ऐलनाबाद उप-चुनाव से हुई इनेलो की विधानसभा में वापसी

ऐलनाबाद उपचुनाव में एक बार फिर से इनेलो ने बाजी मारी है। इनेलो न सिर्फ अपनी सीट बचाने में सफल रही, बल्कि विधानसभा में फिर से पार्टी का खाता खुल गया है। 2019 के विधानसभा चुनाव में इनेलो ने एकमात्र ऐलनाबाद सीट जीती थी और इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय चौटाला विधायक चुने गए थे। तीन कृषि कानूनों का विरोध करते हुए किसान आन्दोलन के समर्थन में अभय चौटाला ने 27 जनवरी को विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था। अभय के इस्तीफा देने से खाली हुई ऐलनाबाद सीट के लिए हुए उप-चुनाव में फिर से अभय चौटाला विधायक चुने गए हैं। विधानसभा में वह इनेलो के अकेले विधायक हैं। उन्होंने चुनाव के दौरान यह ऐलान किया था कि ऐलनाबाद उपचुनाव तीन कृषि कानूनों पर एक तरह से जनमत संग्रह होगा। अब चुनाव नतीजे के बाद भी अभय चौटाला ने कहा है कि यह जीत उनकी नहीं बल्कि आन्दोलनरत किसानों की जीत है और तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लोगों का फतवा है। अभय चौटाला को हालांकि 2019 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार ज्यादा वोट मिले हैं, इसके बावजूद उनकी जीत का अंतर पहले से कम हो गया है। पिछली बार अभय चौटाला 12 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीते थे। इस बार उनकी जीत का अंतर करीब पौने सात हजार रह गया। 
भाजपा को मिले मतों ने सबको चौंकाया
ऐलनाबाद उप-चुनाव में भाजपा उम्मीदवार को किसानों से न सिर्फ भारी विरोध का सामना करना पड़ा बल्कि कईं गांवों में तो भाजपा उम्मीदवार चुनाव प्रचार के लिए दाखिल भी नहीं हो पाए। भाजपा नेताओं को भी जगह-जगह भारी विरोध का सामना करना पड़ा। भाजपा ने इस बार सिरसा के विवादित विधायक गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को उम्मीदवार बनाया था। जजपा ने भाजपा को खुला समर्थन दिया था। जगह-जगह भारी विरोध के बावजूद भाजपा उम्मीदवार को 60 हजार वोट मिलना और मात्र पौने सात हजार वोटों के अंतर से भाजपा की हार ने सभी को चौंका दिया है। भाजपा नेता खुलेआम कहते हैं कि तकनीकी तौर पर चाहे वह हार गए हैं लेकिन 60 हजार से ज्यादा वोट हासिल करना नैतिक तौर पर भाजपा की जीत जैसा ही है। 
इनेलो व गठबंधन के बीच रहा मुकाबला
जजपा नेताओं खासतौर पर डॉ. अजय चौटाला की टीम ने ऐलनाबाद में गोविंद कांडा के समर्थन में खुलकर प्रचार किया। जिसके चलते ऐलनाबाद में मुख्य मुकाबला इनेलो और भाजपा-जजपा गठबंधन के बीच सिमट कर रह गया था। अजय चौटाला ने अपने भाई के खिलाफ प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस चुनावी मुकाबले में कांग्रेस उम्मीदवार पवन बैनिवाल न सिर्फ बुरी तरह से पिछड़ गए बल्कि उनकी ज़मानत भी ज़ब्त हो गई। इस चुनाव में कांडा बंधुओं ने पैसा पानी की तरह बहाया और चुनाव को जातीय रंगत भी दी गई और इसका असर भी चुनाव में देखने को भी मिला। कुल मिलाकर भाजपा-जजपा उम्मीदवार की हार के बावजूद उनके समर्थकों को इस बात का संतोष है कि उपचुनाव में गठबंधन ने जबरदस्त टक्कर दी और सम्मानजनक वोट हासिल किए। 
कांग्रेस की ज़मानत ज़ब्त
ऐलनाबाद उप-चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार पवन बैनिवाल की जमानत जब्त हो गई। पवन बैनिवाल पहले अभय चौटाला के शागिर्द हुआ करते थे। 2014 और 2019 के चुनाव में भी भाजपा ने पवन बैनिवाल पर दांव लगाया। दोनों बार पवन बैनिवाल चुनाव हारकर दूसरे स्थान पर रहे। तीन कृषि कानूनों को लेकर किसानों ने भाजपा के प्रति पाई जा रही नाराजगी को देखते हुए पवन बैनिवाल ने भाजपा को छोड़ दिया था। ऐलनाबाद उपचुनाव से पहले वह कांग्रेस में शामिल हो गए। सैलजा के जरिये उन्हें कांग्रेस का टिकट भी मिल गया। कांग्रेस को उम्मीद थी कि दो बार ऐलनाबाद में दूसरे स्थान पर रहने वाले पवन बैनिवाल को ऐलनाबाद के पैंतालिसा क्षेत्र में जिसे बैनिवाल बाहुल माना जाता है, में अच्छा समर्थन मिल सकता है। 
