लिए इस पर हुए अनुसंधान से संबंधित समस्त जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए जो नहीं हो रही है। इस कारण विश्व स्तर पर कोविड-19 को नियंत्रित करने के प्रयासों में कमी आई है व अनिश्चय की स्थिति बनी हुई है।
दवाओं व वैक्सीन से संबंधित कई फैसलों में व जो आंकड़े, जानकारियां, परीक्षण इन फैसलों का आधार बनते हैं, उनके बारे में बेहतर पारदर्शिता आवश्यक है।
कोविड-19 का इलाज व इससे बचाव इस समय जन-स्वास्थ्य का सबसे बड़ा मुद्दा है। इसके साथ यह भी स्पष्ट है कि यह इस समय स्वास्थ्य जगत का सबसे बड़ा कारोबार है व विश्व की कुछ सबसे शक्तिशाली बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां इस करोबार में बहुत बड़ी हिस्सेदार हैं। इनमें से अनेक कम्पनियां बाद में बहुत खतरनाक सिद्ध हुए उत्पादों को बेचने, इसके लिए भारी जुर्माना न भरने, न्यायालय से दंडित होने, बहुत से लोगों के स्वास्थ्य को क्षति पहुंचाने के लिए चर्चा में आ चुकी हैं। अत: यह उचित ही है कि उन्हें अपने सभी उत्पादों के परीक्षणों, उनके पास उपलब्ध सभी जानकारियों के बारे में अधिक पारदर्शी होने के बारे में कहा जाए।
एक व्यापक सच्चाई यह है कि पिछले डेढ़-वर्ष के दौरान कोविड-19 के उद्गम, इलाज, बचाव, म्यूटेशन के संदर्भ में कई विवाद व अनिश्चय निरंतरता से बने हुए हैं। विभिन्न प्रतिष्ठित वैज्ञानिक व विशेषज्ञ बहुत अलग तरह के विचार रखते रहे हैं जिनके अलग तरह के नीतिगत निष्कर्ष निकलते हैं। स्वीडन व अमरीका दोनों के पास उच्च विशेषज्ञ हैं, पर दोनों की कोविड रिस्पांस की राह अलग है। केवल एक देश संयुक्त राज्य अमरीका के विभिन्न राज्यों में भी महत्वपूर्ण भिन्नताएं नज़र आ जाएंगी। विकासशील व निर्धन देशों की स्थिति वैसे भी कई मामलों में धनी देशों से अलग है। अत: नीतिगत फैसलों की राह आसान नहीं है। इस पेचीदा स्थिति में यदि पारदर्शिता अपनाई जाए, तो गलतियों को शीघ्र ही ठीक कर पाने और सही नीतियों को अपनाने की क्षमता अपने आप बढ़ जाएगी।
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