मार्च में पड़ी गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन घटा

मार्च में तापमान बढ़ने के बाद गेहूं का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इसमें 25 से 30 प्रतिशत की कमी आई है। स्टेट अवार्डी तथा पंजाब सरकार से कृषि कर्मन पुरस्कार प्राप्त करने वाले पटियाला ज़िले के बिशनपुर छन्ना गांव के प्रगतिशील किसान राजमोहन सिंह कालेका कहते हैं कि पंजाब सरकार ने जो 177 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान लगाया है, उसके पूरा होने की संभावना नहीं। गत वर्ष जो किसान 25-26 क्ंिवटल प्रति एकड़ उत्पादन लेते थे, उनका उत्पादन इस बार पुन: 18 क्ंिवटल के करीब आ रहा है। अब तक की कटाई के बाद जो रिपोर्ट मिली है, उनके अनुसार किसी भी किसान का उत्पादन अभी तक 20 क्ंिवटल से पार नहीं हुआ 
फतेहगढ़ साहिब जिले के धर्मगढ़ गांव का इंद्रजीत सिंह कहता है कि उसका उत्पादन 15 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक हुआ है। उसने आलू की खराब हुई फसल को नष्ट करके गेहूं की बिजाई की थी। संगरूर जिले का गहलां गांव का गुरमेल सिंह जो गेहूं का मुख्य उत्पादक है, कहता है कि उसका उत्पादन गत वर्ष के मुकाबले औसतन 4-5 क्ंिवटल प्रति एकड़ कम हो रहा है। अमलोह स्थित जड़िया बीज स्टोर के बलबीर सिंह जड़िया ने अमलोह मंडी में अब तक जो किसान गेहूं लेकर आए हैं, उनसे बातचीत की है जिसके बाद वह बताता है कि किसानों के खेतों का उत्पादन 15-16 क्ंिवटल प्रति एकड़ पर सीमित है। काछवा (करनाल निकट) सीड फार्म के विजय इन्द्र मधान ने डी.बी.डब्ल्यू. 303 गेहूं लगाई थी। उसका उत्पादन 18 क्ंिवटल प्रति एकड़ रहा। गेहूं की डी.बी.डब्ल्यू. 303 किस्म आई.सी.ए.आर.-गेहूं तथा जौ की खोज संबंधी भारतीय संस्थान ने विकसित की है। जिसका उत्पादन 32-33 क्ंिवटल प्रति एकड़ बताया गया है। इस तरह सबसे अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं की किस्म का उत्पादन भी 18 क्ंिवटल से अधिक नहीं मिला। भारतीय कृषि खोज संस्थान के सौरभ कुमार के अनुसार मार्च में गर्मी पड़ने के कारण दाना बारीक रह गया तथा माजू दाने का भार कम हो गया। 
किसानों के बहुमत ने गेहूं को अंतिम पानी भी नहीं लगाया ताकि गेहूं को नुस्कान न पहुंचे। इससे उत्पादन और भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। गर्मी का कहर इतना रहा कि कई स्थानों पर तापमान 38 डिग्री से 42 डिग्री सैल्सियस के मध्य पहुंच गया जो मार्च के महीने में असंभव था। यह गेहूं का उत्पादन घटने का कारण बना। किसानों द्वारा बीजी गई आम किस्म एच.डी. 3086 का उत्पादन 14 से 15.5 क्ंिवटल के मध्य आ रहा है। जनवरी में हुई बारिश के कारण भी गेहूं को पानी की मार पड़ी थी। उत्पादन घटने में उसका भी प्रभाव है। 
बनूड़ में पंजाब सरकार से सेवामुक्त हुए वरिष्ठ अधिकारी डा. मनमोहन सिंह (आईएएस) जो अब खेतीबाड़ी कर रहा है, कहता है कि उत्पादन इतना कम हुआ है कि गेहूं के काश्त खर्चे भी पूरे नहीं हो रहे। डीज़ल, मशीनरी, खाद तथा खेत मज़दूरों का खर्च बढ़ गया है तथा उत्पादन घटने के कारण किसानों की आय में ज़बरदस्त कमी आई है। चाहे रूस-यूक्रेन युद्ध के परिणाम के तौर पर खुली मंडी में गेहूं का दाम सरकारी समर्थन मूल्य 2015 रुपये प्रति क्ंिवटल से अधिक है, परन्तु किसानों को यह दाम नहीं मिल रहा। वे अपनी फसल सरकारी खरीद मूल्य पर बेचने हेतु ही मजबूर हैं। डा. मनमोहन सिंह तथा उनके साथ काम कर रहे किसानों ने मांग की है कि सरकार किसानों को 10000 रुपये प्रति एकड़ मुआवज़ा दे। 
पहेवा के निकट बचकी गांव का प्रगतिशील किसान प्रकाश सिंह कहता है कि उसने 70 एकड़ में गेहूं लगाई है तथा अब तक 30 एकड़ की कटाई की है। गेहूं से जो उसे कमाई हुई है, उससे खर्चे भी पूरे नहीं हुए। कम्बाइन से कटाई की दर गत वर्ष के मुकाबले 300 रुपये प्रति एकड़ बढ़ गई, खेत मज़दूर की मज़दूरी में वृद्धि हो गई है तथा दवाइयों एवं कीटनाशकों के महंगे होने के कारण स्प्रे का खर्च भी बढ़ गया। उत्पादन कम होने से वह घाटे में जा रहा है। 
जो छोटे किसान या भूमिहीन काश्तकार ज़मीन ठेके पर लेकर खेती कर रहे हैं, वे और भी घाटे में हैं, क्योंकि ठेका वही 55000 से 60000 रुपये प्रति एकड़ का देना पड़ रहा है। जबकि गेहूं का उत्पादन घट रहा है। उनकी हालत दयनीय है। 
पंजाब सरकार ने मंडियों में जो 132 लाख टन गेहूं की खरीद करने का लक्ष्य रखा था तथा सरकार अब 135 लाख टन खरीद करने का इरादा रखती है। गेहूं का उत्पादन सभी राज्यों में ही कम होने के बाद इस लक्ष्य के पूरा होने की सम्भावना नहीं। भारत सरकार ने जो 112 मिलीयन टन गेहूं का उत्पादन होने का अनुमान लगाया है, वह भी पूरा होने की सम्भावना नहीं। हरियाणा से मिलीं रिपोर्ट भी दर्शाती हैं कि वहां भी गेहूं के उत्पादन में ज़बरदस्त कमी आई है, जिससे उत्पादन घटेगा। पंजाब तथा हरियाणा केन्द्रीय अनाज भंडार में योगदान डालने वाले प्रमुख राज्य हैं।