भारत-अमरीका संबंधों में विस्तार की झलक

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमरीका यात्रा कोविड काल के बाद वर्तमान और भविष्य की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण और  सघन गतिविधियों वाली रही है। सम्पूर्ण दुनिया की नजर इस पर होनी स्वाभाविक थी। संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के साथ अमरीका के राष्ट्रपति जो बाइडन तथा उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस के साथ द्विपक्षीय मुलाकात का कार्यक्रम निर्धारित था। क्वाड का भी पहला आमने सामने का शिखर सम्मेलन जुड़ गया एवं ऑस्ट्रेलिया तथा जापान के प्रधानमंत्री के साथ बातचीत भी।  लेकिन सबसे ज्यादा ध्यान बाइडन तथा कमला हैरिस से मोदी की मुलाकात पर केंद्रित था। बाइडन के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद मोदी की आमने सामने की पहली मुलाकात थी। इस बीच कोविड सहित ऐसी कई घटनाएं हो गईं जिन्होंने अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को पूरी तरह प्रभावित किया है। अफगानिस्तान से अमरीकी सैनिकों की वापसी के फैसले ने नई विश्व व्यवस्था की एक भयावह तस्वीर दुनिया के सामने रखी है। इससे बाइडन के साथ मोदी की मुलाकात  का महत्व ज्यादा बढ़ गया था। 
भारत-अमरीका संबंध आम दो सामान्य देशों के राजनयिक स्तर तक सीमित नहीं हैं। न केवल दोनों सामरिक साझेदार हैं, बल्कि 2016 में रक्षा साझीदार बनने के बाद कई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्थाओं पर इनकी सम्मिलित भूमिका हो चुकी है। अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी और तालिबान के आधिपत्य के बाद भारतीय उपमहाद्वीप की सामरिक स्थिति अस्त-व्यस्त हो गई है। अमरीका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने ऑकस सैन्य समझौता किया है जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया में परमाणु पनडुब्बियों का निर्माण होगा तथा एशिया प्रशांत में तीनों मिलकर काम करेंगे। ज़ाहिर है, मोदी-बाइडन और उसके पहले मोदी-हैरिस की बातचीत में निश्चित रूप से ये सारे मुद्दे रहे होंगे । 
बाइडन और मोदी की बैठक एक घंटे के लिए निर्धारित थी लेकिन डेढ़ घंटे तक चली। बाइडन ने कहा भी कि अगली बार जब हम मिलेंगे तो इसे दो दिनों से अधिक के लिए निर्धारित किया जाना चाहिए यानी हमारे बीच परस्पर सहमति और साझेदारी के इतने मुद्दे हैं कि घंटे-दो घंटे में निपटा नहीं सकते। बाइडन ने मोदी को याद दिलाया कि उपराष्ट्रपति रहते उन्होंने कहा था कि 2020 तक भारत-अमरीका संबंध ऊंचाइयों पर होंगे। हमने देखा भी कि मोदी का व्हाइट हाउस में उन्होंने किस गर्मजोशी से स्वागत किया। उन्होंने ट्वीट भी किया, आज मैं व्हाइट हाउस में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वागत कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि आप जिस कुर्सी पर बैठ रहे हैं, इस पर उप-राष्ट्रपति के रूप में मैं बैठता था और अब उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस बैठती हैं और क्या संयोग है कि वह भी भारतीय मूल की हैं। राजनय में इन शब्दों का बड़ा महत्व होता है। इससे पता चलता है कि मेजबान देश आपके प्रति क्या भाव रखता है। वास्तव में बाइडन से बातचीत के पहले उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस से मुलाकात एवं बातचीत में आधारभूमि तैयार हो गई थी। हैरिस ने आतंकवाद को लेकर मोदी की बातों का सार्वजनिक समर्थन किया और कहा कि पाकिस्तान में आतंकवादी हैं और उसे इन्हें रोकने का कदम उठाना चाहिए ताकि भारत और अमरीका दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। 