भरत बैनिवाल से मांगा स्पष्टीकरण
इस हल्के में जो पुराने दड़बाकलां हल्के का इलाका होता था, वहां से भरत बैनिवाल विधायक रहे थे और व ऐलनाबाद से भी कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़ चुके थे। भरत बैनिवाल को भूपेंद्र हुड्डा का समर्थक माना जाता रहा है। वह इस बार भी टिकट के दावेदार थे लेकिन टिकट पवन बैनिवाल को मिलने से भरत बैनिवाल नाराज हो गए। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कुमारी सैलजा ने अपना चुनाव प्रचार शुरू करते हुए भरत सिंह को मनाकर अपने साथ प्रचार में लगा लिया था लेकिन वह दो दिन बाद ही बीमारी का बहाना करके चले गए और पूरे चुनाव अभियान में वह फिर दोबारा नजर नहीं आए। भरत सिंह के समर्थक भी खुलकर कांग्रेस के खिलाफ प्रचार करते रहे, जिसका नतीजा यह रहा कि कांग्रेस उम्मीदवार पवन बैनिवाल बुरी तरह से पिछड़कर तीसरे स्थान पर चला गया और उसकी जमानत जब्त हो गई। यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है और कुमारी सैलजा ने भरत बैनिवाल से पार्टी विरोधी गतिविधियों पर स्पष्टीकरण भी मांगा है। ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी जल्दी ही भरत बैनिवाल को बाहर का रास्ता दिखाएगी। 
सभी पार्टियां खुश भी और चिंतित भी
ऐलनाबाद उप-चुनाव से प्रदेश की सभी पार्टियां खुश भी नजर आ रही हैं और चिंतित भी लग रही हैं। इनेलो इस बात से खुश है कि उसने उपचुनाव में फिर से अपनी सीट हासिल कर ली और चिंतित इस बात को लेकर है कि भाजपा का इतना भारी विरोध होने के बावजूद उसे 60 हजार से ज्यादा वोट कैसे मिल गए और इनेलो का जीत का अंतर पहले से बढ़ने की बजाय लगभग आधा क्यों रह गया। भाजपा इस बात से खुश है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद उसके उम्मीदवार को 60 हजार वोट मिल गए लेकिन चिंतित इस बात को लेकर है कि जिस तरह से किसानों और ग्रामीण लोगों का उसे विरोध झेलना पड़ा वह अगर अगले आम चुनाव तक बरकरार रहता है तो पार्टी उसका कैसे सामना करेगी। कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त होने से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का खेमा मन ही मन काफी प्रसन्न है कि ऐलनाबाद में कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त होने से उनकी धुर-विरोधी कुमारी सैलजा को झटका लगा है और आने वाले समय में कांग्रेस में हुड्डा का फिर से वर्चस्व कायम होने की उम्मीद बंधी है। कांग्रेस में सैलजा का खेमे इस बात पर चिंतित है कि कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त होना कोई शुभ संकेत नहीं है। किसान संगठन इनेलो प्रत्याशी की जीत से जहां खुश हैं वहीं भाजपा को 60 हजार से ज्यादा वोट मिलने से वे भी चिंतित हैं। 
भूपेंद्र हुड्डा का संकेत 
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ऐलनाबाद उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए एक बार आए थे लेकिन उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार पवन बैनिवाल के पक्ष में तो एक भी शब्द नहीं बोला बल्कि कांडा को अपना पुराना मित्र व साथी बताने के साथ-साथ अभय चौटाला को भी अपना पुराना साथी बता गए। हुड्डा के विरोधी उसी दिन से यह आरोप लगाने लगे थे कि भूपेंद्र हुड्डा इशारों में कांडा व अभय के पक्ष में बोल गए हैं और इससे कांग्रेस उम्मीदवार पवन बैनिवाल को नुकसान उठाना पड़ेगा। अब पवन की जमानत जब्त होने के बाद भूपेंद्र हुड्डा फिर से पार्टी में अपने विरोधियों के निशाने पर आ गए हैं। दूसरी तरफ हुड्डा समर्थक पवन बैनिवाल और सैलजा पर निशाना साध रहे हैं। 
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