सर्दियों में अधिक सताता है  जोड़ों का दर्द

जैसे-जैसे आधुनिकता एवं निजीकरण बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे प्रदूषण में भी वृद्धि हो रही है। बढ़ते हुए प्रदूषण का सीधा प्रभाव वातावरण पर पड़ता है जिसके कारण गर्मियों में सामान्य से अधिक गर्मी तथा सर्दियों में असामान्य सर्दी पड़ने लगती है। इस बदलते मौसम का प्रभाव सबसे अधिक उस आबादी पर पड़ता है जो वृद्धावस्था की ओर बढ़ रही है। इन लोगों की मुख्यत: शिकायत रहती है कि जैसे-जैसे वातावरण में ठंडक बढ़ती है, वैसे-वैसे उनके शरीर के जोड़ों का दर्द भी बढ़ता जाता है।इन लोगों में जोड़ों के दर्द का कारण सामान्यत: आर्थराइटिस या गठिया होता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे शरीर के अंगों में शिथिलता आनी शुरू हो जाती है, उनका लचीलापन कम होने लगता है। अधिक व्यस्त होने या ध्यान न देने से जोड़ घिस  जाते हैं तथा धीरे-धीरे जोड़ विकृत स्थिति में पहुंचने लगते हैं। इस समस्या से ग्रस्त व्यक्ति की क्रि याशीलता में भारी कमी होने लगती है इसके अतिरिक्त सर्दियों में बढ़ी हुई आर्द्रता (ह्मूमिडिटी) के कारण तंत्रिकाओं में संवेदना की क्षमता निश्चित रूप से बढ़ जाती है जिससे जोड़ों में दर्द अधिक महसूस होता है जबकि गर्मियों में इसके उल्टे सिद्धान्त के कारण दर्द कम महसूस होता है। आर्थराइटिस एक प्रकार की न होकर सौ प्रकार की होती हैं। इनमें भी सबसे अधिक ऑस्टियोआर्थराइटिस तथा रूमेटाइड आर्थराइटिस पायी जाती है। अधिकतर लोगों में यह मिथ्या धारणा है कि आर्थराईटिस में केवल जोड़ों में दर्द होता है।  ऑस्टियोआर्थराइटिस सभी आर्थराइटिस में सबसे अधिक पाया जाने वाला रोग है जो 40 वर्ष के ऊपर की आयु वाले लोगों विशेषकर महिलाओं को प्रभावित करता है। यह रोग आमतौर पर शरीर के सभी वजन सहने वाले जोड़ों विशेषकर घुटनों के जोड़ों को प्रभावित करता है। रोग के बढ़ने के साथ-साथ रोगी की टांगों का टेढ़ापन तथा घुटनों के बीच की दूरी बढ़ने लगती है। सीढ़ियां चढ़ने उतरने ंतथा अधिक दूर चलने में दर्द होता है, रोगी लंगड़ाकर  चलने लगता है। धीरे-धीरे रोग इतना गंभीर रूप ले लेता है कि रोगी के पास जोड़ प्रत्यारोपण कराने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता। वातावरण के तापमान में कमी आने के साथ-साथ आर्थराइटिस से पीड़ित रोगी के लक्षणों की तीव्रता में बढ़ोत्तरी होने लगती है। इससे बचने के लिए रोगी दर्द निवारक दवाइयां अधिक मात्रा में सेवन करने लगते हैं। तरह-तरह के मलहम, तेल इत्यादि लगाते हैं परन्तु कोई लाभ नहीं होता। इन कारणों से सर्दियों का मौसम जोड़ों के दर्द से ग्रस्त लोगों के लिए चिंता का विषय बन गया है।   सर्दियों में आर्थराइटिस के रोगी को जोड़ों में दर्द रूपी पीड़ा सहन करनी पड़ती है तथा यह रोग दमा तथा मधुमेह की तरह ही दम के साथ ही जाता है परन्तु उचित योग व व्यायाम, एन्टीऑक्सीडेंट, विटामिन डी, आयरन, कैल्शियम युक्त भोजन, रहन-सहन में परिवर्तन, कार्टिलेज बनाने वाली आधुनिक दवाओं के सेवन तथा लम्बाई के अनुसार संतुलित शारीरिक वजन से जाड़ों में ही नहीं बल्कि लम्बे समय तक के लिए जोड़ों के दर्द से न सिर्फ छुटकारा पाया जा सकता है बल्कि भविष्य में होने वाली सर्जरी से भी काफी हद तक बचा जा सकता है। आर्थराइटिस को रोका तथा वापस (रिवर्स) भी किया जा सकता है। यह अत्यन्त प्रभावशाली तकनीक ’आर्थराइटिस रिवर्सल प्रोग्राम‘ के नाम से जानी जाती है। रोगी के सम्पूर्ण शरीर, रक्त व हड्डियों की पूर्ण जांच कर उनके आधार पर रोगी के खान-पान में बदलाव लाकर आवश्यकतानुसार संतुलित एन्टी ऑक्सीडेंट युक्त भोजन दिया जाता है, साथ ही अत्याधुनिक कार्टिलेज बनाने वाली तथा जोड़ों की चिकनाई वापस लाने वाली दवाओं का समुचित प्रयोग करने से रोगी को अत्यधिक आराम मिलता है।

(स्वास्थ्य दर्पण)