समर्थक पार्टियां ही बना रही हैं कांग्रेस को ग्रास 

भारतीय राजनीति में कई बार सतह पर नेता व दल जो माहौल बनाते हैं, व्यवहार में तस्वीर कई बार उसके विपरीत होती है । पिछले काफी समय से माहौल यह बनाया जा रहा है कि भारतीय राजनीति में भाजपा बनाम विपक्ष की मोर्चाबंदी हो रही है। क्या वाकई राजनीति का परिदृश्य ऐसा ही है। तृणमूल कांग्रेस की नेत्री एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने अपनी गोवा यात्रा के दौरान कहा कि कांग्रेस गंभीर राजनीति नहीं करती इसीलिए मोदी मजबूत हैं। इसका आशय समझने के लिए इसके पहले उनके द्वारा अपनी पार्टी के मुखपत्र जागो बांग्ला के दुर्गा पूजा विशेषांक में लिखे लेख को याद करना होगा। इसमें उन्होंने कहा था कि तृणमूल आज कांग्रेस से अधिक प्रभावी है। देश के लोगों ने फासीवादी भगवा पार्टी को हटाकर एक नया भारत बनाने की जिम्मेदारी तृणमूल पर डाली है। इस लेख का शीर्षक था, ‘दिल्लिर डाक’ जिसका मतलब दिल्ली की पुकार है। यह  लेख  इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में भाजपा विरोधी राष्ट्रीय नेतृत्व को लेकर मुख्य दावा तृणमूल करने वाली है। इसमें अगर कोई एक पार्टी सबसे ज्यादा प्रभावित होगी तो वह है कांग्रेस। तृणमूल का तेवर कांग्रेस के प्रति प्रतिकूल ही है। 
इस समय तृणमूल उस प्रक्रिया की सबसे बड़ी भूमिका में है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस जब वामपंथी गठबंधन के विरुद्ध लड़ती रही तो पार्टी का सफाया नहीं हुआ किंतु केंद्र में भाजपा विरोधी गठबंधन में वाममोर्चा के अनुकूल भूमिका निभाने के साथ पश्चिम बंगाल में वह कमज़ोर पड़ती गई और ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस के खड़ा होने के साथ प्रदेश से वह खत्म हो गई । प. बंगाल के बचे खुचे कांग्रेस नेताओं को पता है कि वहां उसके लिए तृणमूल सबसे बड़ा दुश्मन है। आज अगर कांग्रेस विधानसभा में अनुपस्थित है तो तृणमूल के कारण। तृणमूल ने विपक्षी एकता की बात अवश्य की लेकिन केवल वाम मोर्चे के ही नहीं, कांग्रेस के नेताओं को भी पार्टी में शामिल करने में कोई गुरेज नहीं किया। हैरत की बात है कि कांग्रेस के नेता इस बात पर प्रफुल्ल होते हैं कि तृणमूल में भाजपा के नेता एक-एक कर शामिल हो रहे हैं जबकि उसने उनकी पार्टी को सम्पूर्ण रूप से ग्रास बना लिया है। तृणमूल पूर्वोत्तर में खासकर त्रिपुरा और असम में अगर मुख्य राजनीति की भूमिका निभाने के लिए कवायद कर रही है तो उसके निशाने पर कांग्रेस  ही है। सुष्मिता देव को शामिल कर उसने राज्यसभा में भेजा तो इसका संकेत बिल्कुल साफ  था। 
तृणमूल पूर्वोत्तर के कांग्रेसी नेताओं को यह संदेश देना चाहती है कि आप पार्टी छोड़कर हमारे साथ आएंगे तो आपको पर्याप्त महत्व मिलेगा। त्रिपुरा से लेकर असम तक कांग्रेस के कार्यकर्ता, नेता तृणमूल में शामिल हो रहे हैं।  संभव है, चुनाव आते-आते कांग्रेस तृणमूल का काफी हद तक ग्रास बन  जाए। गोवा में तृणमूल ने अपनी  इकाई गठित की कांग्रेसी नेताओं की बदौलत। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता लुइजिन्हो फर्नांडो ने पार्टी से त्यागपत्र देकर तृणमूल की सदस्यता ग्रहण की और उनके साथ काफी कार्यकर्ता व नेता भी चले गए। गोवा में वह कांग्रेस को समाप्त करने पर तुली है। हालंकि वह हर पार्टी के नेताओं को शामिल करने की कोशिश कर रही है । इससे शिवसेना और एनसीपी ज़रूर चौकन्नी हो गई है। 
