आखिर बेटियों का अपना घर कौन-सा है

बेटियों को बेगाना धन कहना किस सीमा तक उचित है। चाहे हमारे देश की धरती को गुरुओं-पीरों, ़फकीरों और शूरवीरों की धरती होने का सम्मान प्राप्त है।
 यहां के निवासियों ने एक से अधिक लगभग हर क्षेत्र में उपलब्धियां प्राप्त की हैं। जिस किसी भी काम को हाथों में लेते हैं उसे पूरा किये बिना नहीं छोड़ते। यहां की महिलाओं ने भी आगे बढ़ने के लिए पुरुषों के समान योगदान डाला है, लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतनी तरक्की के बावजूद या इतने सूझवान होने के बावजूद भी हमारे देश के लोग बेटी को जन्म देने से क्यों घबराते हैं। ऐसी कौन-सी कमी है बेटी में जोकि उसके दुनिया में आने से पूर्व ही उसे मार दिया जाता है। सुनने और देखने में भी आता है कि माता-पिता ही अपनी बेटी को पराया धन या परायी अमानत कहते हैं। अगर माता-पिता ही ऐसी बातें कहते हैं तो ससुराल पक्ष वालों की ओर से ऐसी बातें बोलना स्वाभाविक है। बेटियां चाहे माता-पिता के घर हों या ससुराल वालों के घर वे अपना घर, अपना परिवार कहने में कभी भी संकोच नहीं करती। इस सभी के बावजूद आज तक यह पता नहीं लग सका कि इन बेचारियों का अपनापन कहा हैं? यह आम तौर पर देखा जाता है कि बेटी के युवा होने पर माता-पिता उसे पढ़ा-लिखा कर अपने पांवों पर खड़ा होने में सहयोग करने की बजाय जल्द से जल्द उसकी शादी करके यह बहुत आसानी से बोल देते हैं कि इसने तो किसी दिन अपने घर जाना ही था। यहां यह सोचने वाली बात है कि जहां बेटी ने जन्म लिया क्या वह उसका अपना घर नहीं। इसके अलावा ससुराल परिवार वाले भी उस लड़की को पराया समझते हैं। फिर लड़की का अपना घर कौन-सा है। 
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि यदि भगवान ने आपको   बेटी दी है तो उसे पराया धन न समझ कर बल्कि उसके करियर बनाने का प्रयास करें, उसे अधिक से अधिक पढ़ाएं अधिक से अधिक अपना सहयोग देकर अपने पांवों पर खड़ा करें। इसके लिए आपको कभी भी किसी के घर रिश्ता लेकर जाने की आवश्यकता नहीं होगी, अपितु बिना दहेज के आपकी बेटी के लिए आपको अपनी बेटी पर गर्व होगा। आप स्वयं बेटी को पराया धन बोलने की बजाय अपनी बेटी कहेंगे। इससे न कोई दहेज की मांग होगी और दूसरा भ्रूण हत्या भी बिल्कुल बंद हो जाएगी तथा बेटियों को अपनेपन का एहसास हो सकेगा। 
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