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सिल्क प्लांट

कृत्रिम पौधों को ‘सिल्क प्लांट‘ के नाम से भी जाना जाता है। इनके निर्माण के लिए सिंथेटिक मेटीरियल का इस्तेमाल किया जाता है। निर्माण कार्य इतना कलात्मक ढंग से होता है कि पौधे के प्राकृतिक और कृत्रिम रूप का भेद करना सरल नहीं होता। कृत्रिम पौधों की बाह्य आकृति से लेकर रंग-रोगन तक सब कुछ बड़ा ही स्वाभाविक होता है। फर्क मात्र इतना ही होता है कि ये निर्जीव होते हैं और आपकी उपेक्षा पाकर भी कुम्हलाने के बजाय मुस्कुराते ही रहते हैं। प्राकृतिक पौधों की जितनी भी किस्में आमतौर  पर पसंद की जाती हैं उनमें से कम से कम आधी की अनुकृति कृत्रिम पौधों के रूप में तो बनायी ही जा चुकी है। इनकी लंबाई छ: इंच से लेकर दस फीट तक हो सकती है तथा कीमत सौ रूपये से लेकर दस हजार रूपये तक हो सकती है। साधारणत: कीमत का निर्धारण आकार के आधार पर ही किया जाता है यानी जैसा पौधा वैसी कीमत। अगर आप लत्तरनुमा बेल से अपने घर की दीवारें सुसज्जित करना चाहते हों तो बिगोनिया, बिनास्टा, पासी-फ्लोरा, मनीप्लांट, बुश आदि अनेकानेक किस्मों में से आप अपने पसंदीदा किस्म के पौधे को चयनित कर अपने घर की दीवारों को आकर्षक बना सकते हैं।
आपके पसंदीदा पौधे देशी हों या विदेशी, कृत्रिम पौधों के संसार में हर देश की सीमाएं आ जाती हैं। किसी भी देश के पौधों को कृत्रिम पौधों के जरिए चंद सिक्कों के बल पर अपना गुलाम बनाकर घर में कैद कर सकते हैं क्योंकि अब यह असंभव नहीं रहा। फूल-पत्ते की बात तो एक तरफ, सृजनात्मक (सृजनशील) मस्तिष्क ने तो अब कैक्ट्स, सब्जी और फलों से आच्छादित पौधे, यहां तक कि घास की भी हू-ब-हू अनुकृति तैयार कर ली है यानी कि हरियाली को जिस रूप में भी कैद करना चाहें, कर सकते हैं और उस पर खासियत यह कि पौधे न तो खाद और पानी की मांग करेंगे और न ही धूप एवं हवा की।   (उर्वशी)