अमरीकी प्रशासन की नीति मेें भारत और अमरीका दोनों की सुरक्षा को समान स्तर पर रख कर बात करना महत्वपूर्ण है। जैसा विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंखला ने बताया कि दोनों मुलाकातों में हिंद प्रशांत क्षेत्र ही नहीं, पूरे विश्व में उभरते चीन के खतरे, अफगानिस्तान में तालिबान के बाद आतंकवाद की चुनौतियों, जलवायु परिवर्तन, उभरती तथा उत्कृष्ट प्रौद्योगिकी में परस्पर सहयोग आदि को लेकर विस्तृत बातचीत हुई। प्रधानमंत्री मोदी ने यात्रा आरंभ करते समय ट्विट करके बताया था कि हम द्विपक्षीय वैश्विक साझेदारी की समीक्षा करेंगे। जो कुछ जानकारी है उसके अनुसार द्विपक्षीय एवं वैश्विक साझेदारी, रक्षा और सुरक्षा सहयोग मजबूत करना, आतंकवाद व कट्टरपंथ के खिलाफ  साझी रणनीति, सीमा पार आतंकवाद रोकने के तरीकों पर विचार, अफगानिस्तान संकट से निपटने की रणनीति, चीन के विस्तारवाद पर लगाम कसना, द्विपक्षीय व्यापार और निवेश संबंधों को मजबूत करना, जलवायु परिवर्तन, संयुक्त राष्ट्र संघ में सुधार, स्वच्छ ऊर्जा साझेदारी को बढ़ावा देना आदि विषय बातचीत में समाहित थे।
भारत में मीडिया और बुद्धिजीवियों के एक वर्ग ने माहौल ऐसा बनाया था कि अमरीका में कमला हैरिस मोदी के समक्ष कश्मीर सहित मानवाधिकार के मुद्दे, धार्मिक स्वतंत्रता आदि पर घेरेंगी तथा बाइडन से मुलाकात में भी ये विषय आएंगे। ऐसा कुछ हुआ नहीं, न होना था। कमला हैरिस उप-राष्ट्रपति हैं और अमरीकी हितों का संरक्षण उनका मुख्य लक्ष्य है। भारत जैसे वैश्विक स्तर के मजबूत साझेदार के प्रति एक भी नकारात्मक शब्द से उल्टा संदेश निकल सकता था और परिणाम भी विपरीत आ सकते हैं। यह मोदी-बाइडन की मुलाकात का ही परिणाम है कि क्वाड में जब मोदी ने आतंकवाद और अफगानिस्तान का मुद्दा उठाया तो बाइडन का उन्हें समर्थन मिला। तो हम परिणतियों को किस रूप में देखें?  
दरअसल, बाइडन के नेतृत्व में अमरीका ने अभी तक सुरक्षा सहित सम्पूर्ण सामरिक, अंतर्राष्ट्रीय नीति के जो संदेश दिए हैं, उन पर गहराई से विचार कर भारत को भविष्य की रणनीति बनानी होगी। मोदी से मुलाकात के आरंभ में ही बाइडन ने कहा कि हमें गांधी जी को नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने अहिंसा और सहनशीलता की बात की थी। बाइडन लगातार अहिंसा और सहनशीलता की बात कर रहे हैं। पिछले दिनों चीन के संबंध  में भी उन्होंने सहनशीलता तथा बातचीत का बयान दिया था। इसके मायने क्या हो सकते हैं ? अफगानिस्तान का कदम संदेश है कि अमरीका विश्व भर से सैनिक ऑपरेशन या उपस्थिति को खत्म करना चाहता है। चीन से निश्चित टकराव देखते हुए भी उससे बचने की नीति अपनाने पूरे विश्व की सामरिक स्थिति में अकल्पनीय बदलाव आ सकता है। हमें ध्यान रखना होगा कि अमरीका आतंकवाद पर भारत का समर्थन भले करे, पाकिस्तान को लेकर न उसने कोई निर्णायक कार्रवाई की है और न इसका कोई संदेश दिया है।। 
नि:संदेह, मोदी की अमरीकी राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति से बातचीत सफल रही। इसमें एक भी शब्द ऐसा नहीं आया जो भारत की सोच, नीति और भविष्य में दोनों की साझेदारी के विरुद्ध संकेत देने वाला हो। भारतीय मत का इसमें व्यापक समर्थन तथा भविष्य में द्विपक्षीय संबंधों के बहुआयामी चरित्र को और सुदृढ़ करने का ही संदेश आया। बावजूद यह भी साफ  है कि भारत को कई मोर्चों पर स्वयं ही लड़ाई लड़नी होगी। ऑकस समझौते में भी भारत एवं जापान को बाहर रखा गया जबकि क्वाड में  चारों देश शामिल हैं। पनडुब्बी भारत में क्यों नहीं निर्मित हो सकती? फ्रांस अमरीका का पुराना साझेदार है। अमरीका ने समझौता करते हुए उसका भी ध्यान नहीं रखा। फ्रांस ने पांच वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलिया को पनडुब्बी देने  का समझौता किया था। फ्रांस ने ऑस्ट्रेलिया और अमरीका से राजदूत वापस बुला लिए हैं। इस तरह की नीति अकल्पनीय को स्वीकार कर ही आगे आना पड़ेगा। बाइडन स्वयं भी कई कारणों से इस समय परेशानी का सामना कर रहे हैं। 
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