जानलेवा हो सकता है लो-ब्लडप्रैशर

हमारा शरीर रक्त नलिकाआें द्वारा शरीर की प्रत्येक कोशिका को पोषण और ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है। कोशिकाओं की दीवारों पर रक्त के पड़ने वाले इस दबाव को ही ब्लडप्रेशर कहा जाता है। जब हृदय में संकुचन होता है  तो रक्त में धमनियों का दबाव बढ़ जाता है। इसे सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर कहा जाता है। जब हृदय का फैलाव होता है तब धमनियों की दीवारों पर रक्त का दबाव भी कम हो जाता है, जिसे डायस्टोलिक कहा जाता है। ब्लडप्रेशर को मापने के लिए मशीन का इस्तेमाल किया जाता है।
सामान्य ब्लडप्रेशर
110/70 एमएमएचजी को सामान्य ब्लडप्रेशर की श्रेणी में रखा जाता है। यदि यह बढ़कर 140/90 हो जाए तो भी इसे सामान्य ही माना जाता है। ब्लडप्रेशर उम्र, वातावरण, शारीरिक श्रम तथा आहार के अनुसार घटता और बढ़ता रहता है।
क्या है लो ब्लडप्रेशर
हमारी रक्तवाहनियों पर पड़ने वाला रक्त का दबाव जब एक जरूरी और निर्धारित मात्रा से कम हो जाता है, तब इसे निम्न रक्तचाप या लो ब्लडप्रेशर कहा जाता है। 25 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति में 100/60एमएमएचजी तथा 30 साल की उम्र के बाद 105/66 एमएमएचजी ब्लडप्रेशर को नार्मल माना जाता है। इससे कम ब्लडप्रेशर होने पर निम्न रक्तचाप या लो बीपी माना जाता है।
रक्तचाप अगर ज्यादा कम हो जाए तो नसों में रक्त का संचार धीमी गति से होता है, जिसके कारण हृदय, फेफड़े, गुर्दे, मस्तिष्क इत्यादि महत्वपूर्ण अंगों और शरीर की समस्त कोशिकाओं को आवश्यक रक्त की आपूर्ति और पोषण नहीं मिल पाता।
लो ब्लडप्रेशर के लक्षण
बीपी सामान्य से कम होने पर अचानक चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, शिथिलता महसूस होना, सिर घूमना, शरीर ठंडा पड़ना, ज्यादा पसीना आना, सर्दी लगना, कमजोरी महसूस होना, सांस फू लना, ज्यादा थकान लगना, ऑक्सीजन की कमी, इत्यादि समस्याएं हो सकती हैं। यदि सिस्टोलिक ब्लडप्रेशर 85 एमएमएचजी तथा डायस्टोलिक 55 एमएमएचजी से कम रहने लगे तो समझे खतरा है। लगातार लो ब्लडप्रेशर रहने से व्यक्ति हर समय थका रहता है और थोड़े से परिश्रम से ही पसीना आता है। शरीर ठंडा पड़ जाता है और पैर जवाब दे जाते हैं। बात बात पर गुस्सा आना, चिड़चिड़ापन, निराशा, स्मरण शक्ति कमजोर होना, जैसी स्थिति बन जाती है। रक्तचाप के कम हो जाने से रक्त नलिकाओं की ताकत भी कम हो जाती है।
लो ब्लडप्रेशर के कारण
कई व्यक्तियों में स्वभाविक तौर पर ही ब्लडप्रेशर कम रहता है, लेकिन वह अपना काम सही ढंग से करते रहते हैं। इसे प्राइमरी हाइपोटेंशन कहा जाता है। सेकेंड्री हाइपोटेंशन में निम्न रक्तचाप का मुख्य कारण रक्तदाब को सामान्य बनाये रखने वाले अंगों में किसी तरह की विकृति या इंफेक्शन होना है।
उपचार
शरीर में डिहाइड्रेशन होने की पर, पानी में ग्लूकोज, इलेक्ट्रोलाइट घोलकर पिलाना चाहिए या ड्रिप चढ़वानी चाहिए। एकाएक ब्लडप्रेशर कम होने पर एक चम्मच नमक पानी में घोलकर रोगी को देना चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर डाक्टरी परामर्श अवश्य करें।  

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