आशाजनक होगी नरमे की फसल 

वैसे तो नरमा-कपास भारत की अहम फसल मानी जाती है, परन्तु पंजाब की भी यह महत्वपूर्ण फसल है। कृषि और किसान भलाई विभाग के संयुक्त निदेशक डा. बलदेव सिंह के अनुसार पंजाब में इस वर्ष नरमे की फसल बड़ी आशाजनक है। इसे अभी तक व्यापक स्तर पर कोई बीमारी नहीं लगी।  इसकी काश्त 3.04 से 3.30 लाख हैक्टेयर रकबे तक किये जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। गत वर्ष इसकी काश्त 2.52 लाख हैक्टेयर पर हुई थी। सन् 2019-20 के दौरान 2.45 लाख हैक्टेयर रकबे में इसकी काश्त की गई थी। नरमे की काश्त पंजाब के बठिंडा, मानसा, मुक्तसर, फाज़िल्का, मोगा, फरीदकोट आदि जिलों में मुख्य तौर पर की गई है। चाहे थोड़ा-थोड़ा नाममात्र रकबा संगरूर, बरनाला, पटियाला, फतेहगढ़ साहिब आदि जिलों में भी देखा गया है। विभिन्नता के पक्ष से भी जो इस वर्ष धान की काश्त अधीन रकबा कम हुआ है, उसमें से अधिकतर रकबा लगभग 52000 हैक्टेयर में धान की काश्त से निकल कर नरमे की काश्त के अधीन आ गया है। गत शताब्दी के अंत में इस फसल की काश्त अधीन 67 लाख हैक्टेयर रकबा था। यह फसल पंजाब के पश्चिमी जिलों की कृषि आधारित आर्थिकता और खुशहाली की सीढ़ी मानी जाती थी। सन् 2015-16 में चिट्टी मक्खी के सदीद हमले के कारण इसकी उत्पादकता बहुत कम हो गई। उसके बाद इसकी काश्त के अधीन रकबा भी कम हो गया। 
पहले पुराने ज़माने में तो देसी कपास की ही काश्त की जाती थी परन्तु अंग्रेज़ों के शासन के दौरान अमरीकी कपास की किस्मों की काश्त शुरू हो गई जिनकी उत्पादकता अधिक थी और रुई की क्वालिटी भी बेहतर थी। सन् 1903 में हिसार में काश्त की गईं किस्मों में एक किस्म को पंजाब के नरमे का नाम देकर लायलपुर (पाकिस्तान) में परखा गया और काश्त के उपरान्त नरमा पंजाब की व्यापारिक फसल बन गई। सन् 1990-91 में इस फसल की काश्त अधीन 7 लाख हैक्टेयर रकबा था, जो 1995-96 में बढ़ कर 7.42 लाख हैक्टेयर हो गया। फिर इस शताब्दी में धान की काश्त के ज़ोर पकड़ने के बाद नरमे की काश्त अधीन रकबा कम होता गया क्योंकि बारिशों आदि के कारण नरमे की फसल का नुक्सान हो जाता था और धान किसानों के लिए लाभदायक था। 
डा. बलदेव सिंह कहते हैं कि उमस भरा और शुष्क मौसम चिट्टी मक्खी के हमले के लिए अनुकूल है। चाहे अभी तक कहीं भी चिट्टी मक्खी का हमला नहीं देखा गया। जहां हुआ भी है, वहां ईटीएल स्तर पर नहीं हुआ और न ही बीच वाली छतरी पर। 50 प्रतिशत पौधों पर शहद जैसी बूंदें जो इस हमले के चिन्ह हैं, देखी गई हैं। किसानों को अपने खेतों की फसल का निरीक्षण करते रहना चाहिए और जहां कोई चिट्टी मक्खी का हमला नज़र आए तो पौधे के ऊपरी भाग में सुबह को 10 बजे से पहले पीएयू द्वारा सिफारिश की गई ‘उलाला’ (फलोनिकामिड) आदि दवाई का छिड़काव कर देना चाहिए। चिट्टी मक्खी की वृद्धि को रोकने के लिए किसानों को ‘सिंथैटिक पैराथ्राइड’ कीटनाशकों (साईपरमैथरिन, फैनवलरेट, डैल्टामैथारिन) का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं करना चाहिए। जो चिट्टी मक्खी को खत्म करने हेतु बड़ा प्रभावशाली रहता है। मशीनों की उपलब्धता यूपीएल आदर्श फार्म सेवा योजना  के तहत किसानों को दी जाती है। कृषि और किसान भलाई विभाग ने भी ऐसी मशीनी सेवा उपलब्ध करने हेतु प्रबंध किये हैं। चिट्टी मक्खी का हमला यदि फसल पर हो जाए तो इसे तुरंत स्प्रे करके काबू कर लेना चाहिए। पीएयू के विशेषज्ञों के अनुसार चिट्टी मक्खी के साथ पत्ता मरोड़ भी आता है, जो मक्की के साथ फैलने वाला एक विषाणु रोग है। चिट्टी मक्खी पूरा साल क्रियाशील रहती है। यह नदीनों, भिंडी, कद्दू, जाति की सब्ज़ियों और अन्य आलू, टमाटर फसलों तथा बीजों पर पलती रहती है। डा. बलदेव सिंह कहते हैं कि कई स्थानों पर नरमा निरोग अवस्था प्रफुलित हो रहा है। इन स्थानों पर अधिक उत्पादन लेने के लिए किसानों को पोटाशियम नाईट्रेट (13045) के एक-एक सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव कर देने चाहिएं। इस वर्ष अधिकतर किसानों ने पीएयू द्वारा प्रमाणित किस्मों की ही बिजाई की है जिनमें नाइट्रोजन डालने की मात्रा की सिफारिश पीएयू द्वारा की गई है। 
नरमा-कपास पट्टी के बठिंडा जिले के विर्क खुर्द गांव के किसान बलजीत सिंह कहते हैं कि इस वर्ष उत्पादकतों को अपनी फसल की बिक्री की कोई चिन्ता नहीं। निजी क्षेत्र के व्यापारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक कीमत देकर नरमा लेने हेतु चक्कर काट रहे हैं परन्तु कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया ने भी घोषणा की है कि वह जहां उत्पादकों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिलेगा, वह उपज  न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद लेगी।