तृणमूल के रणनीतिकारों का मानना है कि भाजपा के खिलाफ आक्रामक रुख अख्तियार करके उसने देश के मुसलमानों को सीधा संदेश दिया है। कल्पना है कि  जिस तरह पश्चिम बंगाल में उस समुदाय ने उनके पक्ष में एकमुश्त मतदान किया वैसा दूसरे राज्यों में भी हो सकता है। यह सच है कि तृणमूल भाजपा के खिलाफ  जिस तरह आक्रामक है उससे उसके पक्ष में और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है। कांग्रेस के रणनीतिकारों को तृणमूल के रवैये को देखते हुए चौकन्ना होना चाहिए था। इसकी अनदेखी कर राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा केवल भाजपा को ही दुश्मन मानकर पूरी राजनीति को अंजाम दे रहे हैं। 
आप जरा पूर्व की संप्रग सरकार में शामिल या समर्थन देने वाली या केंद्र में भाजपा विरोधी गठबंधन में सक्रिय पार्टियों वाले राज्यों की ओर नजर दौड़ाइए। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस का जनाधार अवश्य खींचा लेकिन  आज अगर वहां वह मृतप्राय है तो इसका मूल कारण समाजवादी पार्टी और बसपा का जनाधार बढ़ना है। दोनों पार्टियों से कांग्रेस ने गठबंधन किया। बाद में केंद्र सरकार में समर्थन लिया और इन्होंने प्रदेश में पार्टी को खत्म कर दिया। बिहार में लालू प्रसाद यादव  ने योजनाबद्ध तरीके से एक पार्टी के रूप में कांग्रेस को रसातल में पहुंचा दिया। दूसरे राज्यों में चलें। आंध्र में तेलुगू देशम कांग्रेस के विरुद्ध गुस्से से पैदा हुआ लेकिन आज जगमोहन रेड्डी के नेतृत्व में वाईएसआर कांग्रेस ने कांग्रेस का जनाजा निकाल दिया। तेलंगाना में पहले तेलंगाना राष्ट्र समिति ने कांग्रेस को खत्म किया। उसके बाद बचा खुचा जनाधार भाजपा की ओर जा रहा है। तमिलनाडु में आएं तो मुख्य पार्टी से क्षेत्रीय दल की सहयोगी में कांग्रेस भाजपा के कारण परिणत नहीं हुई। अन्नाद्रमुक, द्रमुक और दूसरी पार्टियों ने कांग्रेस को खंडित किया। उड़ीसा में यद्यपि भाजपा का जनाधार बढ़ा है लेकिन कांग्रेस वहां नवीन पटनायक के बीजू जनता दल का मुख्य ग्रास बनी। महाराष्ट्र में भाजपा के कारण चौथे नंबर की पार्टी है। सभी जानते हैं कि राकांपा की ताकत कांग्रेस के पूर्व जनाधार में ही निहित है। इस समय तो महाविकास अघाडी का दूसरा साझेदार शिवसेना भी कांग्रेस को कमज़ोर करने में लगी है। शिवसेना अपने आविर्भाव के साथ कांग्रेस का जनाधार खींचकर ही आगे बढ़ी थी। इस तरह आप किसी राज्य में नजर दौड़ा लीजिए कांग्रेस का जनाधार खत्म होने या पार्टी का अस्तित्व समाप्त होने के पीछे भाजपा विरोधी वर्तमान विपक्षी पार्टियां ही नजर आएंगी। जहां कांग्रेस की लड़ाई सीधे भाजपा से है, वहां आज भी उसका अस्तित्व कायम है। मध्य प्रदेश, एछत्तीसगढ़ , राजस्थान और गुजरात  इसके प्रमाण  हैं। दिल्ली में जब तक भाजपा बनाम कांग्रेस की राजनीति थी उसका अस्तित्व बचा हुआ था। आम आदमी पार्टी के आविर्भाव के साथ वह खत्म हो गई। कांग्रेस के नेताओं को क्या यह याद नहीं कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी को पहली बार सरकार बनाने के लिए समर्थन उन्होंने ही दिया था।