हिन्दूवादी एजेंडा से बढ़ेगा विभाजनकारी माहौल  

भारत में सक्रिय हिन्दूवादी संगठनों द्वारा कभी ‘हिन्दू राष्ट्र’ निर्माण तो कभी ‘अखंड भारत’ की संकल्पना प्राय: की जाती रही है। आज जब कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार महंगाई और बेरोज़गारी अपने चरमोत्कर्ष पर है, इसी तरह के नारों से आम लोगों का ध्यान भटकाकर देश में बहुसंख्यवादी राजनीति की आड़ में सत्ता संरक्षण में जुटा एक बहुत बड़ा वर्ग सक्रिय हो कर लोगों को हिन्दू राष्ट्र निर्माण और अखंड भारत के सपने दिखाकर देश में अस्थिरता का वातावरण पैदा करने में जुटा है। अफसोस भी यह कि इस मिशन में राजनेताओं, धर्म गुरुओं से लेकर टीवी चैनल्स तक के स्वामी व पत्रकार खुलकर अपनी अपनी भूमिका निभा रहे हैं। 
भूख, गरीबी और महंगाई से जूझ रहे प्राकृतिक रूप से उदारवादी स्वभाव रखने वाले भारतीयों को चार-चार बच्चे पैदा करने, घरों में हथियार रखने, एक समुदाय के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ने, का व्यवसायिक बायकॉट करने, उनके धार्मिक व सामाजिक मामलों में दखलंदाज़ी कर उन्हें उत्तेजित करने व चिढ़ाने जैसे प्रयास लगातार किये जा रहे हैं। इस तरह की असंवैधानिक बातों पर अब देश के अनेक क्षेत्रों के लोग  खुलकर अपनी नाराज़गी का इज़हार भी करने लगे हैं।
 पिछले दिनों साम्प्रदायिकता फैलाने के लिये बदनाम हो चुके एक टी वी चैनल के प्रमुख ने ‘समान नागरिक संहिता’ पर परिचर्चा के नाम पर अम्बाला में कुछ हिन्दूवादियों की भीड़ एकत्रित की। ज़ाहिर है इसमें इकट्ठे हुये अधिकांश लोग हिन्दूवादी संगठनों के सदस्य ही थे। इन में अम्बाला शहर के स्थानीय विधायक जो कि भाजपा के ही हैं, उन्होंने भी शिरकत की। यह आयोजन चर्चा का विषय इसलिये बन गया कि उन्मादी बातें करने में माहिर टीवी चैनल प्रमुख ने इस आयोजन में मौजूद लोगों को हिन्दू राष्ट्र बनाने की एक शपथ दिलाई। इस शपथ की भाषा पूरी तरह उत्तेजनात्मक तो थी, साथ ही भारतीय संविधान के अंतर्गत विधानसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने वाले किसी विधायक के लिये तो बिल्कुल ही अनावश्यक व गैर-संवैधानिक भी थी। टीवी प्रमुख व विधायक के साथ अन्य सभी लोगों ने भी अपने हाथ उठाकर हिन्दुस्तान को हिन्दू राष्ट्र बनाने और इसे हिन्दू राष्ट्र बनाए रखने और इस हेतु हर तरह का बलिदान देने की शपथ ली। इसके पश्चात् हिन्दू राष्ट्र के समर्थन में नारे लगाए गए जहां विधायक को भी सभागार में मौजूद अन्य लोगों के साथ दोनों हाथ ऊपर करके नारे लगाते देखा गया।
गौरतलब है कि जिस जगह यह आयोजन हो रहा था वह स्थान हरियाणा-पंजाब सीमा से मात्र डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अभी कुछ ही दिन पहले अम्बाला का पड़ोसी पंजाब का ज़िला पटियाला दो भिन्न-भिन्न समूहों के बीच सशस्त्र झड़प का केंद्र बना था। इस घटना की अनेक प्रमुख सिख नेताओं सहित अन्य सभी धर्मों के लोगों ने भी इकठ्ठा होकर इस आयोजन विशेषकर विधायक द्वारा हिन्दू राष्ट्र की शपथ लेने पर गहरा रोष जताया। सिख समाज द्वारा बुलाई गई बैठक में कई वक्ताओं ने कहा कि विधायक का इस प्रकार शपथ लेना कतई उचित नहीं है। यह भारत को तोड़ने वाला बयान है। हिन्दू राष्ट्र की मांग करना देशद्रोह है। उपस्थित लोगों ने विधायक के विरुद्ध पुलिस में मामला दर्ज करने की बात कही और कहा कि यदि कोई कार्रवाई नहीं होती तो सिख समाज बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर अगली रणनीति तैयार करेगा। इस सभा में कुछ वक्ताओं ने हिन्दू राष्ट्र व खालिस्तान दोनों की संकल्पना का विरोध करते हुये ‘एक भारत-सशक्त भारत’ की ज़रूरत पर ज़ोर दिया।
हिन्दू राष्ट्र की प्रतिध्वनि अब असम में भी सुनाई देने लगी है। पिछले दिनों असम के सिबसागर क्षेत्र के विधायक एवं प्रतिष्ठित आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई ने असम में मूल असमी निवासियों की सामाजिक सुरक्षा के मद्देनज़र भारतीय संविधान की धारा 370, 371(ए), 371(एफ) और 371(जे) जैसे प्रावधानों को लागू करने की मांग की। गोगोई ने साफ तौर पर कहा कि भाजपा, आरएसएस केवल हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिये काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा की संघ व भाजपा का एजेंडा देश की विविधता तथा भारतीय संविधान की मूल भावना के बिल्कुल विपरीत है।
 एनआरसी व समान नागरिक संहिता को भी गोगोई ने अलोकतांत्रिक व असंवैधानिक बताया। इसी प्रकार कश्मीर, गोवा व पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत के अनेक राज्यों में संघ व भाजपा के इस तरह के समाज विभाजक एजेंडे का विरोध किया गया है। केवल सत्ता की चाहत में बहुसंख्यवाद की राजनीति को परवान चढ़ाने की अपनी कोशिशों में ये लोग यह भूल जाते हैं कि देश का विकास समस्त देशवासियों के संयुक्त प्रयासों व उनकी एकजुटता से ही संभव है। झूठ, फरेब, दकियानूसी सोच विचार और सहस्त्राब्दियों पीछे ले जाने की संकल्पना देश व समाज को विभाजित तो ज़रूर कर सकती है परन्तु उसे आगे हरगिज़ नहीं ले जा सकती। हां, इसके नाम पर देश में अशांति व अस्थिरता फैलाकर कुछ समय सत्ता की मौज ज़रूर लूटी जा जा सकती है। लिहाज़ा हिन्दू राष्ट्र के नाम पर समाज विभाजक एजेण्डा चलाया जाना हरगिज़ मुनासिब नहीं। खास तौर पर उन लोगों के लिये जो भारतीय संविधान की शपथ लेकर संवैधानिक पदों पर शोभायमान हों।