पैरालम्पिक में भारत ने बनाये पांच रिकॉर्ड

टोक्यो पैरालम्पिक का अंत भारत ने बैडमिंटन खिलाड़ियों कृष्णा नागर के स्वर्ण पदक व सुहास यथिराज (जो नोएडा के जिलाधिकारी भी हैं) के रजत पदक के साथ किया। कुल मिलाकर भारत ने 5 स्वर्ण, 8 रजत व 6 कांस्य के साथ 19 पदक हासिल किये। 162 देशों के समूह में भारत का स्थान 24वां रहा, जबकि चीन (207 पदक), ग्रेट ब्रिटेन (124 पदक) और अमरीका (104 पदक) क्रमश: पहले तीन स्थानों पर रहे। वैसे पैरालम्पिक में भारत का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। पैरालम्पिक की शुरुआत 1960 में हुई थी। भारत 11 पैरालम्पिक में भाग ले चुका है, जिनमें उसने 31 पदक (9 स्वर्ण, 12 रजत व 10 कांस्य) जीते हैं। इसका अर्थ यह है कि जहां उसने 10 पैरालम्पिक में कुल 12 पदक जीते थे, वहीं अकेले टोक्यो में उसे 19 पदक जीते। टोक्यो में भारतीय खिलाड़ियों ने पांच रिकॉर्ड भी स्थापित किये।  सुमित एंटिल (स्वर्ण) ने एफ  64 पुरुष जेवलिन में 68.55मी. थ्रो के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया। अवनि लखेरा (स्वर्ण) ने कुल 249.6 पॉइंट्स के साथ विश्व रिकॉर्ड की बराबरी की और आर 2 महिला एयर राइफल स्टैंडिंग एसएच 1 में पैरालम्पिक रिकॉर्ड बनाया, मनीष नरवाल (स्वर्ण) ने पी 4 मिक्स्ड 50 मी. पिस्टल एसएच 1 में कुल पॉइंट्स 218.2 के साथ पैरालम्पिक रिकॉर्ड स्थापित किया। निषाद कुमार ने पुरुष हाई जम्प टी 47 में 2.06 मी. की जम्प के साथ एशियन रिकॉर्ड बनाया और प्रवीण कुमार ने पुरुष हाई जम्प टी 64 में 2.07 मी. की जम्प के साथ एशियन रिकॉर्ड स्थापित किया। टोक्यो ओलम्पिक के सात पदक विजेताओं पर नकद पुरस्कारों की बारिश और उनका सार्वजनिक सम्मान जारी है। ऐसे में पैरा-एथलीट्स ने इतिहास रचते हुए भारतीय खेल प्रेमियों के होंठों पर मुस्कान को जारी रखा है। पैरालम्पिक में भारत के 19 पदक शूटिंग, बैडमिंटन, जेवलिन, टेबल टेनिस, हाई जम्प, डिस्कस थ्रो और तीरंदाजी में आये हैं। इससे भारत सम्मानित 24वें स्थान पर रहा। यह शानदार प्रदर्शन पैरालम्पिक शुरू होने से पहले के अनुमानों से कहीं बेहतर रहा। अगला कदम इस गति को बनाये रखने का होना चाहिए ताकि पेरिस 2024 पैरालम्पिक खेलों में इससे दोगुने पदक आ जायें, जिन्हें हासिल करना मुश्किल या असंभव भी नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय पैरालम्पिक कमेटी का अनुमान है कि विश्व की जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा डिसेबल्ड (अपंग) है और इन खेलों का उद्देश्य विभिन्न देशों को प्रेरित करना है कि वह डिसेबिलिटी इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण में तेजी लायें और डिसेबल्ड का सामाजिक समावेश करें। इस प्रक्रिया का एक हिस्सा शारीरिक है और दूसरा मनोवैज्ञानिक है। ऐसे में भारत की पैरालम्पिक कमेटी और अन्य स्टेकहोल्डर्स को चाहिए कि वह टोक्यो पैरा-चैंपियंस की कहानियों का देशभर में प्रचार करें, जिनमें उनके संघर्ष के साथ उनकी सफलता भी मौजूद हो ताकि वह वास्तव में रोल मॉडल बन सकें और अपनी ‘अपंगता से आगे की क्षमता’ की यात्रा से अपंगों के बारे में प्रचलित धारणाओं को तोड़ सकें। इसमें शक नहीं है कि 19 पदकों से पैरा-एथलीट्स के लिए निरंतर बढ़ता समर्थन प्रतिविंबित होता है, लेकिन अब भी बहुत कुछ करना शेष है। मसलन, भारत की पहली टेबल टेनिस पैरा-पदक विजेता भाविनाबेन पटेल, जिन्हें बचपन में ही पोलियो हो गया था, ने कहा है कि उन्हें अकसर ट्रेनिंग व उपकरणों के लिए अपने परिवार के बैंक अकाउंट से मदद लेनी पड़ती थी। कटिंग-एज टेक बहुत महंगा होता है। लेकिन न्यू-एज व्हीलचेयर्स और अन्य सहायक टेक्नोलॉजी स्पीड व मोबिलिटी में नाटकीय वृद्धि कर सकती है। आज डिसेबल्ड भारतीयों की समस्याओं के लिए समाधान उपलब्ध हैं, जिससे वह भरपूर जीवन गुजार सकते हैं। जरूरत उन समाधानों तक पहुंच बनाने की है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 2.68 करोड़ लोग डिफरेंटली-एबल्ड हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत की विकलांगता चलने-फिरने यानी मूवमेंट को लेकर है और 19 प्रतिशत को दृष्टि-संबंधित समस्याएं हैं। इसी को मद्देनजर रखते हुए सरकार ने 2015 में अपना फ्लैगशिप एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन लांच किया था ताकि ट्रांसपोर्ट, सार्वजनिक स्थल और आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर डिफरैंटली-एबल्ड के लिए फ्रेंडली हो जाये। लेकिन यह अभियान अति सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। हाल ही में पेश की गई संसदीय तदर्थ समिति की रिपोर्ट से मालूम होता है कि नौ राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में जिन बिल्डिंगों को डिफरैंटली-एबल्ड के लिए फ्रैंडली बनाने का लक्ष्य रखा गया था, उनमें से अब तक मात्र 494 या 29.7 प्रतिशत को ही एक्सेसिबल बनाया गया है। दरअसल, डिफरेंटली-एबल्ड व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए जो नीतियां हैं, उनमें गति व प्रोत्साहन का अभाव है। संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स में जो क्रॉस-सेक्शनल नीति अपनाने की जो शर्त है, उससे भी भारत बहुत दूर है। इसका अर्थ यह है कि जरूरत नजरिए में परिवर्तन लाने की है ताकि नीतिगत योजना बनाने के समय डिफरेंटली-एबल्ड लोगों का भी संज्ञान लिया जाये। टोक्यो पैरालम्पिक में भारत ने जो 19 पदक जीते हैं, उनके विजेता वास्तव में अपने शानदार प्रदर्शन से यह मांग कर रहे हैं कि देश को डिफरेंटली- एबल्ड व्यक्तियों के लिए खड़ा होना चाहिए ताकि वह अपने पैरों पर खड़े हो सकें। साथ ही अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक हासिल करने वाले खिलाड़ियों पर ईनाम-ओ-इकराम की बारिश करने के अतिरिक्त देश में सभी के लिए खेलों का इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर करना प्राथमिकहिए। साथ ही सरकारों व कॉर्पोरेट को इस संदर्भ में सकारात्मक हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।

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