शिवालिक पहाड़ी पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ  नैना देवी मंदिर

नैना देवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में  शिवालिक पर्वत श्रेणी की पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर देवी शक्ति पीठों में से एक है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। मंदिर में पीपल का पेड़ मुख्य आकर्षण का केन्द्र है जो कि  शताब्दियों पुराना है। मंदिर के मुख्य द्वार के दाईं ओर भगवान गणेश और हनुमान कि मूर्ति है। मुख्य द्वार को पार करने के पश्चात आपको दो शेरों की प्रतिमाएं दिखाई देंगी। शेर माता का वाहन माना जाता है। मंदिर के गर्भगृह में मुख्य तीन मूर्तियां सुशोभित हैं। दाईं ओर माता काली की, मध्य में नैना देवी की और बाईं ओर भगवान गणेश की मूर्ति है। मंदिर के समीप ही में एक गुफा है जिसे नैना देवी गुफा के नाम से जाना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया था जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। यह बात माता सती को काफी बुरी लगी और वह बिना बुलाए यज्ञ में पहुंच गईं। यज्ञ स्थल पर भगवान शिव का अपमान किया गया जिसे माता सती सहन न कर सकीं और वह हवन कुण्ड में कूद गईं। जब भगवान शंकर को यह बात पता चली तो वह आये और माता सती के मृत शरीर को हवन कुण्ड से निकाल कर तांडव करने लगे। जिस कारण सारे ब्रह्माण्ड में हाहाकार मच गया। पूरे ब्रह्माण्ड को इस संकट से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के मृत शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से खंडित दिया। जहां-जहां अंग गिरे, वहां शक्ति पीठ बन गये। मान्यता है कि नैना देवी में माता सती के नेत्र गिरे थे।नैना देवी मंदिर में नवरात्रि का त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। वर्ष में आने वाले दोनों चैत्र और अश्विन मास के नवरात्रि में यहां पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आकर माता नैना देवी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। माता को भोग के रूप में छप्पन प्रकार कि वस्तुओं का भोग लगाया जाता है। श्रावण अष्टमी को यहां पर भव्य व आकर्षक मेले का आयोजन किया जाता है। अन्य त्योहार भी यहां पर काफी धूमधाम से मनाये जाते हैं। हवाई जहाज से जाने वाले पर्यटक चंडीगढ़ तक वायु मार्ग से जा सकते हैं। इसके बाद बस या कार की सुविधा ले सकते हैं।