घर की रौनक होती है बुआ

रिश्तों का अपना ही एक संसार होता है जिसमें हर रिश्ते का अपना अलग महत्त्व होता है, लेकिन आज के युग में अधिकतर रिश्ते तो अलोप ही होते जा रहे हैं। बस यादगार बन कर रह गए हैं। कोई समय था जब बच्चों को बुआ-मौसियां बहुत अच्छी लगती थीं। उनको पता होता था कि यह दो रिश्ते हैं जो बच्चों के लाड-चाव पूरे कर सकते हैं, नखरे सहन कर सकते हैं और रूठे हुए को मना सकते हैं। एकल परिवार में एक या दो बच्चे होने के कारण कई रिश्ते अलोप होते जा रहे हैं। जिनमें से एक महत्त्वपूर्ण रिश्ता है बुआ का।
बुआ पिता की बहन होती है, लेकिन जब वह ननद बन जाती है तो रिश्ते नाज़ुक हो जाते हैं, इस समय बुआ को ज़िम्मेदारी की भूमिका पड़ती है, ताकि रिश्तों में मिठास बनी रहे। जब तक मां जीवित होती है तो उसका घर में बहुत रौब होता है। घर के अक्सर ज़रूरी फैसले उसी की सहमति से लिए जाते हैं। अगर बुआ कुंवारी हो तो घर में अपनी मनमज़र्ी चलाने की कोशिश करती है। कई बार बुआ की ज़रूरत से ज्यादा दखल अंदाज़ी परेशानी का कारण बन जाती है।  भाभी के गुण भी कमियों के पीछे छिप जाते हैं। ननद और भाभी के बीच दरार आने के कारण घर का माहौल बिगड़ जाता है। भतीजे-भतीजियां भी जो घर में देखते हैं, उनकी भी बुआ के बारे में उसी तरह की सोच बन जाती है। इस सोच को बदलने की आवश्यकता है। बुआ जब भी घर आए तो इस तरह का माहौल बने कि अकेला भाई ही नहीं, अपितु उसके भतीजे और उसकी भाभी भी घर आने का उसका (बुआ) का इंतजार करें।
दादी की बेटी होने पर बुआ की शक्ल और आदतें उससे मिलती होती हैं जिस कारण अक्सर बच्चे कहते हैं कि उनको बुआ में अक्सर दादी दिखाई देती है। भतीजियों को भी यह सुनकर बहुत अच्छा लगता है कि यह तो बिल्कुल अपनी बुआ जैसी लगती है। हमारे समाज में बुआ का रिश्ता बहुत पवित्र माना जाता है। वह राखी और भैया-दूज जैसे त्योहारों की शोभा होती हैं। भाई-बहन आपस में खुशियां बांटते हैं। एक-दूसरे को तोहफे देते हैं। पुरानी यादों को ताज़ा करते हैं और इस तरह महसूस करते हैं जैसे एक बार फिर बचपन वापिस आ गया हो।
रिश्तों के अपनेपन को महसूस करते रहने के लिए छोटी-छोटी बातों को नज़र अंदाज़ करते रहना चाहिए। भाई के परिवार में कभी भी मुसीबत नहीं बनना चाहिए और न ही कभी उनकी आज़ादी में रुकावट बनना चाहिए ताकि भाभी अपनी नदद को बोझ न समझे। दूसरी ओर भाभी को भी अपनी ननद की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए। वह उपहारों की भूखी नहीं होती, सिर्फ उन्हें उस घर से प्यार होता है, जहां उन्होंने जन्म लिया होता है, यादें जुड़ी होती हैं, जिससे अलग होना मुश्किल होता है। बुआ को अपनी भतीजियों से आशा होती है कि उनसे हमेशा सम्मान मिले। वह अपने बच्चों के साथ उनका भी हमेशा सुख मांगती है। कहते हैं कि अगर दादी की बेटी खुश हो तो वह स्वर्ग से बहू-बेटे को आशीर्वाद देती है तभी तो कहते हैं कि जितना मर्जी घर में फूल लगा लो लेकिन खुशबू तो जीवन में बुआ, बहनों और बेटियों के साथ ही होती है क्योंकि वह हमेशा मायके घर के लिए सुख मांगती है। बुआ का रिश्ता बहुत पवित्र और प्यारा होता है अगर इसे सच्चे दिल से निभाया जाए तो जीवन में बहुत आनंद आता है।