नानो यूरिया—कितना लाभदायक एवं प्रभावशाली 

पंजाब में धान की रोपाई 14 जून से आरम्भ हो गई थी। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (पीएयू) द्वारा नाइट्रोजन खाद धान को तीन बराबर मात्रा किस्तों में डाले जाने की सिफारिश की गई है। अब किसानों ने धान को नाइट्रोजन की खुराक देनी है। कुछ किसान पहली खुराक दे भी चुके हैं। यूरिया की कमी होने के कारण कृषि सामग्री बांटने वाले डीलर कई स्थानों पर किसानों को नानो यूरिया का इस्तेमाल करने के लिए प्रचार कर रहे हैं। अधिकतर डीलरों के पास ‘इंडियन फार्मज़र् फर्टीलाइज़र कोआप्रेटिव (इफको) का नानो यूरिया ही है। चाहे अन्य कई कम्पनियां भी नानो यूरिया बना कर बेच रही हैं। नानो यूरिया तरल रूप में आता है और इसकी आधा लीटर की बोतल 240 रुपये में किसानों को उपलब्ध होती है। यूरिया के 45 किलो के थैले की कीमत 266.50 रुपये है, जिस पर भारत सरकार भारी सब्सिडी दे रही है। कहीं-कहीं कुछ डीलर लेबर तथा ढुलाई आदि का खर्चा लगा कर किसामों को यूरिया महंगा भी बेच रहे हैं। यूरिया के एक थैले की अंतर्राष्ट्रीय कीमत 3500 से 4000 रुपये के मध्य है। भारत में इस्तेमाल किया जा रहा अधिकतर यूरिया आयात होता है। भारत सरकार का फर्टीलाइज़र का सब्सिडी बिल 2,50,000 करोड़ रुपये पर पहुंच जाने की सम्भावना है, जिसके लिए भारत सरकार बजट में उपबंध किया है। 
इफको तथा अन्य निर्माता कम्पनियों के नानो यूरिया के डीलरों द्वारा किसानों को सुझाव दिया जा रहा है कि नानो यूरिया का इस्तेमाल सस्ता पड़ता है और नानो यूरिया के इस्तेमाल से नाइट्रोजन खाद के उपयोग को काफी सीमा तक कम किया जा सकता है। आम तौर पर खेत में डाले गए यूरिया का 30 प्रतिशत भाग ही नाइट्रोजन के रूप में फसलों को मिलता है। शेष यूरिया गैसों या नाइट्रोट के रूप में मिट्टी, हवा तथा पानी को प्रदूषित करता है। निर्माताओं के अनुसार नानो यूरिया तरल फसल के पौधों के पोषण के लिए प्रभावी एवं अनुकूल है। इसके इस्तेमाल से फसलों की पैदावार बढ़ती है और पौष्टिक तत्तों की गुणवत्ता में सुधार आता है। नानो यूरिया तैयार करने वाली पहली ग्लोबल कम्पनी इफको के वैज्ञानिकों तथा कर्मचारियों के अनुसार नानो यूरिया का इस्तेमाल भूमिगत जल की गुणवत्ता सुधारने एवं जलवायु परिवर्तन तथा स्थायी उत्पादन एवं सकातात्मक प्रभाव डालते हुए ग्लोबल वार्मिंग को कम करने में अहम भूमिका निभाएगा। फसल को मज़बूती तथा स्वास्थ्य प्रदान करेगा। इसकी 500 मि.लि. की बोतल यूरिया के एक थैले के बराबर प्रभावशाली बताई गई है। इन वैज्ञानिकों ने इसके इस्तेमाल से फसल के उत्पादन में 8 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान लगाया है। नानो यूरिया तरल की बोतल एक वर्ष तक बिल्कुल ठीक रहती है। फिर नमी के कारण यदि केक भी बन जाए तो भी यह पूरा प्रभाव डालेगा। इफको के अनुसार इसके इस्तेमाल संबंधी 11000 स्थानों पर 90 फसलों पर आईसीएआर अनुसंधान संस्थानों तथा कृषि विज्ञान केन्द्रों (केवीके) पर सफलता से आज़माइशें करके परख की जा चुकी है। नानो यूरिया तरल का इस्तेमाल बढ़ाने से सब्सिडी की राशि की बचत होगी ही, ढुलाई का खर्चा भी बचेगा। 
पंजाब एग्रो इनपुट्स डीलर्स एसोसिएशन (नानो यूरिया के विक्रेता) के महासचिव धर्म बांसल का कहना है कि नानो यूरिया बिकना शुरू हो गया, परन्तु किसानों को इसके प्रभावशाली होने पर अभी पूर्ण विश्वास नहीं, जिस कारण इसकी बिक्री अभी कम है। 
प्रगतिशील किसान प्रकाश सिंह बच्चकी का कहना है कि नानो यूरिया तरल का स्प्रे करना पड़ता है, जिसमें बड़ी परेशानी होती है तथा काफी खर्च भी करना पड़ता है। पीएयू तथा आईसीएआर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से सम्मानित प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया (धर्मकोट) का कहना है कि नानो यूरिया तरल फसल तथा पत्तों के माध्यम से असर करता है। इसलिए इसका धान पर छिड़काव उस समय करना चाहिए जब नाइट्रोजन की अंतिम खुराक देनी हो और फसल के पत्ते निकल आएं ताकि फसल को पूरा लाभ पहुंचे। जड़िया कहते हैं कि सब्ज़ियों तथा आलुओं पर इस्तेमाल करने के लिए नानो यूरिया तरल बहुत अनुकूल है। इन फसलों पर इसका इस्तेमाल अधिक लाभदायक रहेगा। 
आईसीएआर—भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के ‘सैंटर फार एग्रीकल्चर टैक्निलोजी’ एसैस्मैंट एंड ट्रांसफर (कैटाट) प्रमुख डा. जे.पी. एस. दबास कहते हैं कि नानो यूरिया जैसे नये उत्पाद पर किसानों को विश्वास दिलाना बहुत आवश्यक है। किसान इसके इस्तेमाल संबंधी कई किस्म के प्रश्न करते हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यूरिया के 45 किलो के एक थैले में लगभग 21 किलो नाइट्रोजन उपलब्ध होती है, जिसमें से 6 किलो नाइट्रोजन फसल को मिलती है और शेष की 15 किलो गैसों या नाइट्रेट के रूप में मिट्टी, हवा और पानी में चली जाती है। आम किसान पूछते हैं कि यूरिया के एक थैले में उपलब्ध नाइट्रोजन जो फसल को उपलब्ध होती है, क्या 500 एम.एल. की नानो यूरिया की एक बोतल से फसल को मिल जाएगी? 
आरआईएआरआई के जैनेटिक्स डिवीज़न के प्रमुख डा. राजवीर यादव कहते हैं कि भिन्न-भिन्न कम्पनियों द्वारा बनाए गये नानो यूरिया के तजुर्बे करने के बाद यह पाया गया कि कुछ कम्पनियां द्वारा तैयार किये गए नानो यूरिया के परिणाम तो ठीक हैं, जबकि दूसरी कुछ कम्पनियों के स्तरों से नीचे हैं। वह कहते हैं कि जहां नानो यूरिया संबंधी किये जा रहे लाभ के दावों का किसानों को विश्वास दिलाना है, वहीं कम्पनियों द्वारा बनाए जा रहे गैर-स्तरीय नानो यूरिया पर नज़र रख कर उसे स्तरीय बनाने की आवश्यकता है। ऐसे पग उठाने से ही किसानों का विश्वास नानो यूरिया के इस्तेमाल संबंधी बढ़ेगा।