सामाजिक चेतना के मसीहा डा. भीमराव अम्बेडकर
देश के बहुसंख्य लोगों के मसीहा माने जाने वाले डा. भीमराव अम्बेडकर, आजाद हिंदुस्तान के गरीब, वंचित व दलित समाज के श्रद्धापात्र हैं। देश के कई वर्गों के लोगों के साथ ऐसे जुड़े हैं कि उन्हें अलग करना संभव ही नहीं है । समय-समय पर आलोचनाओं के घेरे में आने के बावजूद अंबेडकर का राजनीतिक व सामाजिक वजूद कायम है और आज भी उनके नाम पर सरकारें बनाने व बिगाड़ने की हैसियत है। गरीब दलित परिवार में पैदा हो फ र्श से अर्श का सफ र तय करने वाले डा. अंबेडकर भारतीय संविधान के जनक तो हैं ही आज भी सोशल इंजीनियरिंग की धुरी है। डा. भीमराव अम्बेडकर के जीवन पर अपने पिता का बड़ा प्रभाव था जो विचारों से क्रान्तिकारी थे और उनके संघर्ष से ही 1914 में सेना में महार बटालियन बनी थी । साथ ही साथ बुद्ध, कबीर और ज्योतिबा फु ले के व्यक्तित्व का डॉ. अम्बेडकर पर गहन प्रभाव पड़ा। उन्होंने बुद्ध से मानसिक शान्ति, कबीर से भक्ति तो ज्योतिबा फ ुले से अथक संघर्ष की प्रेरणा ले स्वयं अपना जीवन गढ़ा था ।
डा. अम्बेडकर मानते थे कि राजनीतिक स्वतंत्रता से पूर्व सामाजिक एवं आर्थिक समानता जरूरी है। छुआछूत व ऊंच नीच के खिलाफ अम्बेडकर का बहुत बड़ा निर्णय था । आज डा. अम्बेडकर के नाम से वोटों की फसल काटने वाले तो बहुत हैं पर उनके दिखा, रास्ते पर बहुत कम ही चलते हैं इसी वजह से डा. अम्बेडकर का दलित-पिछड़ों के समन्वय का सपना मर गया सा लगता है । अभी भी भीमराव अम्बेडकर का सपना अधूरा है। गांवों में रहने वाले दलित अभी भी त्रस्त हैं। जब तक उन सभी को गरीबी की रेखा से ऊपर नहीं लाया जाता ,उनके लिए समाज के दूसरे वर्गों में सम्मान व बराबरी का भाव नहीं आ जाता, तब तक अम्बेडकर का मिशन बराबरी पूरा नहीं होगा।
भीमराव सिर्फ दलित समस्याओं पर नहीं सोचते थे अपितु ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जिसमें सभी को न्याय मिले । आज चिंतन की आवश्यकता है कि अम्बेडकर को हम केवल दलितों तक ही सीमित रखकर उनका स्थान तय न करें क्योंकि डा. अम्बेडकर ऐसे भारत के बारे में सोचते थे जिसमें विषमता न हो । उनका संविधान सभा में दिया हुआ भाषण इस बात का साक्षी है। तब उन्होने कहा था, हमने कानून द्वारा राजनीतिक समानता की नींव तो रख दी है पर यह समानता तभी पूरी होगी जब आर्थिक समानता भी देश में स्थापित होगी। इसी समानता को लाने के लिए वह चाहते थे कि कमजोर वर्ग को आरक्षण का लाभ मिले मगर आरक्षण की उनकी कल्पना केवल कुछ समय तक की ही थी।
भीमराव ने बहुत पहले ही भांप लिया था कि राजनीतिक फ ायदे के चलते कुछ दल व लोग गलत तरीके से आरक्षण का लाभ लेंगे जिससे भारतीय समाज और भी ज्यादा टूटन का शिकार हो जाएगा आज हम वही होता देख भी रहे हैं । ऐसे दूर-दृष्टा को उनकी जयंती पर नमन ।
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