सामाजिक चेतना के मसीहा डा. भीमराव अम्बेडकर

आज जन्म दिन पर विशेष

प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को देश के संविधान के निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर का जन्म दिन मनाया जाता है। देश के बहुसंख्य लोगों के मसीहा माने जाने वाले डा. भीमराव अम्बेडकर आज़ाद हिन्दुस्तान के गरीब, वंचित व दलित समाज के श्रद्धापात्र हैं। उनका जन्म मध्य प्रदेश के मऊ में हुआ था। देश के कई वर्गों के लोगों के साथ ऐसे जुड़े हैं कि उन्हें अलग करना संभव ही नहीं है। समय-समय पर आलोचनाओं के घेरे में आने के बावजूद डा. अम्बेडकर का राजनीतिक व सामाजिक वजूद आज भी कायम है और आज भी उनके नाम पर सरकारें बनाने व बिगाड़ने की हैसियत है। गरीब दलित परिवार में पैदा हो फ र्श से अर्श तक का सफर तय करने वाले डा. अम्बेडकर भारतीय संविधान के जनक तो हैं ही, आज भी सोशल इंजीनियरिंग का केन्द्र हैं। डा. भीमराव अम्बेडकर के जीवन पर अपने पिता का बड़ा प्रभाव था जो विचारों से क्रान्तिकारी थे और उनके संघर्ष से ही 1914 में सेना में महार बटालियन बनी थी। साथ ही साथ बुद्ध, कबीर और ज्योतिबा फुले के व्यक्तित्व का भी डॉ. अम्बेडकर पर गहन प्रभाव पड़ा। उन्होंने बुद्ध से मानसिक शान्ति, कबीर से भक्ति तो ज्योतिबा फ ुले से अथक संघर्ष की प्रेरणा ले अपना जीवन स्वयं गढ़ा था। उनका सपना था कि भारत जाति-मुक्त हो, औद्योगिक राष्ट्र बने और सदैव लोकतांत्रिक बना रहे। बाबा साहिब कुल 64 विषयों में मास्टर थे। वह हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेज़ी, फ्रैंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती भाषाओं के जानकार थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने लगभग 21 वर्ष तक विश्व के सभी धर्मों की तुलनात्मक रूप से पढ़ाई की थी। वह अकेले ऐसे भारतीय हैं जिनकी प्रतिमा लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगाई गई है।
 डा. अम्बेडकर मानते थे कि राजनीतिक स्वतंत्रता से पूर्व सामाजिक एवं आर्थिक समानता ज़रूरी है। छुआछूत व ऊंच नीच के खिलाफ  डा. अम्बेडकर का य एक बहुत बड़ा निर्णय था। उनका मानना था कि भारतीय महिलाओं के पिछड़ेपन की मूल वजह भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था और शिक्षा का अभाव है। उनका विचार था कि यदि हम लड़कों के साथ-साथ लड़कियों की शिक्षा पर भी ध्यान दें तो अधिक विकास कर सकते हैं। नारी शिक्षा पुरुष शिक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि पूरी पारिवारिक व्यवस्था का केन्द्र नारी होती है। आज डा. अम्बेडकर के नाम से वोटों की फसल काटने वाले तो बहुत हैं पर उनके दिखाए रास्ते पर बहुत कम ही लोग चलते हैं। इसी वजह से डा. अम्बेडकर का  दलित-पिछड़ों के समन्वय का सपना मर गया सा लगता है । अभी भी भीमराव अम्बेडकर का सपना अधूरा  है। गांवों में रहने वाले दलित अभी भी त्रस्त हैं। जब तक उन सभी को गरीबी की रेखा से ऊपर नहीं लाया जाता ,उनके लिए समाज के दूसरे वर्गों में सम्मान व बराबरी का भाव नहीं आ जाता, तब तक अम्बेडकर का मिशन बराबरी पूरा नहीं  होगा।  
भीमराव सिर्फ  दलित समस्याओं पर नहीं सोचते थे अपितु ऐसे भारत का निर्माण करना चाहते थे जिसमें सभी को न्याय मिले। आज चिंतन की आवश्यकता है कि डा. अम्बेडकर को हम केवल दलितों तक ही सीमित रखकर उनका स्थान तय न करें क्योंकि डा. अम्बेडकर ऐसे भारत के बारे में सोचते थे जिसमें विषमता न हो। उनका संविधान सभा में दिया हुआ भाषण इस बात का साक्षी है। तब उन्होंने कहा था, हमने कानून द्वारा राजनीतिक समानता की नींव तो रख दी है, परन्तु यह समानता तभी पूरी होगी, जब आर्थिक समानता भी देश में स्थापित होगी। इसी समानता को लाने के लिए वह चाहते थे कि कमजोर वर्ग को आरक्षण का लाभ मिले मगर आरक्षण की उनकी कल्पना केवल कुछ समय तक की ही थी।
भीमराव ने बहुत पहले ही भांप लिया था कि राजनीतिक फ ायदे के चलते कुछ दल व लोग गलत तरीके से आरक्षण का लाभ लेंगे जिससे भारतीय समाज और भी ज्यादा टूटन का शिकार हो जाएगा। आज हम वही होता देख भी रहे हैं। ऐसे दूर-दृष्टा को उनकी जयंती पर नमन । (युवराज)